काव्य भाषा सामान्य भाषा के आधार पर विकसित होकर भी विशिष्ट होती है | भाषा सीधी गति मे चलती है, जबकि काव्य भाषा वक्रीय गति में कभी आड़ी कभी तिरछी चलती है | चयन एवं विचलन के आधार पर काव्य भाषा एक विशिष्ट सौन्दर्य की उत्पत्ति करती है यही कवि प्रतिभा है | काव्य जल तरंगिणी है, निर्झरिणी है, भावों का उद्वाम प्रवाह है | सौन्दर्य मानव की चिर-पिपासा है, चिन्तन, मनन उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है | प्रकृति एवं मानव का चिर सनातन सम्बंध है, यह धरा, नील गगन, उतुंग पर्वत, हिलोर मारती नदियाँ सभी उसके चिर सहचर हैं | चिड़ियों की चहचहाहट, कोयल की कूक सभी मानव भावों को आकर देते हुए कविता के रूप में प्रस्फुटित हो उठते हैं | भाषा सुघड़ रूप मे भावों को आकर देती है | मन दु:ख रूपी आँसू बन बरसते हैं | मन सुखी है तो प्रकृति का कण-कण उल्लासमय हो उठता है | ये भाव जिस भाषा में प्रकट होते हैं, वही काव्य भाषा है | यह काव्यभाषा सरल है तरल है, भावगर्भित है, व्यंग है, किलष्ट है, अदभुत है | प्रत्येक कवि अपने कविता में अपने भावानुकूल भाषा का प्रयोग करता है | पुष्प के सुवास को जिस तरह पुष्प से पृथक नहीं किया जा सकता ठीक उसी प्रकार किसी भी कवि की भाषा को उसके व्यक्तित्व से अलग नहीं देखा जा सकता | भाषा और कवि का घनिष्ठ सम्बन्ध है | ‘शब्दार्थों सहित काव्य’ जो काव्य की परिभाषा दी गई है |युग्म है बिना शब्द और अर्थ के काव्य हो ही नहीं सकता | अत: काव्य भाषा युग्म स्वरूप है, रसयुक्त है, छन्दयुक्त है, अलंकार से परिपूर्ण है | ऐसी भाषा नि:संदेह भाषा का उत्कृष्ठ रूप होगा | यह भाषा की अपनी निजी विशेषता है, सुबह की भोर, भिनसार, सबेरा किसी भी शब्द से कवि अभिव्यक्त कर सकता है | वह ‘कमल’ को ‘जलज’, ‘नीरज’, ‘पंकज’ जो भी सौन्दर्योपयोगी होगा चुन कर रख सकता है | काव्य भाषा कवि की स्वत: निर्मित भाषा है, एक लय है, एक ताल है , एक सुर है, ह्रदय से निकली स्वर लहरियाँ है अत: अदभुत है |
इस प्रकार नई कविता की भूमि विशाल है, वह देश काल की सीमा से परे है | हास है, विलास है, दु:ख है, सुख है, मैहगाई है, अत्याचार है, सभी के केंद्र मे नई कविता पनपती है, मचलती है, और अपनी जगह बनाती है | जीवन के सत्यों की वास्तविक भूमि पर नई कविता का बीज प्रस्फुटित होता है | आत्मगरिमा, मानव चेतना, मुख्य है, भले छन्द, रस, अलंकार छूट जाये, पर भावों का आवेग प्रबल है | जीवन के अस्थिरता के चित्र और नये विश्वास के स्वर हैं –
‘यह समन्दर है
यहाँ जल है बहुत गहरा,
यहाँ हर एक का दम फूल आता है,
यहाँ तैरने की चेष्टा भी व्यर्थ लगती |
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कागज़ की डोंगिया