शन्नो अग्रवाल की कविताएँ

1. चाँद तुम चाँदनी मैं तेरी जमीं-आसमा का फरक है तो क्या तुम धड़कनों में आकर बसे हो मेरी चाँद तुम हो मेरे चाँदनी मैं तेरी l आसमा पे हो तुम मैं हूँ कदमो तले मैं भटकती यहाँ तू वहाँ पर जले महफ़िलें सज रहीं तारों की वहाँ हैरान सा है...

हेमन्त कुमार शर्मा की कविता – मैं बोलता तेरी तर्जुमानी

मैं बोलता तेरी तर्जुमानी है, मेरे शब्द उस अधीरे की कहानी हैं। जो मजदूर बिखरा दिन भर, अन्न पाया बस मुट्ठी भर। मेरे शब्द उसकी मौन बानीं है। राह के दरख़्त सब काट दिये, समतल मग सब पाट दिये। उनकी असमय मौत मेरी जुबानी है। शिक्षा कुछ काम ना आई, सब डूब गई...

डॉ. ममता पंत की कविताएँ

1 - आएगा मधुमास... वह सूरत जिसे आंख बंद कर याद किया करता है कोई दिन की गुनगुनी धूप में महसूस करता है सर्द रातों की ठिठुरन में झांकता है कई बार मन का वह कोना जिसमें है गतिमान एक चाँद मानो कह रहा हो मुस्कुराकर मैं यही हूं छोड़कर न जाने वाला कहीं औ' मैं निश्चिंत सा सेकता...

ज़हीर अली सिद्दीकी की कविता – दबी आत्मा

भव्य मकान जो इतराता है इतना गरीबों को सताता है पैसों से डराता है रोशनी से जगमगाता है मन को बहकाता है भौतिकता से जोड़ता है परंतु खड़ा है नींव पर नींव बनी है ईंट से ईंट का रंग लाल होता है लेकिन मिट्टी का रंग पीला होता है फिर असली वजह क्या है ? संघर्ष की चुप्पी...

मनवीन कौर की कविता – अंत क्या है ?

वीभत्स, वितृष्णा उत्पन्न करता दृश्य क्यों मौन रहीं चारों दिशाएँ क्यों ना फट् गया ज्वालामुखी आया ना अंधड़ ना ही नदी उफनी देखते रहे मूक दर्शक बन निसहाय, निर्जीव लाश को ताकते रहे प्रफुल्लित राक्षस मनाते रहे जश्न हैवानियत का नहीं प्रकट हुए कृष्ण ना वध हुआ दुशासन का ना घुड़के बादल ना तांडव नृत्य नहीं भस्म हुए नृशंस हत्यारे घिनौनी राजनीति धर्म ,नैतिकता , नियम बस...

पारमिता षड़ंगी की कविता – खालीपन

अब मैं देख रही हूँ अनाथालय के साथ साथ वृध्दाश्रम की संख्या भी बढ़ रही है ग़रीबी में परिवार का महत्त्व था एक कमरे में दस लोग रहते थे प्यार भी रहता था अभी घर बड़ा है लोग कम है फिर भी प्यार के लिए जगह नहीं है झगड़ों ने कमरे में बिस्तर डाल दिया है दिल...