संगीता राजपूत “श्यामा” का गीत – प्रतीक्षा

ताम्र पत्र पे भाव उकेरे प्रेम निवाला मुझे खिलाना आस अटारी चढ के बैठी उधङे ह्दय को आ सिलाना--- गूथी हिल मिल है मेल लङी बाते बीती क्यो बिसराते उमङ बहे अब मेरी अंखिया झूठे शब्दो मे भरमाते काल चक्र निर्धारित करके भूल चुके क्या याद  दिलाना---- क्षति विक्षिप्त हुई सरल कामना पवन विरह की...

निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझे देखकर मेरी  मौत  भी, मेरे  पास  आने  में डर गई

मेरी आरज़ू   रही  आरज़ू, युँ  ही  उम्र  सारी  गुज़र  गई। मैं कहाँ-कहाँ न गया मगर, मेरी  हर दुआ भी सिफ़र गई।। की तमाम कोशिशें उम्र भर, न बदल सका मैं नसीब को। गया मैं जिधर  मेरे  साथ  ही, मेरी  बेबसी  भी उधर गई।। चली गुलसिताँ में जो आँधियाँ,...

सूबे सिंह सुजान की ग़ज़ल

धुआं जम गया है, हवा की कमी से। कोई जैसे नाराज़ है ज़िन्दगी से।। न अब धूप अच्छी न मौसम खुला है, गगन को,धरा को, ढका है नमी से।। हवा,आग, पानी खफा हो गए हैं, शिकायत है आकाश को आदमी से। हमीं ने बनाये, उदासी भरे दिन, कि मौसम मिले आज...

डॉ. कृष्ण कन्हैया की ग़ज़ल – फ़िक़्र है अपनों की दुआ न लगे

फ़िक़्र है अपनों की दुआ ना लगे पर हमें ग़ैर की बद्दुआ ना लगे या रब! ऐसी तबीयत देना हमें वो बुरा कहें, मुझे बुरा ना लगे बंद कमरे में, सहेजता हूँ जज़्बा उसे रंजोग़म की, हवा ना लगे बेवफ़ा कहता था, मुझे हर वक्त अब उसे फिक़्र है बेवफ़ा ना...

डॉ. रूबी भूषण की ग़ज़ल

रंग बिखरे हुए फ़िज़ा में हैं हम मुहब्बत की इंतेहा में हैं हम को छेड़े न कोई दुनिया में इश्क़ की मदभरी सज़ा में हैं महकी जाती हैं अपनी सांसें भी खिलती कलियों की हम दुआ में हैं ढूंढते हैं वफ़ाओं की मंज़िल राज़ सारे तो नक़्श ए पा में हैं आप...

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ के पाँच नवगीत

1. कई कबूतर घर की छत पर पर्व मनाने आ जाते हैं कई कबूतर | यद्यपि इन्हें नहीं पाला है लेकिन पाले जैसे लगते, नई-नई लय की ध्वनियों से अभिधाओं को ज्यों हों जपते, पीड़ाओं के पैर दबाने आ जाते हैं कई कबूतर | छिटके हैं जो दाने चुगते अभिनव मंत्र सुनाते रहते, जिनकी मधुर अपरिचित भाषा उड़-उड़...