साहित्य समाज की वह धूरी है जिससे किसी भी समाज और देश के बारे में वास्तविक स्थिति का पता चल जाता है। साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ-साथ संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, व्यवस्था और उसके इतिहास पर भी नजर डालता हुआ दिखाई देता है। साहित्य के बगैर किसी भी राष्ट्र की कल्पना करना असंभव है। क्योंकि साहित्य ही राष्ट्र का सबसे बड़ा दस्तावेज कहा जा सकता है, जिसे पढ़कर आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन होता है। साहित्य अपनी सजगता से समाज को, राष्ट्र को और पूरे विश्व को जागृत करता है। साहित्यकार की कलम जब चलती है तो उसके अंदर बहुत कुछ समाहित हो जाता है और वह अपने से ऊपर उठकर उस सारी व्यवस्था को लिखता है, जो वास्तव में घट रही होती है या जिसकी अभी संभावना हो रही है।
वह त्रिकालदर्शी की तरह अपने काम को अंजाम देता हुआ आगे बढ़ जाता है। साहित्य केवल किताबों तक सीमित नहीं है, वह हमारे मन मस्तिष्क पर हमेशा छाया रहता है। हर व्यक्ति के अंदर एक कवि और कहानीकार नहीं बसता है। साहित्य एक दिन या  एक रात में दुनिया के सामने प्रकाश में नहीं आता। उसके लिए वर्षों-वर्ष की मेहनत लगती है। साहित्य अपने आप में एक ऐसा सत्य है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। साहित्य सच्ची साधना का दूसरा नाम है। 
अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ से संबद्ध डॉक्टर ज्वाला प्रसाद मिश्र शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुंगेली, छत्तीसगढ़ के हिंदी विभाग द्वारा सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के कहानी संग्रह अन्तहीन पर  एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में भारतीय और विश्व मंच के साहित्यकारों को शामिल किया गया। इस कार्यक्रम में डॉ. बेचैन कंडियाल जी का विशेष योगदान रहा। उन्होंने पूरा समय इस मंच पर विद्वानों को दिया और अपनी वाणी से भी लोगों को कृतार्थ किया तथा डॉ. रमेश पोखरियाल जी के जीवन पर भी प्रकाश डालते हुए उनके साहित्य जीवन को भी हमारे सामने प्रस्तुत किया।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बी.एल. गौड़ ने साहित्य के विषय में लंबी चर्चा करते हुए डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जी के साहित्य जीवन पर प्रकाश डाला साथ ही उन्होंने अंतहीन कहानी संग्रह की कहानियों को समाज की स्थिति और उस पर जीता जाता दस्तावेज कहा।  इतना ही नहीं डॉक्टर बी एल गौड़ ने निशंक जी के साथ अपने आत्मीय रिश्तो के साथ-साथ साहित्य रिश्तो पर भी लंबी चर्चा करते हुए उनके मृदुल और व्यवहारिक स्वभाव के बारे में सभी लोगों को परिचित कराया। इस कार्यक्रम में आगे बात करते हुए डॉ. रमा ने भी अपनी बात को रखा और निशंक जी के कहानी संग्रह अंतहीन पर अपने विचारों को रखा। 
कार्यक्रम के केंद्र में जो सबसे बड़ी चर्चा का विषय रहा वह आईसीसीआर चेयर हिंदी, पोलैंड से डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला की ओजस्वी वाणी रही। डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला प्रवासी हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध समीक्षक और आलोचक के रूप में आज विश्व विख्यात है।उनकी ओजस्वी वाणी ने इस कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। उन्होंने अंतहीन कहानी संग्रह के हर पक्ष को अपने तरीकों से रखा और कहानी संग्रह को सांस्कृतिक परिवेश, उसकी स्थिति को हमारे सामने रखा। डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी के कहानी संग्रह वाह जिंदगी पर भी डॉ सुधांशु कुमार शुक्ला ने अद्भुत व्याख्यान दिया था।
डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला ने बताया कि वह पोलैंड में किस प्रकार वाह जिंदगी कहानी संग्रह को बच्चों के सामने पढ़ा भी रहे हैं और उस पर चर्चा भी कर रहे हैं। शुक्ला जी ने अंतहीन कहानी संग्रह की लगभग सभी कहानियों पर अपना महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया। कहानियों के हर एक पात्र पर अपने विचार थी उन्होंने रखें। संस्कृति के चितेरे डॉ निशंक जी को उन्होंने सरल और सीधी बात लिखने वाले रचनाकार के साथ-साथ व्यवस्था और जनजीवन पर लिखने वाला साहित्यकार बताया। इतना ही नहीं संस्कृति निशंक जी के अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है, यह हमें उनके साहित्य से और उनके व्यावहार से पता चलता है। 
डॉ. नीना शर्मा जी ने डॉ. रमेश पोखरियाल जी को संवेदनाओं का कहानीकार कहा और बताया कि उनकी कहानियाँ पाठक को संवेदना से भरती हैं। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. विनय पाठक जी ने अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मान मिलने पर उन्हें बधाई दी और यह कहा कि इनकी कहानियाँ पहाड़ी जीवन को दर्शाती हैं और जीवन की जिजीविषा को लेकर इनके पात्र दिखलाई पड़ते हैं।
इस वेबिनार का संचालन डॉ. चंद्रशेखर जी ने किया और सभी विद्वानों का स्वागत कॉलेज की प्राचार्या ने किया। इस कार्यक्रम में विश्व के अलग-अलग देशों के विद्वानों ने भागीदारी की पोलैंड से डॉ. नवीन गुप्ता भी शामिल हुए और उन्होंने भी कार्यक्रम को सराहनीय और सुखद बताया। भारत से भी बहुत सारे विद्वानों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया प्रसिद्ध स्तंभकार डॉ. नीरज भारद्वाज ने भी इस कार्यक्रम की सराहना की और डॉ. निशंक जी के साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने की बात को कहा।

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