मर्द रोते हैं कि वह औरत को झेलते हैं, कभी पूछा है कि वो क्या कुछ झेलती है? खाना खिला, टिफिन देकर, कैसे सभी को स्कूल और ऑफिस भेजती है?
औरत परिवार के लिए खप जाती है, उनकी नींद सोती, जागती है। ख़ुद के लिए वक़्त नहीं पाती है। शक्ति चुक जाती है करके घर के कामों को, चिड़चिड़ी रहती है सुन कर तानों को। अपने सपने और अस्मिता होम करती है।अपने रक्त और मज्जा से बच्चे जनती है। पति नहीं जानते उसकी औकात, नहीं करते हैं सीधे मुँह बात। बात-बात में निकालते हैं बात की खाल, खिसियाने पर उठाते हैं हाथ।
सभी मर्द, औरतों को मूर्ख समझते हैं, इसीलिये उसकी सही बात पर भी भड़कते हैं। उनमें कहाँ से बुद्धि आती है? क्या बस बाप की अक्ल बच्चों में आती है? जैसी दुद्धी वैसी बुद्धि कहा जाता है, पर मर्द सिर्फ मर्द की बुद्धि पर इतराता है। दावे हैं कि मर्द दुनियाँ चलाते हैं, पर मुझे तो सब मर्द कमोबेश ‘तालिबानी’ नज़र आते हैं। ससुर, पिता, पति, भाई और बेटे, जुल्म तो सभी ढाते हैं। सुरक्षा, मर्यादा, दुर्बलता, सुन्दरता, कोमलता और कर्तव्य के नाम पर दबाते हैं।
किसी ने लोहे की जूतियां, किसी ने स्टेटेलटोज़ पहनाए हैं। किसी ने घोड़ों की नकेल सी नत्थ, कड़े, छड़े, और पाजेब बनाये हैं। जानवरों के लिए लोहे के, औरत के लिए, सोने-चाँदी के बनाये हैं। किसी ने गहने पहना कर, किसी ने छीन कर किया है,पर युग-युगांतर से पुरुष ने औरतों का शोषण ही किया है ।
मुनि गौतम से मर्द, यहाँ पूजे जाते हैं। जो पुत्री की उम्र की अहिल्या से विवाह करते हैं। फिर इन्द्र और चण्द्रमा के अपराध पर, पत्नी को पत्थर बना देते हैं।
मर्द तो महाभारत के महान थे, एक धर्मराज के बाकी अन्य देवों की सन्तान थे। एक पत्नी को दांँव पर लगाता है, दूसरा भरी सभा उसके कपड़े उतारता है। बाकी नरश्रेष्ट दर्शक बने थे,सभी नपुंसक थे, बस पुरुष दिखते थे।
भीष्म भी महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं। भाई केलिए अंबा, अंबिका, अंबालिका का हरण कर लाते हैं पीड़ित द्रौपदी की पुकार अनसुनी करते हैं। सिंहासन के प्रति कर्तव्य की दलील रखते हैं। पुराण पुरुष ब्रह्मा भी, यहीं कहीं दिखते हैं…
पुत्री सरस्वती पर मोहित हुए थे। पुत्री के शाप से अपूजित हुए थे। ब्रह्मा का एकमात्र मन्दिर पुष्कर में आज भी है। मगर कहते हैं कि मन्दिर, शाप से पहले की बात है।
कृष्ण को बचाने का यत्न महान हैं, कृष्ण की जगह महामाया कुर्बान है। पुत्री तो स्त्री है, उसकी क्या हस्ती है? इसीलिए स्त्री भ्रूण में भी मरती है…।
राम ने धोबी के आरोप पर, गर्भिणी सीता को निकाला था। पत्नी पर अविश्वास था तो गर्भ कैसे आया था?
सतयुग, त्रेता, द्वापर की बात बतायी है। कलियुग के साक्षी आप स्वयं हैं। जानते ही होंगे कि क्या-क्या बुराई है? UN women कहता है, हर तीन में से एक औरत हिंसा का शिकार होती है।* विश्व भर में ये संख्या 736 मिलियन तक पहुँचती है, हमें बतायें क्या इसमें सिर्फ़ औरत की गलती है?
मर्द दुःखी हैं स्त्रियों से तो शादी ही मत करें, ना गर्लफ्रेंड बनाएँ। शादी नहीं तो बेटी भी न होगी, दहेज की चिन्ता भी नहीं होगी। अपने दामन को गंदगी से बचायें। सिर्फ पुरुषों का समाज बनाएँ। ‘बागी’ स्त्रियों ने पुरुषहीन समाज बनाया था। नर बच्चों को भी दूर हटाया था। आप भी स्त्री विहीन समाज बनायें, तीन सौ सतहत्तर भी है, ना घबराएँ।
आपसे प्रार्थना है, मनुष्य बनें! अपने उस अचूक अस्त्र का प्रयोग ना करें! स्त्री की प्रजनन शक्ति का मज़ाक उड़ाया है। जब भी हारे हैं, बलात्कार को हथियार बनाया है। बलात्कार के घाव तो भर जाते हैं, पर अगर गर्भ रह गया तो नौ महीने निकल जाते हैं। फिर ‘आपका बच्चा’, उसकी जिम्मेदारी है। मार दे तो हत्यारी नहीं, तो महतारी° है। माँ होकर सन्तान को नहीं मार सकती है। भीख मांग, मेहनत कर या शरीर बेंच कर, बच्चे को पाल लेती है। वर्षों लग जाते हैं, शिशु से व्यक्ति बनाने में। अपना व्यक्तित्व कैसे बनाना है, स्त्री भूल जाती है। तभी तो फिसड्डी और बेवकूफ़ कही जाती है।
सोचिए, आपने पुरुषों को कैसे बढ़ाया है, अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उसे हमेशा सताया है।पत्नी के गर्भ का टेस्ट कराया है। बेटी हो तो गर्भ गिरा दिया, बेटा हुआ तो बचा लिया। स्त्री- बेटी, बहन के रूप में खलती है। लावारिस सड़क पर मिले तो लार टपकती है। कोठे, एस्कार्ट्स,कॉलगर्ल्स आपकी कृपा से आबाद हैं। मगर विडंबना है कि औरतें ‘वेश्या’ नाम से बदनाम हैं।
मर्द, मर्द को प्यार कर सकता है, किन्तु प्रजनन नहीं कर सकता है। सन्तान के लिए स्त्री आवश्यक है। तभी तो उसे गुलाम बनाया है। रक्षा के नाम पर बंदी बनाया है। रक्षा किससे ? वहशी पुरुष से ????
धैर्य रखें , अपने आतंक को परे रखें, आप सुधरें तो औरत की दशा स्वयं सुधर जाएगी, उसको किसी रक्षा कवच की दरकार नहीं रह जाएगी । मर्दों की काबलियत के पुराण बन जाते हैं, औरत की कमी और बेवकूफियों के किस्से कहे जाते हैं। यह तो औरत के शोषण की बात है। फिर मर्द कहते हैं कि औरत की क्या औकात है?
शूद्रों और नीग्रो पर तरस खाते हैं। पर चिरन्तन काल से शोषित स्त्री पर चुटकुले बनाते हैं…. मानती हूँ ऑफिस में, घर के बाहर के कामों में औरतें, दक्ष नहीं होती हैं। पुरुषों की तुलना में कम ठहरती हैं। पर बरसों के गुलाम में सम्राट नहीं पायेंगे, लोहे की जूतियों से सद्यः निकले पाँव को, क्या सीधे मेरॉथन में दौड़ायेंगे? ये प्रश्न मुझे आज सभी पुरुषों से करना है, क्या औरत के गुण सूत्रों में ही बुराई है, या उसकी इस स्थिति के लिए कहीं आप सभी उत्तरदायी हैं?
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। नारी की दशा ऐसी ही है।
पर ईसाई धर्म में तो उसे एडमिशन का मन लगाने के लिये ही बनाया।
अन्य धर्मों में तो उसकी दशा बहुत ख़राब है। अभी तालिबान ने औरतों पर किया क्या जुल्म ढाये। पर सब चुप।
वास्तव में वही ऐसी है जिससे पुरुष कभी जीत नहीं पाया न जीत पायेगा।
उसे समझेगा तब न जान पायेगा।
बहुत सही लिखा है आपने।
No comments. Totally one sided view.
Dear Samson, without writing a comment, you have said what you wanted to say. Thanks.
thanks sir, you said all that what I felt.
i want to know the other side, please describe. thanks for the response (negative or positive, most welcome)
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ। नारी की दशा ऐसी ही है।
पर ईसाई धर्म में तो उसे एडमिशन का मन लगाने के लिये ही बनाया।
अन्य धर्मों में तो उसकी दशा बहुत ख़राब है। अभी तालिबान ने औरतों पर किया क्या जुल्म ढाये। पर सब चुप।
वास्तव में वही ऐसी है जिससे पुरुष कभी जीत नहीं पाया न जीत पायेगा।
उसे समझेगा तब न जान पायेगा।
बहुत सही लिखा है आपने।
हार्दिक धन्यावाद उषा जी, आपने मेरे मन को समझा।