प्रो. रुचिरा ढिंगरा का लेख – सामाजिक एवं राष्ट्रीय संदर्भों में छायावादी काव्य
आदि रचनाएं इसी बात का प्रमाण हैं। माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्राकुमारी चौहान, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामनारायण पाण्डे, केदारनाथ मिश्र इत्यादि ने भी राष्ट्रीय बोध से ओतप्रोत रचनाएं लिखी। इस दृष्टि से माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा महत्वपूर्ण है। युगयुगान्तर तक जनमानस इससे देशभक्ति की प्रेरणा ग्रहण करेंगें।
“चाह नहीं मैं सुरबाला के
“देखो विश्व में हमारा कोई उपमान नहीं था
‘‘अभिमन्यु षोडश वर्ष का फिर क्यों लड़े रिपु से नहीं ,
सुमित्रानंदन पंत जी का भी मानना है कि समय के काल प्रवाह के साथ ही प्राचीन आदर्श अपना सौंदर्य खो देते हैं अतः रुढ़ियों से मुक्त होकर व देश प्रेम की भावना से ओत–प्रोत हमें नए आदर्शों का अन्वेषण करना ही होगा । पंत जी मानते थे कि सामाजिक चेतना में परिवर्तन लाकर तथा पुरातन परंपराओं के नष्ट होने पर ही प्रगति संभव है ।
सारांशत: छायावादी कवियों की मुक्ति की यह इच्छा व्यक्ति, सामाजिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर विद्यमान थी । इन कवियों ने राजनीति को विषय बनाकर बहुत कम रचनाओं का सृजन किया तथापि स्वतंत्रता और राष्ट्र प्रेम की अनेक रचनाएं इस कालखंड में दृष्टिगत होती हैं।
संदर्भ —
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बहुत अच्छा लेख है रुचिरा जी आपका! हमने बिल्कुल पूरा का पूरा पढ़ा।छायावादी चार स्तंभों के दर्शन करके मन प्रसन्न हो गया। जितने भी उदाहरण आपने उद्धृत किए सब एक से बढ़कर एक हैं।कुछ पढ़े हुए हैं कुछ बिना पढ़े हैं ,लेकिन उस समय की रचनाएं इतनी अधिक श्रेष्ठ होती थीं व समयानुकूल थीं जिनको पढ़कर आज भी मन आप्लावित हो जाता है। आपका यह लेख बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है। काफी मेहनत की है आपने इस पर। काश आज का भारत इन चीजों को समझ पाए। जिन नेता लोग इन चीजों को पढ़ ही नहीं पाए हैं वह क्या शासन को संभालेंगे, फिर चाहे वह कोई भी हो।
बेहद बेहद शुक्रिया आपका इस लेख के लिए।