उस दिन बसन्त के मौसम की पहली दस्तक दरवाज़े पर सुनी तो हमारा मन भी बावरा होने लगा और फेसबुक पर एक दोहा लिख कर डाल दिया –

फूलों की वेणी पहिन, पायल बाँधे पाँव ।

आया बसन्त पूछता, पता हमारे गाँव ।

               हद हो गई .. हमारे परम्परागत मित्रों में से किसी की भी दक़ियानूसी नज़र इस दोहे पर नहीं पड़ी या पड़ी भी हो तो किसी ने उसे लाइक करने के योग्य नहीं समझा । मुझे अपने इन मित्रों पर रोष तो बहुत आया पर सोनू निगम की यह सलाह याद कर कि “हर एक दोस्त कमीना होता है” मन में सन्तोष कर लिया ।बसन्त, मोहतरमा और मैं - अरुण अर्णव खरे

पूर्ण सन्तोष को प्राप्त होने से पहले ही एक मोहतरमा छम-छम करती आईं और मेरी पोस्ट को न केवल लाइक कर गई अपितु ढेर सारा बासन्ती रस भी कमेण्ट बॉक्स में उँडेल गई – “अहा कितना अच्छा लिखते हैं आप .. मैं तो मुग्ध हूँ ..”

मैं अपनी आदत के मुताबिक़ सोच में पड़ गया – मुग्ध का क्या आशय है .. मुझ पर मुग्ध हैं या मेरी लेखनी पर । लेकिन अन्दर के पुरुषत्व ने कुहनी मारी .. क्यों बेकार की बातों में समय जाया कर रहे हो .. कोई कद्रदान मिला है तो उसकी क़द्र करो । मैने तुरन्त उत्तर दिया – “आपकी तारीफ़ से अभिभूत हूँ .. दिल से आपका शुक्रिया”

“मैं तो हर अच्छे सृजन को पसन्द करती हूँ – चाहे वह इंसान की कृति हो या भगवान की”

एक बार फिर मैं साफ़ बोल्ड होते होते बचा – क्या मतलब है उनकी इस लूज़ डिलीवरी का — इसे लुभाने के लिए फेंका गया है या आउट करने के लिए । मैने इसी उधेड़बुन में ही धीरे से शॉर्ट लेग की ओर प्लेस किया – “कितने सुन्दर विचार हैं आपके .. आपकी ही तरह”

“सच .. इनबॉक्स में आइये” – इस बार उनकी तरफ से ओवर पिच डिलीवरी आई |

इस ऑफ़र ने तो हिला ही दिया — मन बल्लियों उछलने लगा और उछल-उछल कर मन में बॉबी के ऋषि कपूर वाली फीलिंग आने लगी थी – “हम तुम एक कमरे में बन्द हों और चाबी खो जाए |” — अहा — इनबॉक्स — जहाँ केवल हम होंगे और वह — वाह कितना बासन्ती शमाँ होगा — कितना मजा आयेगा |

हमने होले से उनके इनबॉक्स में प्रवेश किया – “हैलो”

“आपकी इन्हीं बातों ने मुझे मोह लिया है . आप अपने प्रशंसकों का कितना ध्यान रखते हैं” – उनके शब्दों में स्नेह की सुगन्ध दूर से महसूस की जा सकती थी |

“आप जैसी समझ रखने वाले प्रशंसक हैं ही कितने – लोग तो छन्द-वन्द समझते ही कहॉं हैं चुटकुलों के दीवाने हैं सभी” – मैने साहित्यिक ज्ञान परोसते हुए कहा – “आप जैसे कद्रदान हैं, इसलिए हम लोग कुछ ढंग का साहित्य रच पा रहे हैं”

“कितनी सही बात कही आपने .. मुझे आज अपनी पसन्द पर गर्व हो रहा है कि कितने बड़े साहित्यकार की मित्रता सूची में मेरा नाम है — आप अच्छे लेखक ही नहीं .. बहुत प्यारे इंसान भी हैं” – कुछ ही मिनटों में उनका उत्तर आ गया ।

“मैं भी स्वयँ को धन्य समझ रहा हूँ — मेरे पॉंच हज़ार निकम्मे दोस्तों की सूची में केवल आप ही हो जिसने मुझे सही रूप में पहिचाना है” – मुझे भी उनसे बात करते हुए मज़ा आने लगा था ।

“आपकी यह बेबाक़ी मुझे बहुत पसन्द आई .. मैं तो ख़ुद को अन्दर तक भीगा महसूस कर रही हूँ — मुझे लगता था कि आप प्रकृति प्रेमी हैं पर आप तो ऋृंगार में भी महारत रखते हैं”

उनकी यह बात मुझे भी भिगो गई .. मेरी रचनाओं की कितनी बड़ी पारखी है .. वरना आज तक तो किसी ने दो शब्द भी तारीफ़ में नहीं बोले थे । उन यारों तक ने नहीं जिन्हें कितनी ही बार मैने इण्डियन कॉफ़ी हॉउस में कॉफी के साथ ही सांभर बड़ा भी खिलाया था । नामुरादों की दुनिया में पहली बार मुझे सच्ची प्रशंसक मिली थी ।

“जिसके आप जैसे ऊर्जावान और नि:स्वार्थ प्रशंसक हों — ऋृंगार पर उसकी क़लम स्वयँ चलने लगती है” – उत्तर देते हुए मुझे लगा कि मैं भी कितने क़रीने से झूठ बोलने लगा हूँ – मजाल है कोई पकड़ सके इसे ।

उनका उत्तर आया -“आपसे बहुत बातें करने की इच्छा है .. लगता है सारी रात यूँ ही आपसे बातें करती रहूँ .. पर क्या करूँ मैरा नेट पेक ख़त्म हो रहा है .. अभी भी कितनी बातें हैं जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ .. आप यदि चार्ज करवा दें तो मैं बहुत आनन्दित महसूस करूँगी — मुझे भी लगेगा एक सच्चा हमदर्द मिल गया आज”

“हाँ — हाँ क्यूँ नहीं .. आप नम्बर दीजिये” मैने उतावलेपन से कहा – “कितने का करवा दूँ”

उनका नम्बर तत्काल इनबॉक्स में चमकने लगा – “फ़िलहाल एक हज़ार का करवा दीजिये .. इस समय अच्छा ऑफ़र चल रहा है”

मैने तत्काल उनकी आज्ञा का पालन किया और रिचॉर्ज करवा दिया । थोड़ी देर बाद उनका मैसेज आया – “धन्यवाद .. पर एक गल्ती हो गई .. मैं बड़ी शर्मिन्दा हूँ”

“क्या हुआ .. आप क्यूँ शर्मिन्दा हैं” मेरे मैसेज में परेशानी की पर्याप्त मात्रा थी ।

उधर से उनका जवाब आया – “जल्दबाज़ी में मैने आपको अपनी फ़्रेण्ड का नम्बर दे दिया .. क्या करूँ .. आपकी मीठी-मीठी बातों में इतना खो गई थी कि पता ही नहीं चला और ग़लत नम्बर दे बैठी”

मुझे कुछ जवाब नहीं सूझा तो थोड़ी देर बाद पुन: उनका सन्देश आ गया – “बॉय .. अब मैं बात नहीं कर पाऊँगी .. बार बार नेट पेक समाप्ति के मैसेज फ्लेश हो रहे हैं .. गुड नाइट”

मैं सदमे में आ गया .. जैसे तैसे एक प्रशंसक मिला था और वह भी हाथ से फिसला जा रहा है । निठल्ले मित्रों पर ख़र्च किये गए बिलों का ब्यौरा आँखों के सामने तैरने लगा .. एक सच्चे दोस्त पर क्या एक हज़ार रुपए और ख़र्च नहीं किये जा सकते । मैने फ़ैसला ले लिया और सन्देश भेज दिया -“गल्ती आपने कहाँ की .. गल्ती तो मेरी है जो आप मेरी बातों में खो गईं .. आप अपना नम्बर दीजिये .. पर इस बार चेक ज़रूर कर लीजिये”

“सो स्वीट ..” और पलक झपकते उनका दूसरा नम्बर स्क्रीन पर था ।

मैने फिर एक हज़ार रुपयों की कुर्बानी दी । उनका धन्यवाद का मैसेज आया – “रात ज्यादा हो गई है .. सुबह कॉलेज भी जाना है .. कल शाम को बात करते हैं आज ही के समय”

मैं एक सप्ताह से रोज शाम को उनके मैसेज का इन्तज़ार कर रहा हूँ । मैसेज बॉक्स में झाँकता हूँ तो वहाँ पायलों की छम-छम के स्थान पर रुद्र का ताण्डवी डमरू सुनाई देने लगता है | थक कर आज अपनी फ़्रेण्ड लिस्ट चेक करने बैठ गया तो मुझे उस नाम का कोई दोस्त नज़र ही नहीं आया । जब दोस्तों की संख्या पर नज़र पड़ी तो पॉंच हज़ार में से केवल चार हज़ार नौ सौ निन्यान्वे ही शेष बचे थे ।

 

अरुण अर्णव खरेअरुण अर्णव खरे

डी-1/35 दानिश नगर

होशंगाबाद रोड, भोपाल (म०प्र०) पिन: 462026

ई मेल: arunarnaw@gmail.com

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.