प्रत्यक्षा की कहानी – तब तक कल्पना में हम्फ्री बोगार्ट चलेगा

शीशे के सामने खडे होने में अब तकलीफ होती है । उजाड़  बालों का घोंसला ,कुछ काला कुछ सफेद । जब एकाध बाल सफेद थे तब फर्क क्या पडता था । गिनती बढ़ी  तो उखाड़ना शुरु किया , फिर रंगना । पर मांग के...

राजीव तनेजा की कहानी – डेढ़ सयानी मूँछ

आज घड़ी-घड़ी रह-रह कर मेरे दिल में ये अजब-गजब सा सवाल उमड़ रहा है कि जो भी हुआ..जैसा भी हुआ.. क्या वो सही हुआ? अगर सही नहीं हुआ तो फ़िर सही क्यों नहीं हुआ या फ़िर अगर यही सही था तो फ़िर यही सही...

डॉ. गरिमा संजय दुबे की कहानी – मरहम

पुरातत्व  विभाग में हडकंप मचा हुआ था कोई ऐसा कैसे कर सकता है | ऐसी हिमाकत हुई भी कैसे | “कोई मूर्तियां चुराता, कहीं बेच देता तो बात  समझ में आती है, पर अजीब मूर्खता की बात कर रहा है रामसिंह, यह तो सरासर...

डॉ. एस. डी. वैष्णव की कहानी – नजीब

तेज धूप संतोष बाबू के आंगन में पसरी हुई थी। सूर्य के गोले के इर्द-गिर्द अभी रक्ताभ आवरण नहीं बना था, लेकिन एक आग पिछले कुछ दिनों से व्यवस्था के प्रति संतोष बाबू के भीतर दहक रही थी। इस पीड़ा से उनकी शिराएं अंदर...

रेणुका अस्थाना की कहानी – लाल बार्डर की साड़ी

वह आलमारी का पल्ला खोल कर हैंगर पर टंगी अपनी साड़ियों को देख रही थीं | हल्के- हल्के रंगों की सिल्क, कोटा, हैंडलूम की साड़ियाँ | कोई बार्डर की प्लेन साड़ी तो कोई प्रिंटेड और कोई पूरी प्लेन | सब पर साड़ी से मिलते...

सुधा आदेश की कहानी – ऐसा भी होता है

अभी वह कालेज से आई ही थी कि मोबाइल घनघना उठा। असमय सुजाता का फोन आया देखकर वह चौंक उठी। एक वही तो थी जिससे वह अपनी हर बात शेयर कर सकती है। उससे अगर एक दिन भी बात न हो तो खाना ही हजम नहीं  होता है।...