स्त्री लेखन एक सामाजिक सत्य और नारी द्वारा अपनी अस्मिता की सुरक्षा की चुनौती के रूप में अस्तित्व में आया।  स्त्री ने  समाज, परिवार और उनके मध्य अपने स्थान को अपने दृष्टिकोण से देखना चाहा। सदियों से पितृसत्तात्मक व्यवस्था में वर्ग, धर्म, मूल्यों संस्कारों के नाम पर उसका शोषण होता आया है।  स्त्री कथाकारों ने अपनी कहानियों  में समाज के सभी पक्षों को सूक्ष्मता से उद्घाटित किया है। उन्होंनें स्त्री मन की छटपटाहट , संवेदना को  लिपिबद्ध किया है। प्रारंभ कालीन स्त्री कथाकारों ने कहानियों में सामाजिक कुरीतियों( पर्दा प्रथा, दहेज, बाल विवाह ) पुनर्जन्म, दान, पूजा, धार्मिक कर्मकाण्ड, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, वीरांगनाओं की वीरता, साहस, दृढ़ता  आदि को अपना विषय बनाया।इस समय नीतिपरक कहानियों का भी प्रणयन हुआ। श्रीमती सुबीरा , श्रीमती ललिता देवी, सुश्री कृष्णा कुमारीश्रीमती गौरी देवी, श्रीमती गार्गी बाई, श्री चित्रकूट की बुढ़िया आदि का नाम उल्लेखनीय है सुश्री कृष्णा कुमारीश्रीमती गौरी देवी पहले से ही सामाजिक समस्या प्रधान कहानियों की रचना कर रही थीं। श्रीमती सुबीरा कीउत्तम क्या है?’  कहानी वर्णाश्रम धर्म की सापेक्षता में कर्त्तव्य पालन की श्रेष्ठता सिद्ध करती है। कथानायक नरेश श्रेष्ठतम आश्रम के विषय में अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए ब्रह्मचारी की संगति में रहता है और अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कर्त्तव्य का समुचित पालन करने से ही मानव जीवन सफल सार्थक बनता है। विवेच्य कहानी में उद्देश्य की प्रधानता के कारण अन्य तत्व गौण हो गए हैं। कहानी वर्णात्मक शैली में है यथा-” वह राजा जिसको थोड़ी दूर जाने की आवश्यकता होती थी, तो अपने कीमती से कीमती घोड़े, बग्घी और गाड़ियों पर चढ़कर जाया करता था, वह राजा जो खाने के समय अनेकों भांति के सुस्वादु भोजन सम्मुख रखें हुओं पर बैठा करता था, वह राजा जो कीमती से कीमती वेशधारण करने वाला था, राज्य को अपने एक मंत्री के स्पुर्दकर साधारण देश में, सन्यासी के साथ ही रुखीसूखी रोटी जो मिलेगी भी वा कभी भी मिलेगी खाने में संतुष्ट हो ,नंगे पांव पैदल ही उस युवक सन्यासी के साथ चल देता है।“(1)(हिंदी कथासाहित्य के विकास में महिलाओं का योग, डॉ.उर्मिला गुप्ता, पृष्ठ 81 पर उद्धृत)
श्रीमती ललिता देवी कीचतुर बहूकी कथा नायिका धर्मात्मा सेठ की पुत्री थी किंतु उसके ससुराल वाले याचक को द्वार से निराश लौटा देते थे कथान्त  में वह अपने घरवालों को दान की ओर प्रवृत्त करने में सफल होती है। कहानी में दान के महत्व को स्पष्ट किया गया है।  पुत्रवधू एवं सेठ की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए लेखिका  ने लिखा है -” सेठ चतुर था।  बहू की बात  का उस पर बड़ा प्रभाव पड़ा उसने अपनी स्त्री से कहा कि बहू को समझा दो कि अब किसी  भिक्षुक को खाली ना लौटने दे चने की रोटियां साधुओं को दिया करें “(2) (स्त्री  धर्म शिक्षक , श्रावण 1969 , पृष्ठ 78 ) कहानी की भाषा व्यवहारिक है तथा इसकी शैली इतिवृत्तात्मक है   सुश्री कृष्णा कुमारी ने अपनी लघु कहानीरामदीन की कहानीमें ऐसे वृद्ध पुरुष का अंकन किया है जो ना केवल स्वयं धर्मानुसार व्यवहार करता है अपितु अपने संपर्कागत  व्यक्तियों को भी सत्पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता है।  एक बालक को चिड़ियों का शिकार करते देख वह उसे समझाता है और उसका तीर कमान ले लेता है।  वृद्ध की मृत्यु के पश्चात उसके घर से तीर कमान मिलता है जिससे लोगों को आशंका होती है कि अवश्य  वह कोई गुप्त शिकारी होगा   लेखिका ने प्रस्तुत कहानी के माध्यम से इस तथ्य को रेखांकित करने का प्रयास किया है कि व्यक्ति को लोकापवाद  पर  ध्यान देकर स्वयं सत्य का अन्वेषण करना चाहिए कहानी की भाषा शैली सरल , सुबोध एवं प्रभाव युक्त है। पंची  देवी सृजितकृतध्न की निंदाकहानी में राजधर्म नामक वक, अनाचारी  राजपुत्र को ना केवल श्रद्धा सत्कारपूर्वक रखता है उसे अपने राक्षस मित्र विरूपाक्ष से मनचाहा स्वर्ग भी दिलवाता  है रात्रि में अनाचारी, राजधर्म को बांधकर खाने का विचार करता है किंतु विरुपाक्ष के भेजे राक्षस उसकी रक्षा करते हैं क्रुद्ध विरुपाक्ष कृतध्न अनाचारी के टुकड़ेटुकड़े कर देता है।  नैतिक मूल्यों की स्थापना के उद्देश्य से रचित इस कहानी में संवादों का अभाव है। कथारंभ  तथा कथांत  दोनों में उद्देश्य कथन है भाषा शैली सहज उपदेशात्मक है।
श्रीमती गौरी देवी कीएकता ना होने का फलतीन मित्रों ब्राह्मण , क्षत्रिय और नाई की कहानी है जिन्होंने भूख लगने पर खेत से चने उखाड़ कर खा लिए खेत के मालिक जाट ने अपने विवेक से तीनों में फूट डालकर उनकी भरपूर पिटाई की लेखिका ने मनोरंजक शैली में एकता के महत्व को प्रतिपादित करते हुए लिखा है -” प्यारी बहनों ! यह  उन लोगों का स्वार्थ ही था जिसने  सबकी यह  दुर्दशा कर डाली। यदि वे तीनों पहिले ही से मिल जाते तो क्या वह जाट कभी इस तरह का बर्ताव करने पाता और सब  सकुशल घर लौट आते इससे तुमको चाहिये  कि कभी स्वार्थ की ओर ना देखो और सर्वदा मेल के साथ रहकर फूट को सर्वदा के लिए अपने घर से बाहर निकाल दो   संसार के कठिन से कठिन कार्य एकता से सिद्ध हो जाते हैं “(3)(हिंदी कथा साहित्य के विकास में महिलाओं का योग , डॉ उर्मिला गुप्ता , पृष्ठ 82 पर  उद्धृत ) श्रीमती गार्गी  बाई कीउचित न्यायलघु आख्यायिका सत्य घटना पर आधारित रचना है जिसमें एक धनी सौदागर परदेश जाते समय अपने मित्र के पास कुछ जवाहरात ( दस लाल और दस हीरे) धरोहर रूप में रखता है।  लौटने पर जब वह वापस मांगता है तो मित्र अज्ञानता प्रकट करता है।  न्यायाधीश श्री मर्यादा रामन अपने विवेक से अपराधी का पता लगाते हैं। विवरणात्मक  शैली में रचित कहानी में संवादों का अभाव है। भाषा सर्वथा व्याकरणिक अशुद्धियों से मुक्त नहीं है
         छद्म नाम से कहानी लिखने वाली चित्रकूट की बुढ़िया की  ‘विशाखा ‘, ‘ पहले जन्म की कथा ‘ , ‘मेरी ओर मत देखोतथासुभद्रा कुमारी‘  चार धार्मिक कथाएं उपलब्ध  हैं।  ‘ विशाखामें नायिका का पति धर्म प्रचार के लिए बारह वर्षों के लिए विदेश जाता है और  जाते समय पत्नी को एक मूंगे  की माला देता हैं।  माला की विशेषता थी कि पति पर कोई संकट आने पर वह निष्प्रभ हो जाती है सुभद्रा कुमारीकहानी  में नरवाहन और मुक्ता नामक दंपति की चमत्कारिक घटना , उनके द्वारा सुभद्रा कुमारी और उसकी सहेली को अदृश्य कर पुनः प्रत्यक्ष कर देना , उबलते। तेल का शीतल होना , विवाह में जादुई दृश्यों की योजना का बाहुल्य होने से कथा संघटन शिथिल हो गया है।पहले जन्म की कथातथामेरी ओर मत देखोकहानियों में अंधविश्वास पूर्ण घटनाओं का आधिक्य होने से प्रौढ़ता का अभाव है। पात्र परिस्थितियों के अनुसार संचालित हैं। उनका चरित्र चित्रण करने के लिए लेखिका ने प्रायः प्रत्यक्ष शैली का अवलम्ब लिया है।बालूपुर ग्राम में चेतसिंह रहते हैं।बड़े जमींदार हैं और तीस हल की खेती भी होती है। अतिथि सेबी, मिलनसार और बड़े ठसक वाले हैं।अपने टेक के पक्के हैं।जिस पर अड़ जाते हैं उससे हटते कदापि नहीं।“(4)(पहले जन्म की कथा , चित्रकूट की बुढ़िया )लेखिका ने पतिपरायणता की पराकाष्ठा को चित्रित करते हुए लिखा है-” निदान कुमारी ने कड़ाहे के पास जाकर शपथपूर्वक कहा यदि इस पागल को छोड़कर और किसी पुरुष से मेरा संसर्ग हुआ हो तो तप्त तेल मेरे लिए शीतल सलिल के समान हो जाय।“(5)(सुभद्रा कुमारी , चित्रकूट की बुढ़िया ) अन्य कहानियों की तुलना मेंमेरी ओर मत देखोके संवाद दीर्घ हैं। लेखिका देश काल के प्रति सजग हैं।बंगाल में गंगासागर प्राचीन तीर्थ है यहां गंगा और सागर का संगम है बड़ा ही रमणीक स्थल है पास ही सुंदरवन है जो प्राकृतिक दृश्यों का भंडार है बड़ा ही पुनीत तीर्थ है। सुंदरवन वास्तव में सुंदरवन है।“(6)( मेरी और मत देखो ,श्री चित्रकूट की बुढ़िया ) लेखिका की भाषा परिमार्जित , तत्सम बहुला , पात्रानुकूल है सूक्ति वाक्यों से भाषा में सजीवता आयी है।मनुष्य की मनोवृत्तियां स्वभाव से ही चंचला हुआ करती हैं चाहे स्त्री हो या पुरुष।“(7)( सुभद्रा कुमारी , श्री  चित्रकूट की बुढ़िया)  ‘  ज्योतिपत्रिका के तीन अंकों में प्रकाशित संवाद प्रधान कहानीदो सखियों  का संवादकिसी अज्ञात महिला द्वाराएक देवीछद्म नाम से रचित है। दो सखियों सरला और विमला के विस्तृत संवादों द्वारा तदयुगीन धार्मिक  क्षेत्र में व्याप्त अंधविश्वास को व्यक्त किया गया है। स्वामी दयानंद की विचारधारा के अनुसार नारी शिक्षा और स्वावलम्बन पर बल दिया गया है।  नारी की तत्कालीन स्थिति का अंकन करते हुए विमला कहती है -“आप कई बार कह चुके हैं कि आर्य समाज की गति मंद हो रही है ।आज उसी विषय पर सरला के साथ बहुत देर तक बातचीत होती रही। उसने मुझे भली भांति यह  दर्शाया कि जब तक आर्य देवियां स्वयं अपने पैरों खड़ी होकर धर्म प्रचार तथा अपने सुधार के साधनों पर नहीं विचारेंगी  तब तक यह मंद गति प्रचण्ड नहीं हो सकती।“(8)              ( ‘ ज्योति ’ , आश्विन 1978 , पृष्ठ 337 – 338 ) कहानी में तत्सम शब्दावली, संक्षिप्त सरल वाक्यों का प्रयोग किया गया है सभी धार्मिक एवं नीतिपरक कहानियां यद्यपि तदयुगीन संकुचित मानसिकता को चित्रित करती हैं किंतु उसके निराकरण का कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करती।
         भारतेन्दु द्विवेदी युग में  राष्ट्रीय विचारधारा से अनुप्राणित होकर साहित्य लिखा गया किन्तु उस समय महिलाओं का योगदान नगण्य रहा। घर परिवार के सीमित परिवेश , सामाजिक कुरीतियोंअध्ययन की सुविधाओं के अनुपलब्ध होने पर भी कुछ शिक्षित महिलाओं में सामयिक राजनीति और तत्संबंधी गतिविधियों के प्रति समुचित जागरूकता मिलती है प्रायः सभी कहानियां किसी ना किसी रूप में गांधीजी के असहयोग आंदोलन एवं चरखा अभियान से संबंधित हैं। मुसम्मात ठकुर सुहाती कीबहू का सपना‘, सुश्री जवन्द कौर की  ‘घंटी बज गई ‘, वनलता देवी कीनवीन नेता ‘, तथा हेमन्त कुमारी चौधरानी कीहिंदी माता का विलापइसी श्रेणी की रचनाएं हैं। उत्तम शैली में रचित मुसम्मात ठकुर सुहाती  की कहानीबहू का सपनामें पति के मरणोपरांत सेठ की पत्नी को उसके ससुराल की एक स्त्री अपना विचित्र स्वप्न सुनाती है। वह स्वप्न में एक सभा में जाती है जहां अंग्रेज वृद्धायें  चरखा चला रही थी और महात्मा गांधी भाषण दे रहे थे। कथारंभ विधवा के सामाजिक जीवन और बहू के चित्रण से हुआ है कहानी के अंतिम दो पृष्ठों में बहू के स्वप्न का ही अंकन है कथानक , उद्देश्य , संवाद  योजना , चरित्रचित्रण सभी दृष्टि से कहानी कमजोर है श्री जसवंत कौर कीघंटी बज गईकहानी ( घंटी बज गई , मै वारी , चर्खा) तीन   शीर्षकों में विभक्त है।घंटी बज गईतीन कन्याओंमोहिनी , कृष्णा और रोहिणी की कहानी है मैं वारीमें सत्या की विदेशी वस्तुओं की प्रशंसा से क्रोधित पति मोहन का उसकी पिटारी को फेंकने का अंकन है वह और उसकी मां सत्या को चरखा कातने का परामर्श देते हैं।चर्खाकथांश में पहले की दोनों कथाओं का परस्पर संबंध दिखाया गया है। मोहन द्वारा सत्या की फेंकी पिटारी  रोहिणी के सिर पर लगती है जिससे वह अचेत हो जाती है। चेतना लौटने पर वह कृष्णा को अपने घर चर्खा कातते देखती है। कहानी में स्वदेशी प्रचार ,विदेशी बहिष्कार के सिद्धांत पर बल दिया गया है। भाषा व्याकरणिक अशुद्धियों से युक्त है।
सुश्री वनलता देवी कीनवीन नेतारेखाचित्रात्मक शैली में रचित चरित्र प्रधान कहानी है।  लाला नत्थूमल यशोलिप्सा के कारण असहयोग आंदोलन का समर्थन और राज्य द्रोही भाषण देने के अपराध में जेल जाते हैं चार महीने बाद जब वे जेल से छूटते हैं तब उनकी वास्तविकता से अनभिज्ञ जनता उनका खुलकर स्वागत करती है कथानक शिथिल है। समकालीन  राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश डालने के कारण कहानी का महत्व अवश्य है लेखिका अपने उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग करते हुए लिखती हैं -”  इस समाचार को पढ़कर  लालाजी की आंखें चमक उठीं। उन्होंने सोचा जब एक साधारण विद्यार्थी ऐसा महान गौरव प्राप्त कर सकता है तो मैं क्यों नहीं ऐसी ही प्रतिष्ठा का पात्र हो सकता?”(9)(नवीन नेता, सुश्री वनलता देवी) सुश्री सरस्वती देवी की विमला और कमला ककी बातचीत संवादात्मक शैली में रचित उद्देश्य प्रधान कहानी है जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार स्वदेशी वस्त्रों के प्रयोग पर बल दिया। हेमंत कुमारी चौधरानी नेहिंदी माता का विलापकहानी में हिंदी की मुक्तकेशी वनदेवी के रुप में परिकल्पना की है जो अपनी उपेक्षा से दुःखी होकर ब्रजभूमि में यमुना में देहत्याग करना चाहती है।इसी समय गांधीजी अनेक भारतीयों के साथ आते हैं और उन्हें सांत्वना देते हैं कि समाज के विविध वर्गों के लोग हिंदी के पुनरुत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं। लेखिका के कथनानुसारआज छोटे से बालक पर्यन्त अंग्रेजी फारसी बोलकर मन बहलाते हैं….. मेरी सती साध्वी कन्याएं भी तुलसी रामायण के बदले शेक्सपियर, मिल्टन के काव्य और नाटक पढ़ने के लिए उत्सुक हो रही हैं। वह भी विदेशीय भाषा से मंडिता होने में अपना गौरव समझती हैं।“(10)(हिंदी कथा साहित्य के विकास में महिलाओं का योग , डॉ उर्मिला गुप्ता , पृष्ठ 89 पर  उद्धृत) भाषा में तत्सम शब्दों का (दुहिता , वज्राघात , प्रायश्चित )बाहुल्य है। केवल इसी कहानी में भाषा विषयक प्रश्न उठाया गया है। सभी कहानियां पृष्ठपेषणयुक्त सामान्य हैं।
प्रारंभ कालीन कथा लेखिकाओं ने जातीय गर्व से प्रेरित होकर  महारानी दुर्गावती , वीर धात्री पन्ना , महारानी पद्मिनीकृष्णा कुमारी आदि वीरांगनाओं तथा पौराणिक प्रसंगों को अपनाकर भी कहानियों का सृजन किया मुगल शासन काल में नारी पर अनेक प्रतिबंध थे। उनमें आत्मसम्मान और जागृति लाने के लिए इन लेखिकाओं ने उक्त वीरांगनाओं को उनके समक्ष उदाहरण स्वरूप रखा   इस समय की पौराणिक और ऐतिहासिक कथा लेखिकाओं में श्रीमती ज्वाला देवी , श्रीमती सत्यवतीधर्मपत्नी पंडित रामगोपाल , सुश्री गुलाब देवी , श्रीमती विद्यावती , श्रीमती शांता देवी , श्रीमती सरस्वती देवी , श्रीमती केशव कुंवरि आदि के नाम समादर से लिए जा सकते हैं एक अबलाके छद्म नाम से रचित कहानीपतिव्रता का एक दृष्टांतनायिका कलावती द्वारा विष बुझे तीर से घायल पति कर्णसिंह के घाव को चूसकर  उनकी रक्षा करने तथा स्वयं मृत्यु का  आलिंगन करने का वृत्तांत है। लेखिका का अभिमत है -” अब इस समय इस तरह की पतिप्राणा ललनाओं का अभाव है इसी से भारत इस आरत दशा को  पहुंच गया है “(11) (‘पतिव्रता का एक दृष्टांत ‘ , ‘एक अबलाके छद्म नाम से रचित कहानी  )भाषा में ब्रजभाषा के शब्दों की प्रचुरता है -‘ दवा सुंघाय बेसुध कर दिया  कहानी में व्याकरणिक  अशुद्धियां मिलती हैं यथा योधाऐसी तीर। कलावती  के आदर्श चरित्र को पाठकों के समक्ष रखना लेखिका का उद्देश्य था किंतु कथासंक्षेप के कारण कलावती के चरित्र की विशेषताओं से पाठक अवगत नहीं हो पाता इसी प्रकार श्रीमती ज्वाला देवी कीस्त्री का साहसचित्तौड़ापति जगमल की रानी के साहस, दृढ़संकल्प , चातुर्य की कहानी है रानी अकबर के शिविर में प्रवेश कर वीणा वादन से सबको मंत्रमुग्ध कर अपने देशवासियों की प्राण रक्षा करती है।   वह पति से कहती हैस्वामिन! मैं  शत्रु के डेरे पर जाना चाहती हूं।  वहां जाकर मैं देखूंगी कि स्त्री का खड़क भी शत्रु के हृदय को भस्म कर सकता है या नहीं …. मेरे साहस की परीक्षा करो , विश्वास रक्खो मैं अकबर का सामना करने से पीछे ना हटूंगी “(12)(हिंदी कथा साहित्य के विकास में महिलाओं का योग, डॉ. उर्मिला गुप्तापृष्ठ 92 पर उद्धृत ) भाषा सरल हैं किंतु वाक्य विन्यास में कहींकहीं विराम चिन्हों की उपेक्षा की गई है  
       श्रीमती सत्यवती कीवीर  माताकहानी में  मारवाड़ की तेजस्विनी वीर रानी विदुला पुत्र संजय को सिंधु नरेश के विरुद्ध युद्ध लड़ने और विजयी होने की प्रेरणा देती हैं  परिणामस्वरूप वह विजयी होता है। कहानी की भाषा प्रवाहमयी है किंतु उसमें सरसता और रोचकता का अभाव है।  विदुला के संवादों से उसके वीर चरित्र का पता चलता है।-” हे पुत्र ! जीवन की आशा क्यों करता है अपयश के साथ संसार में रहना मरने से भी खराब है। जब तू हार मानकर शत्रु  की शरण लेगा तो तेरी मुझ माता की रक्षा कैसे होगी ?”(13)( वीर माता , श्रीमती सत्यवती ) श्रीमती जानकी देवी कृतप्रभावती ‘  कहानी मुन्नौर की विधवा रानी प्रभावती की वीरता , साहस , सतीत्व पर आधारित रचना है। यवन सम्राट की कामुक चेष्टाओं से बचने के लिए वह उसे विष  युक्त वस्त्र भेजकर मारती है और स्वयं की रक्षा के लिए जल समाधि ले लेती है।  प्रभावती और यवन सम्राट के चरित्रचित्रण में लेखिका सफल रही हैं। कहानी में उपदेशात्मकता और इतिवृत्तात्मकता  के कारण नीरसता गयी है श्रीमती कृष्णा देवी कीसाहसिक कन्याकहानी में नवविवाहिता कर्मवती विवाह वाले दिन ही मन्दौराधिपति से संघर्ष करते पति के  दिवंगत होने पर पति के साथ ही सती हो जाती है।  पात्रों में लेखिका ने कर्मवती  की चारित्रिक विशेषताओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है। अन्य पात्र उसके चरित्र को विकसित करने में सहायक हैं कहानी के माध्यम से लेखिका ने नारियों को कर्मवती  के सामान वीर, दृढसंकल्पित, पति परायणआत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है लेखिका ने कर्मवती  को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है -” कर्मवती तू वास्तव में देवी थी। तेरा साहस तेरी वीरता  तेरी बाल्यावस्था की शिक्षा और तेरी माता को धन्य है।“(14)(हिंदी साहित्य के विकास में महिलाओं का योग, डॉ.उर्मिला गुप्ता , पृष्ठ 94 पर उद्धृत ) भाषा सरल है लेकिन विरामचिन्हों की सर्वथा उपेक्षा की गयी है।
     श्रीमती धर्मपत्नी पंडित रामगोपाल ने अपनी दोनों चरित्र प्रधान ऐतिहासिक कहानियोंमहारानी दुर्गावती तथा कांता में कथा नायिकाओं के साथ ही नायकों को भी उत्कर्ष प्रदान किया है।महारानी दुर्गावतीकी दुर्गावती अपनी अनुजा के विवाह में पिता के घर गई जहां बहन के पति ने उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो उसका हाथ पकड़ लिया यह बात दुर्गावती को क्रोधित कर देती है और वह अपना हाथ काट लेती है। उसके कटे हाथ को देखकर उसके पति क्रोधित हो अमर सिंह को मौत के घाट उतार देते हैं कांता ‘  कहानी में कल्याणी नगर के राजकुमार अपनी दूती तरला से  कांता को उसके पति की मृत्यु का संदेश भेजते हैं। वे उसे कारावास में  बंद कर उसके सतीत्व को नष्ट करना चाहते हैं। कांता अपने सतीत्व  के कारण बिना अग्नि के चिता प्रज्ज्वलित कर भस्म हो जाती है उसका पति शूरसेन  भी उसी चिता में कूदकर प्राण त्याग देता है। दोनों कहानियां दुखान्त हैं।  लेखिका ने अपने उद्देश्यों की सिद्धि  के लिए अस्वाभाविक घटनाओं का अंकन किया है यथा कांता के पास ऐसी माला का होना जिससे उसे अपने पति के मंगल का संदेश मिलता है तथा बिना अग्नि के सती के तेज से चिता का ज्वलित हो उठना संवाद संक्षिप्त , सरस ,   पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने वाले हैं अतिशयोक्ति पूर्ण  घटनाएं और अत्यधिक आदर्शोन्मुखता खटकने वाली है श्रीमती विशनपति कीराजा भोजमें भोज की काव्य प्रतिभा से मुंज का ईर्ष्या करना , उनकी हत्या का प्रयास करना , भोज के श्लोक के कारण उनका हृदय परिवर्तन और अंत में भोज  को शासन सौंप स्वयं वन में चले जाना आदि ऐतिहासिक घटनाओं को आधार स्वरूप लिया गया
है चरित्र चित्रण में एकरूपता है भाषा सहज,सरलप्रवाहयुक्त और मुहावरेदार है।श्रीमती विद्या देवी नेसत्यताऔरबसंत बालामें आदर्श की स्थापना के लिए प्रचलित कहानियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया है। मूल कथा में राजा हरिश्चंद्र मुनि विश्वामित्र को स्वप्न में अपना राज्य दान कर देते हैं। इसके विपरीतसत्यतामें हरिश्चंद्र एक बनैले  सूअर का पीछा करते विश्वामित्र के आश्रम पहुंचते हैं। वहां उन की अनुपस्थिति में  आश्रम की महिलाओं को बंधन मुक्त कर अपने राज्य लौट आते हैं विश्वामित्र के क्रोधित होने पर हरिश्चंद्र अपना राज्य उन्हें  दान कर देते हैं।बसंत बालामें बसंतबाला द्वारा अपनी चतुरता और साहस से अकबर के षड्यंत्र को सफल करने की कहानी है विवेच्य कहानियों में हरिश्चंद्र और शैव्या सत्यवादिता, सहनशीलता  की प्रतिमूर्तियां हैं और  बसंतबाला  वीरता बुद्धि चातुर्य की आदर्श है। पात्रों के चित्रांकन के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष  दोनों शैलियों  का अवलम्ब  लिया गया है संवाद संक्षिप्त और सारगर्भित हैं।  लेखिका ने प्रसंगानुकूल देश काल का अंकन किया है यथाबसंतबालाकहानी में जैसलमेर , दिल्ली और अकबर के मीना बाजार का चित्रण है।  कथान्त में लेखिका ने अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है -” यह साहस और वीरता भाटी जाति की स्वभाविक थी।  इस जाति की प्राचीन स्त्रियों का आत्मसम्मान राजस्थान में अब तक प्रसिद्ध है ये देवियां  थी “(15)(हिंदी कथा साहित्य के विकास में महिलाओं का योगदान , उर्मिला गुप्ता , पृष्ठ 96 पर उद्धृत
        श्रीमती विद्या देवी जी की भाषा सहज, सरल , व्यावहारिक तथा मुहावरेदार है। इनकी शैली वर्णात्मक है। लेखिका को कथा तत्वों के निर्वाह और अपना उद्देश्य प्रकट करने में पूर्ण सफलता मिली है। श्रीमती केशरकुंवरि  देवी नेविमला देवी‘,एवंकृष्ण कुमारीनामक दो ऐतिहासिक कहानियों औरसीता जी का पातिव्रतशीर्षक से पौराणिक सांस्कृतिक कहानी का प्रणयन किया है।विमला देवीकहानी की कथावस्तु गुलाब देवी जी की रचनाप्रभावतीसे प्रभावित है रूपनगर नरेश अमर सिंह का अपनी पुत्री केशर का विवाह औरंगजेब से निश्चित करने का निर्णय लेना, छोटी पुत्री विमला  की इससे असहमति , केशर का औरंगजेब को उससे विवाह करने के लिए प्रेरित करना, विमला का उदयपुर नरेश राजसिंह को सहायता के लिए के लिए निमंत्रण भेजना, औरंगजेब का परास्त होकर लज्जित होना इत्यादि घटनाएं कथा को विकसित करती हैं।कृष्ण कुमारीकहानी कृष्ण कुमारी के त्याग ,बलिदान की कथा है। वह उदयपुर नरेश भीमसिंह की पुत्री थी।उससे विवाहार्थ जोधपुर और जयपुर के राजाओं का एकसाथ आना, कृष्ण कुमारी का पिता की आज्ञा राज्य रक्षा के लिए ज़हर पीना कथा को विकसित करते हैं।सीता जी का पातिव्रतकहानी में उस समय का अंकन है जब रामवनगमन के समय सीता जी उनके साथ ही जाने का दृढ़ संकल्प लेती हैं। विवेच्य कहानियां नायिका प्रधान हैं अतः सभी घटनाएं उनके व्यक्तित्व को उजागर करती हैं। संवाद कथा नायिकाओं की चारित्रिक विशेषताओं को उद्घाटित करने में सहायक हैं। विमला के संवादों से उसकी निर्भीकता , दृढ़ता तथा अमर सिंह की उक्तियों से उनकी भयविह्लता  का पता चलता है सीता जी का पातिव्रतकहानी की रचना नारियों में उच्च नैतिक आदेशों को प्रतिपादित करने के लिए हुई है -” आज मैं आप कुलवधुओं के लाभार्थ  वाल्मीकीय रामायण से हमारी सर्वशिरोमणि सीता देवी के पातिव्रत धर्म संबंधी बातें शिक्षा ग्रहणार्थ लिखती हूं “(16)( हिंदी कथासाहित्य के विकास में महिलाओं का योगदान ,डॉ. उर्मिला गुप्ता ,पृष्ठ 102 पर उद्घृतइन कहानियों की भाषा सामान्यतः सहज, सरल, पात्रानुकूल है किंतु कहींकहीं अनावश्यक विस्तार भी है।
इन कहानियों के अतिरिक्त श्रीमती शांति देवी की कहानीकन्या की पिता को सहायता ‘  में अग्निकोट के राजा देवपाल के राजपंडित भृगु पंडित का वृतांत है।  श्रीमती सरस्वती देवी नेसुनीति‘  कहानी में ध्रुव की माता सुनीति की सहनशीलता , सत्य व्यवहार आदि  चरित्रगत विशेषताओं का अंकन किया है श्रीमती गुलाबदेवी चतुर्वेदी नेकुमारी प्रभावतीकहानी में रूप नगर के राजा विक्रम सोलंकी की पुत्री प्रभावती के दृढ़ चरित्र को अंकित किया है। प्रभावती  अपने कायर पिता की इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ाधीश राणा राजसिंह से विवाह करती  हैं श्रीमती गौरी देवी नेमानधाता की रानीऔरउभय कुमारी ‘  कहानियों में इतिहास और कल्पना का सुंदर समन्वय किया है।मानधाता की रानीकहानी में राजा मानधाता की धर्मज्ञता और उनकी रानी के शास्त्र ज्ञान को चित्रित किया गया है।उभय कुमारीकहानी मालवाधिपति प्रताप सिंह के पुत्र सूरसेन और उनकी पत्नी उभयकुमारी के प्रेम को व्यक्त करती है रानी खांगारोत जी कीसुजान सिंह जीऐतिहासिक चरित्र प्रधान कहानी है जिसमें राजा सुजान सिंह की वीरता का अंकन है श्रीमती महामाया देवी नेप्राचीन शिल्प विधा‘, ‘भगवती सीता‘,’स्त्री शिक्षा‘  आदिआर्य महिलाके विभिन्न अंकों में प्रकाशित निबंधों के अतिरिक्तवीर धात्री पन्नाकहानी भी लिखी है इसमें राजकुमार उदय सिंह की प्राण रक्षा के लिए पन्ना के त्याग का अंकन है तथा अंत में पन्ना के प्रति लेखिका ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।  लेखिका ने समकालीन नाटकों के प्रभाव स्वरूप प्रस्तुत कहानी में काव्यात्मक संवादों की भी रचना की है।  समस्त पदों यथाराज्य सिंहासनासीन , सिंहासनारुढ़, कुसुम कलिका  के साथ ही तत्सम बहुला अनुप्रासमयी भाषा का प्रयोग किया गया है जैसेस्वार्थान्ध बनवीर ने बिना पहचाने ही चंदन के कमल कोमल कलेजे को चीर डाला इतिहास प्रसिद्धपन्ना दाईद्वारा उदयसिंह की प्राणरक्षा के लिए अपने पुत्र की बलि देने की कथा को अनेक लेखिकाओं ने अपना वर्ण्य विषय बनाया है विषयगत एकरूपता होने पर भी इनमें कथा संयोजन और अभिव्यक्ति के स्तर पर अंतर मिलता है  
              वस्तुतः आदर्श के प्रति आग्रह के कारण इन लेखिकाओं की रचनाओं में अन्य कथा तत्वों का यथोचित निर्वाह नहीं हो पाया है।  अध्ययन की अपर्याप्त सुविधाओं , सीमित अनुभव संसार , कल्पना लालित्य के यथा स्थान संयोजन में असफल इन कहानियों के महत्व को पूरी तरह अस्वीकार नहीं किया जा सकता भावना और शिल्प में प्रौढ़ता ना होने पर भी ये कहानियां अपने उद्देश्य में निश्चित रूप से सफल रही हैं।
प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, शिवाजी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली। दूरभाष.9911146968 ई.मेल-- ms.ruchira.gupta@gmail.com

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