दिन कामों में ऐसा निकलता है कि विचारों को शायद दिमाग़ तक पहुंचने का समय नहीं मिलाता, पर शायद कहीं आसपास ही चक्कर लगाते होंगे। इसीलिये जब रात में तकिये पर सिर रखो तो, दिनभर के बेचैन विचार एक झुंड में फड़फड़ाते हुए चारों ओर से घेर लेते हैं…
कोई कबूतर सा स्वच्छ विचार तकिये पर बैठ जाता है, तो कोई पालतू विचार, गिलहरी सा कंधों पर जगह लेता है, कोई नटखट और भोलाभाला विचार पाँव के पास खरगोश सा फुदकता तो रसीला-सजीला चुलबुला विचार, रंगीन तितली सा बालों में उलझ जाता।
अंधरे का फ़ायदा उठा कर, तभी कोई भयावह विचार पत्थर सा सीने पर चढ़ जाता है, तो कोई जलता सुलगता सा भाव अपने शक्तिशाली पंजों से, गर्दन पर ऐसी पकड़ बनाता है कि दम घुटने लगता है। शरीर पसीने से भीगने, अकढ़ने लगता है। सबसे पहले, गर्दन वाले विचार से निबटाना पड़ता है, आख़िर साँसों का सवाल है। जल्दी से तीखे, पैने तर्कों के अस्त्र फेंके, सभी व्यर्थ, घुटन ज़्यादा ही बढ़ गई, मन अपने सारे विवेक से जूझ रहा था, पर बात बन नहीं रही थी, लड़ते-लड़ते थक कर मन शून्य सा होने लगा…. थोड़ी देर बाद लगा कि साँस यथावत है। साँस आते ही सीने पर बैठे विचार का बोझ असह्य लगने लगा, फिर से विचारों, तर्को के घात-प्रतिघात होने लगे, एक घमसान सा मचा था, कोई हार मानने वाला नहीं था। युद्ध जारी था…… पर कुछ समय बाद सकारात्मकता ने आकर सन्धि वार्ता की, तब कहीं इस विचार के बोझ से मुक्त होती हूँ।
जब साँसें और मन, समान्य होने लगता है, तो पाँव पर गुदगुदी महसूस होती है। मुस्कुरा के उस भोले से विचार से मुखातिब होती हूँ, तो शैतानी से हँसता हुआ वो नन्हा, प्यारा विचार दूर भाग जाता है। थोड़ा भी नहीं ठहरा बस चला गया। मैं बस उसे जाते हुए देखती रह जाती हूँ।
अब हाथ बढ़ा कर कन्धे के सहज विचार को टटोलती हूँ, इस आशा से कि उसके साथ कुछ बातें करूंगी, थोड़ा मन शान्त होगा, रात कटेगी। लेकिन वो तो इंतजार करते – करते अलसा गया था, हौले से हाथ हटा कर कहता है, आज देर हो गई…. चलता हूँ , कल मिलेंगे।
उसका यूँ चले जाना अच्छा तो नहीं लगा पर भरोसा था, बहुत दिनों का पालतू है, वादा नहीं तोड़ेगा।
कुछ आसरा बाकी था, अभी तकिये वाला सीधा-सादा विचार बाकी है, मन बहलाने को। थोड़ा सुकून मिलेगा उसके साथ संवाद करने में, शायद उसके बाद नींद भी आ जाए। नज़र डाली तो वो शान्ति से तकिये पर सिर रखे सो गया था, बस उसे प्यार से थपकाया और सोने दिया। बड़ी हताश थी कि सारे नकारात्मक विचारों ने तो समय और शक्ति छीन ली, पर इन खूबसूरत विचारों ने थोड़ा भी इंतजार नहीं किया….
एक सरसराहट से चौंकी, बालों में कुछ हलचल थी, देखा वही सजीला,रसीला विचार सामने था… पर मुँह गुस्से से फूला हुआ था। तुनक कर बोला “इतनी देर से इंतजार करता रहा पर तुमको मेरी कोई परवाह नहीं”…… इतना कहकर, बिना उत्तर की प्रतीक्षा के वो भी फुर्र हो गया ऽ ऽ ऽ ऽ
अब दिमाग़ और कमरे में सन्नाटा था, पूरा सन्नाटा। रात भी बीतने वाली थी, धीरे-धीरे मुझे भी नींद आगयी।
सम्पर्क - shailjaa.tripathi@gmail.com

10 टिप्पणी

  1. घर के काम काज मैं व्यस्त महिला के विचारों का बहुत सुंदर वर्णन किया है आपने ……हर महिला की यही स्थिति होती है और कब नींद आ जाती है सोचते सोचते और negative thoughts ज्यादा ही highlight होते है clap for u

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