‘कथा विराट’ : इतिहास में कथा और कथा में इतिहास
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साहित्य अकादेमी सभागार, नई दिल्ली में सरदार वल्लभभाई पटेल के जयंती दिवस 31 अक्टूबर 2018 के दिन इस सुधाकर अदीब के ऐतिहासिक उपन्यास ‘कथा विराट’ का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया।

इस अवसर बोलते हुए सुधाकर ने कहा – “यह उपन्यास इतिहास में करवटें लेती एक वृहद कथा है, जिसमें 35 वर्षों का हमारे महान पूर्वजों का एक जीता-जागता इतिहास समाहित है। महात्मा गाँधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटते हैं और वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की एक नई इबारत लिखते हैं। महात्मा गांधी तो उस युग की आत्मा थे। उनके निकटतम अनुयायी सरदार पटेल आगे चलकर राष्ट्र-निर्माता लौहपुरुष हुए। उपन्यास में वे प्रमुख भूमिका में हैं। ‘कथा विराट’ भारतवर्ष की कोटि-कोटि जनता के स्वाधीनता के लिए किये गए संघर्ष, हमारे पूर्वजों के बलिदान और सरदार वल्लभभाई पटेल के कर्मठ जीवन की एक विस्तृत दास्तान है जो 1950 में सरदार पटेल के महाप्रयाण के साथ समाप्त होती है।”

समकालीन चर्चित विचारक एवं समारोह के मुख्य वक्ता सुशील पंडित ने कथाकृति की विशेषता बताते हुए भावपूर्ण शब्दों में कहा कि- ‘कथा विराट’ समय का निर्बाध प्रवाह है। विराट उद्वेलन का निर्पेक्ष साक्षी है। विराट स्थूल का विस्तार ही नहीं है, सूक्ष्म में अंतर्निहित तत्त्व का साक्षात्कार भी है।”

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार और ‘व्यंग्य यात्रा’ पत्रिका के संपादक मुख्य अतिथि प्रेम जनमेजय ने कहा कि- “इस उपन्यास का आरम्भ ही पाठक को अपने कथात्मक मोहपाश में ऐसा बांधता है कि वह ग़ालिब के सुर में कहता है नींद रात भर क्यों नहीं आती? कथा और तथ्य चित्रण में संतुलन ही इसे विराट कथा बनाता है। इस प्रकार के लेखन में अनेक ख़तरे हैं और वे ख़तरे सुधाकर अदीब ने उठाये हैं।”

सुप्रसिद्ध कथाकार चन्द्रकान्ता ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने इस कथाकृति को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हुए कहा कि- “उपन्यासकार की अन्वेषक दृष्टि यथार्थ के पीछे के सच को अनावृत कर, राजनीति की उठापटक, सत्तामोह और षड्यंत्रों का भी बेबाकी से पर्दाफ़ाश करती है। इस दौरान राष्ट्रीय सियासतदानों के कार्यकलापों के बीच जल में कमलवत खड़े सरदार पटेल का चरित्र परत दर परत खुलता जाता है।”

कार्यक्रम का संचालन डॉ नीरज चौबे ने किया। समारोह के प्रारंभ में राजकमल प्रकाशन समूह, नई दिल्ली एवं लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद की ओर से अशोक माहेश्वरी ने बड़ी संख्या में पधारे सभी विद्वानों और साहित्यप्रेमी अभ्यागतों का स्वागत किया।

इस अवसर पर सर्वश्री देव सिंह पोखरिया, सुधाकर पाठक, विजय कुमार राय, ओम सपरा, बलदेव त्रिपाठी, डॉ ओम निश्चल, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, ममता वाजपेयी, प्रो करुणाशंकर उपाध्याय, डॉ हरिशंकर मिश्र, आनंद प्रकाश त्रिपाठी, विवेक भटनागर, अनिता मिश्र, रमा नीलदीप्ति, रूमी मालिक आदि अनेक साहित्यकारों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, हिन्दी प्रेमियों तथा मेरे अनेक परिजन का समारोह में आगमन मेरा सौभाग्य था। मॉरीशस से पधारे श्री सुरेश रामबरन भी समारोह में मौजूद थे। कार्यक्रम समापन के अवसर पर अलिन्द माहेश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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