अछूते विषय पर लिखा गया अनूठा उपन्यास – ‘कितने मोर्चे’

  • रिपोर्ट (शिवानी यादव) 

वन्दना यादव के लिखे पहले उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ के विमोचन पर सभी वक्ता इस बात पर एकमत थे कि यह एक अछूते विषय पर लिखा गया अनूठा उपन्यास है जो पाठक का परिचय एक नई दुनिया से करवाता है ।

1 दिसंबर 2018 नई दिल्ली के संविधान भवन (कॉन्सीट्यूशन क्लब) में वन्दना यादव द्वारा लिखित सैनिकों के परिवार जनों के जीवन पर आधारित ‘कितने मोर्चे’ नामक उपन्यास का विमोचन साहित्य एवं पत्रकारिता जगत के नामचीन लोगों के बीच संपन्न हुआ

दीप प्रज्वलन के साथ आरम्भ हुए साहित्यिक कार्यक्रम में डॉक्टर मृदुला टंडन द्वारा स्वागत उद्बोधन के बाद उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ का विमोचन भारतीय भाषाओं के लिए समर्पित वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से प्रोफेसर अरुण भगत, पाखी पत्रिका के संपादक प्रेम भरद्वाज, प्रसिद्ध साहित्य समीक्षक प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत, वरिष्ठ कवि एवं पूर्व महानिदेशक आकाशवाणी श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई, प्रवासी साहित्यकार प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी, एवं कर्नल डी. आर. सेमवाल ने किया ।

उपन्यास “कितने मोर्चे” सैनिकों के परिवारजनों, विशेष रूप से उनकी पत्नियों के एहसासों पर आधारित है जिन्हें वे प्रतिदिन अपने सैनिक पतियों की अनुपस्थिति में महसूस करती हैं । जब सैनिक मोर्चे पर होता है तो उसकी पत्नी फ़तह कर रही होती है ना जाने कितने मोर्चे !

वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने एक सामान्य पाठक की दृष्टि से पढ़ने के बाद पुस्तक को बेहद रोचक बताया जिसे यदि एक बार पढ़ना शुरू कर दिया जाए तो समाप्त किए बिना बंद करने का दिल नहीं करता !

साहित्य समीक्षक सत्यकेतु सांकृत ने पुस्तक की पठनीयता के लिए इसे सबसे ज्यादा अंक दिए! साहित्यकार प्रेम भारद्वाज ने ईमानदारी के साथ पुस्तक की विवेचना की  तथा गुण व दोष बताते हुए इसकी डिटेलिंग की ओर ध्यान आकर्षित करवाया !

कवि, गीतकार एवं गज़लकार लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने जब “कितने मोर्चे” के कुछ अंशों का पाठ किया तो कई बार दर्शकों की आंखें नम हुई वहीं कई बार उनके होठों पर मुस्कान भी आई । खचाखच भरे सभागार में प्रत्येक व्यक्ति ने पुस्तक की उन पंक्तियों के साथ स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस किया!

एक अनछुए विषय को समझने और लिखने के लिए वन्दना यादव को सभी अतिथियों ने अपनी बधाई दी तथा जनरल जी. डी. बक्शी व कर्नल डी. आर. सेमवाल ने शुभकामनाएं प्रेषित कीं !

कवयित्री ममता किरण ने वन्दना यादव को अंग वस्त्र पहनाकर बधाई दी ! कार्यक्रम का संयोजन मुंबई के प्रोडक्शन हाउस रवि पिक्चर्स ने किया जबकि सफल संचालन अभिनेता एवं कवि रवि यादव ने किया ।

कानपुर की रेडियो उद्घोषिका रंजना यादव ने धन्यवाद ज्ञापन दिया ! कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाने हेतु संगीता यादव, विनीता, मुकेश कुमार सिन्हा, नीलिमा शर्मा, चित्रा यादव, शिवानी, सुभाष नीरव, कलीराम तोमर, सुषमा भंडारी, अशोक गुप्ता, ओम सपरा, प्रिय दर्शन, रमेश बंगालिया, नीलम मिश्रा, पूनम यादव, मोहम्मद इलियास, प्रसन्नानसु, पुष्पा सिंह विसेन, सुनील हापुड़िया, गज़ल गायक शकील अहमद, कार्टूनिस्ट इरफान, ड़ॉ. रश्मि, ड़ॉ. रेनू यादव के अतिरिक्त समाज के अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे !

वैसे तो यह वन्दना यादव की छठी क़िताब है परंतु उपन्यास पहला है !

अनन्य प्रकाशन, नई दिल्ली ‘कितने मोर्चे’  उपन्यास के प्रकाशक हैं, और यह पुस्तक ऑनलाइन बिक्री के लिए भी उपलब्ध है।

 

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