डॉ. पद्मेश गुप्त

‘पुरवाई’ पत्रिका का पहला अंक 1997 में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2014 तक ‘पुरवाई’ का सम्पादन एवं प्रकाशन का ज़िम्मा डॉ. पद्मेश गुप्त ने संभाला। बीच में क़रीब दो वर्षों के लिये पद्मेश गुप्त ‘प्रवासी टुडे’ के संपादन में व्यस्त हो गये तो तेजेन्द्र शर्मा ने यह ज़िम्मेदारी संभाली।

‘पुरवाई’ ने अपने जीवनकाल में अनेक लेखकों और कवियों की रचनाओं को पाठकों तक पहुंचाया है। इस सेतु से भारत, यू.के. और विश्व की अनेक कृतियों ने यात्रा की है।

हिन्दी के वैश्विक साहित्यिक मंच की भूमिका लगातार निभाते हुए ‘पुरवाई’ ने विश्व  के अनेक हिन्दी प्रेमियों को जोड़े रखा। इन सालों में यू.के. में हिन्दी को लेकर कब क्या हुआ, ‘पुरवाई’ का प्रत्येक अंक साक्षी है।प्रवासी भारतीयों के जीवन के अनेक पहलुओं को लेखों, कहानियो और कविताओं के माध्यम से ‘पुरवाई’ अपने अंको में समेटे हुए है।

डॉ. पद्मेश गुप्त के अनुसार, “‘पुरवाई’ के संपादक के रूप मुझे कुछ ऐसी विभूतियों के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ जिनके कारण यह पत्रिका अपने मूल उददेश्यों को पाने में सफल हो पाई।

‘पुरवाई’ के नामकरण से लेकर लोकार्पण तक पत्रिका की रूपरेखा को मार्गदर्शन दिया था डा. सिंघवी ने। सिंघवी जी और कमला जी के संरक्षण और मार्गदर्शन में देखते ही देखते यह पत्रिका एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान बन गई।

हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य को लेकर जन्मी ‘पुरवाई’ ने अपने जीवनकाल में ब्रिटेन के न जाने कितने नए रचनाकारों को मंच दिया है,  भारत के कितने ही लेखकों की रचनाओं द्वारा उन्हें प्रवासी भारतीयों से परिचित कराया है और प्रवासी भारतीयों का एक विशेष  पाठक वर्ग तैयार किया है।”

हमारा यही प्रयास रहा है कि लेखन के माध्यम से हम प्रवासी भावनाओं को संग्रहीत कर सकें और प्रवासी विचारों को प्रकाश में लाएं।

मुझे प्रसन्नता है कि तेजेन्द्र शर्मा जी के संपादन में ‘पुरवाई’ अब ई-पत्रिका का स्वरुप ले रही है जिसके लिए मै ह्रदय से तेजेन्द्र  जी को शुभकामनायें और बधाई देता हूँ।

डॉ पद्मेश गुप्त, (संस्थापक सम्पादक एवं प्रकाशक ‘पुरवाई’ पत्रिका।)

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