सूर्यबाला जी की हीरक जयन्ती
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रश्मि रवीजा
जनमदिन तुम्हारा मिलेंगे लड्डू हमको 😃
कल कुछ ऐसा ही समां था ,सूर्यबाला जी की हीरक जयंती और उनके उपन्यास के विमोचन के उपलक्ष्य में आयोजित ‘आभार की एक शाम’ में। उनके बेटे अभिलाष, अनुराग,बेटी दिव्या एवं बहुओं,पोते-पोतियों व परिवार के स्वजनों ने मिलकर इस आत्मीय आयोजन में इतने प्यार से बुलाया था कि मुम्बई के कोने कोने से साहित्यप्रेमी, सूर्यबाला जी के स्नेह के धागे से बंधे चले आये थे। आयोजन जितना ही गरिमापूर्ण था उतना ही आत्मिक स्नेह से लबाबल भी। श्री राजकुमार लाल जी सहित परिवार का हर छोटा बड़ा सदस्य ततपरता से अतिथियों के आवाभगत में लगा हुआ था।
सूर्यबाला दी करीब पाँच दशक से लिख रहीं हैं। उनके समकालीन और उनका लेखन पढ़ते और गुनते हुए बड़ी हुई पीढ़ी को एक साथ मौजूद देखना बहुत ही सुखद था ।
सब एक दूसरे से मिलकर इतने आह्लादित थे कि सूर्यबाला जी के ज्येष्ठ सुपुत्र अभिलाष जी ने तीन बार कार्यक्रम शुरू होने की घोषणा की और फिर रुक गए 😊। वे चाहते तो माइक पर जोर से बोलकर सबसे यथास्थान बैठने का आग्रह कर सकते थे।पर उन्होंने भी इस जश्न भरे माहौल की नब्ज थाम ,सबके खुद ही शांत होकर बैठ जाने का इंतज़ार किया।
वरिष्ठ कथाकारों, समीक्षकों ने सूर्यबाला जी के लेखन के विस्तृत दौर से जुड़े आत्मीय प्रसंग और संस्मरण साझा किए। उसी सुबह अमरीका से आये उनके बेटे अनुराग और प्यारी सी नातिन अदिति ने उपन्यास के बहुत महत्वपूर्ण अंशों का पाठ किया।
सबलोग इतने उत्साह से लबरेज़ थे कि किसी वक्ता को बहुत देर तक सुनने का धैर्य उनमें नहीं था।सूर्यबाला जी ने बड़े स्नेहिल शब्दों में सबका आभार व्यक्त किया। वे उत्सव मूर्ति थीं, पर जरा भी अतिरिक्त साज सज्जा नहीं थी। उनमें वैसी ही सादगी थी जैसी वे किसी भी समारोह में होती हैं 💝•
पर हम उनकी पाठिकायें अति उत्साहित थीं। बच्चे जैसे किसी बड्डे पार्टी में मास्क पहनकर फोटो खिंचवाते हैं। हम सबने बड़ी सी बिंदी लगा, ढेरों सेल्फी ले डालीं ( जिसे एक वरिष्ठ वक्ता के लंबे भाषण, जिसमें वे पूरे उपन्यास का कथानक बयां करने लगे थे के दौरान मैंने फेसबुक पर पोस्ट भी कर दी 😛 )
समारोह में जहाँ कई लोगों से नहीं मिल पाई, साथ तस्वीरें नहीं ले पाई वहीं कई अनजान चेहरों से पहली बार रूबरू हुई ।इस से पहले एक दूसरे को फेसबुक के माध्यम से ही जानते थे । तस्वीरें पोस्ट करने पर भले ही कुछ लोग व्यंग्य करें पर फायदा भी है, झट से पहचान हो गई। वरना जानते हुए भी अजनबियों की तरह गुजर जाते ।
मन को तृप्त करने वाले कार्यक्रम के बाद पेट को संतृप्त करने वाला सुस्वादु भोजन भी था।
बड्डे- पार्टी था फिर रिटर्न गिफ्ट कैसे ना होता 😃 लाल परिवार की तीसरी पीढ़ी छोटे छोटे प्यारे से पौधे उपहारस्वरूप लिए दरवाजे के पास खड़ी थी।
एक बहुत ही भरी-पूरी आत्मीय शाम के लिए सूर्यबाला दी के पूरे परिवार का तहे दिल से बहुत बहुत आभार 🙏
(संपादकीय टिप्पणीः मुझे इस इमोशनल शाम में अपने पुराने मित्रों के चेहरे दिखाई दिये – विश्वनाथ सचदेव, मनमोहन सरल, राजेन्द्र गुप्ता, दामोदर खड़से, सुधा अरोड़ा, मालती जोशी, आभा बोधिसत्व, कविता, दीप्ति, विभा रानी, सुमन, कैलाश सैंगर… आदि आदि । रश्मि को धन्यवाद।) – यह रिपोर्ट रश्मि रवीजा की फ़ेसबुक वॉल से ली गई है।
रश्मि रवीजा 