सुनीता खोखा की कविता – प्रेम सच नहीं है

ठीक कहते हो तुम कि मैं ख्वाब लिखती हूँ नहीं जानती हकीकत सही है ..…... पर क्या करूँ इस हकीकत को समझ कर कि भूख से जरुरी है धर्म, आदमी से अहम है बूत व प्रेम सच नही है, यथार्थ अब ये है कि..... सत्य को तैयार किया जाता है बन्दी प्रयोगशालाओं में , जिसे समझा, देखा व जाना जा...

पद्मा मिश्रा की कविता – मेरा बचपन, बाबुल का आंगन!

किसको पता था क़ि, छूट जायेगा एक दिन- मेरा प्यारा घरौंदा,, बाबुल का आँगन.. आता याद आज भी, वो खोया मेरा उपवन, बाबुल का आँगन.. अब तो बस ढलती हुई , उम्र क़ी तहरीरें है, सूनी हथेलियों पर, नियति की लकीरें हैं, भूल कहाँ पाउंगी, मेंहदी के फ़ूल रची गोरी हथेलियों पर, अनजाना नाम कोई .. सूनी...

ज़हीर अली सिद्दीकी की कविता – फूलों पर

पहचान सका ना काटों को, शमसीर उठाया फूलों पर। भौरों की चाहत ठुकराकर, है प्रश्न किया शुभ चिंतक पर।। प्यार किया जिस माली को, तकरार हुआ उस माली से। अपने मतलब से तोड़ किया, मौला समझा जिस माली को।। फितरत जिनका बस चुभना है, उन कांटों से तुम्हे बचना है। चुभ जाएं अगर बह...

जैस्मिन वीठालानी की कविता – प्रकृति का आँचल

मां जैसे बच्चे को पालती, वैसे ही प्रकृति करती मनुष्य का संचार मगर मनुष्य एहसान फ़रामोश बनता जा रहा, कर रहा अपनी मां पर अत्याचार. पूरे ब्रह्मांड में जीव सिर्फ़ इस धन्य धरोहर धरती पर, हवा पानी मिट्टी के ख़ज़ाने को मगर लूट रहा इंसान सदांतर. प्रकृति की देन फूल फूल, पत्ती पत्ती,...

मीना खोंड की कविता – यही प्यार है!

तू मेरा मैं तेरी तू मेरी जान मैं तेरा प्राण और क्या है यही प्यार है। मै तुझे संभालना तू मुझे समझना मेरे लिये तेरा जीना तेरे लिये मेरा होना और क्या है? यही प्यार है। तेरी-मेरी एक सांस तेरा मेरा अटूट विश्वास तेरा मेरा एक निवास तेरा मेरा रिश्ता खास और क्या है? यही प्यार हे। जान से ज्यादा होना कलेजे से चाहना तेरे लिये जी घबराना मेरे लिये दिल टूटना और क्या है ? यही प्यार है। एक दूजे की तारीफ करना एक प्यारी-सी गिफ्ट देना मिलकर खिलखिलाकर हंसना कभी तो आय लव्ह यू बोलना और क्या है? यही प्यार है। मीना खोंड संपर्क - meenakhond@gmail.com

कुसुम पालीवाल की कविता – निष्पक्ष हो कर बोलो

स्त्री ने कभी नहीं चाहा कि तुम हमेशा उसके पक्ष में ही बोलो या बात रखो उसके ही मन की उसने बस इतना ही चाहा, कि जब भी बोलो निष्पक्ष हो कर बोलो … वो सहती रही अनेक तरह के ज़ुल्म ज़ुल्म सिर्फ़ चाकू या कुल्हाड़ी से ही नहीं होते कभी -कभी शाब्दिक और व्यवहारिक ज़ुल्म कुल्हाड़ी से ज़्यादा घातक और गहरा घाव देते हैं …. घाव जो सीधे मन पर करता है प्रहार एक ऐसा गहरा प्रहार , जो हाथ -पैरों और पूरे अस्तित्व को कर देता है जड़ एक ही जगह पर .. बिना चाकू और कुल्हाड़ी के कर बैठता है वो अनजाने ही इस कार्य को या शायद जानबूझकर किसी  भी स्त्री की हत्या ….. मर कर भी स्त्री समझ नहीं पाती वो कि उसे किस बात पर मारा गया है उसको किस बात पर प्रताड़ित किया गया है … पूछती है प्रश्न वो आज विधाता से क्या साँसों पर सिर्फ़ पुरुष का अधिकार है या आज के समय में फिर स्त्री को देनी पड़ेगी अपने मन की आहुति … ये कल्पना रूपी पंख जो तुमने बाँटें है समस्त प्राणियों में क्या वो पुरुष जाति के लिए ही थे या फिर स्त्रियों को तुमने कुतरे , छिछले, कुचले पंखों के साथ भेजा था …. क्यों  डराता है पुरुष अपने दंभ भरे भावनात्मक कुंठित व्यवहार से या फिर वो नाटक करता है डराने का एक स्त्री को …. तुम तो विधाता हो जवाब दो लेकिन ! तुम क्या जानो एक स्त्री मन की परिभाषा को स्त्री आज असंतुष्ट है तुमसे बेशक तुमने रूप लिया होगा अर्धनारीश्वर का …. नारी जिसने जन्म दिया तुमको और नाम दिया राम - कृष्ण का तुमने भी क्या किया दुख ही दिया स्त्री जाति को वो फिर दुख झेलती माँ देवकी हो या हो माता सुमित्रा द्रौपदी हो या हो सीता…. अब वो विधि का विधान था या जनता -समाज की ख़ातिर था ये कह कर पीछा मत छुड़ाना तुम हमसे आज बहुत प्रश्न हैं स्त्री मन के जो करने हैं तुमसे क्योंकि तुम भी तो पुरुष ही हो ….. सुनें..! पहले तो एक स्त्री प्रश्न करने से कतराती है कतराने की मंशा का अर्थ जान लो , कि उसका उसमें डर बिल्कुल नहीं है ये समझो कि वो बात बढ़ाना नहीं चाहती …. एक स्त्री जब प्रश्न करने पर आती है तो फिर पीछे नहीं मुड़ना चाहती शायद वही प्रश्न बन जाते हैं एक पुरुष के गले की फाँस … और ये ही पुरुष चुप कराने की मंशा में कर बैठते हैं उस पर शाब्दिक या फिर व्यवहारिक अत्याचार क्योंकि  पुरुष ये कभी भूलना ही नहीं चाहते हैं कि वो पुरुष हैं… ओ पुरुष दल जिस दिन तुम एक स्त्री की तरह सोचना शुरु कर दोगे उस दिन ही छूट जायेगा तुमसे  ये अत्याचारी व्यवहार …. किसी को मन से मार कर तुम अपनी जीत कभी हासिल कर नहीं सकते जो मन को जीतना जाने जीत उसी की होती है … मन जीतने का पर्याय पैसा, उपहार या शारीरिक बंधन कभी नहीं हो सकता एक स्त्री मन पुरुष के भीतर निर्मल -कोमल मन और पवित्रता चाहता है सहनशील और व्यवहारिक मन चाहता है…. एक स्त्री मन किसी भी व्यवहार में सिर्फ प्रेम  की उम्मीद करता है बस वो एक निष्पक्ष व्यवहार चाहता है फिर वो रिश्ता कोई भी क्यों  न  हो ….॥