दो कविताएं – प्रेमा झा
- गहरा और पानी
उदात्त भावनाओं से तुम्हें प्रेम करती हूँ
बिना बदले में चाहे कि तुम भी मुझे प्रेम करो
प्रेम की चेतना आसान नहीं
भावों की धरातल तक उतर कर
गोताखोर हो वापस ज़मीन पर लौटना होता है
तुम किनारे देर तक बैठे हुए हो खामोश!
शायद यह सोचते हुए कि
प्रेम सुंदर है
तुम प्रेम का चित्र खींचने की
नाकाम कोशिश करते हो पहरों
गीत गाते हो रूहानी
और काल्पनिक बातें करते हो
तभी मैं उठती हूँ
और लगा लेती हूँ छलांग सागर में
उर्मियाँ,
लहरें,
तूफ़ान चीरती
बहुत भीतर जाती हूँ
और देख लेती हूँ गहरे
इसलिए मेरी आँखों को
तुम सागर कहते हो!
चेहरे पर नमकीनियत
पलकों के कोरों में पानी
और आफ़ताबी किरणों से मेरा ज़िस्म शहाबी हुआ है
क्योंकि मैं प्रेम की पीड़ा में हूँ!
तुम किनारे बैठे हुए वहीं पर
मेरी लिखी प्रेम कवितायेँ पढ़ रहे हो
और प्रेम की सुन्दरता वाली बात पर
चित्रकारी के हुनर को आजमाने लगते हो!
तुम्हारी ऊंगलियों का ब्रश मुझे सराबोर कर देता है
अथाह जल सागर के बूंदों-सा
मैं अब चित्र से बाहर आती हूँ
फिर एक प्रेम-कविता मुक़म्मल करने की कोशिश में
तरंग-ताल पर नाचने लगती हूँ!
2.
- हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं था…
तुमने कहा, प्यार मत करना
मैंने कहा, मैं करुँगी
तुमने कहा, चुप रहना
मैंने कहा कविताओं में लिखूंगी
तुमने कहा, शादी नहीं करूँगा
मैंने कहा, मैं अकेली रह लूंगी
तुमने कहा, मैं सुंदर हूँ
मैंने कहा, मैं रचनाकार हूँ
तुमने कहा, तुम्हारे साथ सोना चाहता हूँ
मैंने कहा, तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ
तुमने कहा, सिगरेट छोड़ दो
मैंने कहा, अकेली पागल लड़की
फिर किसी से बेवजह प्यार कर बैठेगी
तुमने कहा, मेरे साथ वोदका पीओ
मैंने कहा, अपने होशोहवास में तुम्हारी गोद में सर रखना चाहती हूँ
तुमने कहा, मुझे छोड़ दो
मैंने कहा, मुझे कुछ नहीं चाहिए
तुमने कहा, क्या चाहती हो आखिर!
और
मैंने उसे कस कर चूम लिया
हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं था!
========================================================
नाम: प्रेमा झा , जन्म: 21 नवम्बर, 1987 , शिक्षा: एमबीए (एच.आर एंड मीडिया) NIILM स्कूल ऑफ़ बिज़नस, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, सम्प्रति: मेडिकल कंटेंट राइटर/मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत।
देश की प्रतीष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कवितायेँ और कहानियाँ प्रकाशित. चर्चित रचनाओं में लव जेहाद, ककनूस, बंद दरवाज़ा, हवा महल और एक थी सारा विशेष तौर पर पाठकों द्वारा पसंद की गई. हंस में छपी कहानी “मिस लैला झूठ में क्यों जीती हैं?” खासा चर्चा में रही है.), फ़िलवक्त अपने एक उपन्यास को लेकर शोधरत हैं.
इनकी रचनाओं का योगदान कुछ मुख्य पत्रिकाओं जैसे; समकालीन भारतीय साहित्य, नया ज्ञानोदय, परिकथा, पाखी, हंस, हमारा भारत, बया, जनपथ, संवदिया, बिंदिया, प्रगतिशील्प आकल्प, आरोह-अवरोह, गर्भनाल, लोक प्रसंग, कालजयी, माटी, युद्धरत आम आदमी, मुक्त विचारधारा, दैनिक हिन्दुस्तान, दिल्ली की सेल्फी आदि में रहा है|
पता: बी-209, ईस्ट ऑफ़ कैलाश, नई दिल्ली, ई-मेल: prema23284@gmail.com, मो. 9654322128