घर का बजट बुरी तरह से उलझता जा रहा है। महंगाई की मार का आलम यह है कि  ब्रिटेन के लोगों को दो जून की रोटी भी नहीं मिल पा रही… बहुत से लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं। पिछले तीन महीनों में ऐसे लोगों की संख्या 57 फीसदी बढ़ी है जो खाना खरीदने में सक्षम नहीं हैं। सर्वे में शामिल 14 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पिछले एक महीने में उन्होंने या उनके परिवार में किसी ने भरपेट खाना नहीं खाया या भूखे ही रहे।

चार दिन पहले मैं सुपर मार्केट में सनफ़्लावर तेल ख़रीदने गया तो मैंने पाया कि भोजन पकाने वाले तेल की पूरी शेल्फ़ ही खाली पड़ी थी। मैं लंदन में 1978 से आ रहा हूं और 1998 से रह रहा हूं। 44 वर्षों में यह मेरा पहला अनुभव है कि सुपर मार्केट से कुकिंग ऑयल ही ग़ायब हो जाए।
इससे पहले भी जब कोरोना की शुरूआत हुई थी तो सुपर मार्केट से टॉयलट रोल ग़ायब हो गये थे। यानी कि इन्सान चाहे किसी भी देश में रहे, हालात ख़राब होते ही सबको केवल अपनी पड़ने लगती है। इन्सान पूरी तरह से स्वार्थी हो जाता है। 
एक अप्रैल 2022 से ब्रिटेन में बिजली और गैस के दाम सत्तर से पिचहत्तर प्रतिशत बढ़ गये। एक आम परिवार के बजट में 60 से सत्तर पाउण्ड प्रति माह की बढ़ोतरी हो गयी। एक तरफ़ कोरोना की मार और दूसरी तरफ़ रूस और युक्रेन के बीच युद्ध। पूरे युरोप का जैसे सत्यानाश हो रहा है। 
वैसे तो पूरी दुनिया में महंगाई अपने बोझ तले आम आदमी को दबाए जा रही है मगर ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों में इसकी मार अधिक ज़ोरदार महसूस हो रही है। 
भारतीय सब्ज़ियों के दाम तो आसमान को छू रहे हैं। बीमार आदमियों की सब्ज़ियां – जैसे टिण्डा, तोरई, दूधी, करेला भी चिकन और मटन से अधिक महंगे हो रहे हैं। 
घरेलू गैस के दामों में हुई अभूतपूर्व वृद्धि के चलते लोगों ने भोजन के स्थान पर ठंडे सैँडविच और पास्ता खाना शुरू कर दिया है। यह सोच कर ही डर लगने लगा है कि जब सर्दियां आएंगी तो क्या होगा !
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ी है। खासकर खाने पीने की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से हर चीज की कीमत बढ़ी हैं और कंपनियां इस बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल रही हैं। ब्रिटेन में एक साल में महंगाई में  नौ प्रतिशत की तेज़ी आई है जो 30 साल में सबसे अधिक है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने आशंका जताई है कि अगले कुछ महीनों में महंगाई 10 प्रतिशत पर पहुंच सकती है। तेल और खाने-पीने की चीजों की कीमत में बढ़ोतरी ने हर घर का बजट बिगाड़ दिया है।
ध्यान देने लायक बात यह है कि  अमरीका में अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 8.3 प्रतिशत रही। हालांकि मार्च की 8.5 प्रतिशत महंगाई दर की तुलना में यह कम है। इसके बावजूद यह अब भी 40 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। अमरीका में खाने-पीने की चीजों से लेकर हवाई टिकट और गाड़ियों की कीमतें बढ़ी हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीका में अप्रैल में हवाई किराया 19 प्रतिशत बढ़ा है। पिछले तीन महीने में इसमें 35 प्रतिशत उछाल आ चुका है, अमरीका महंगाई बढ़ने के लिए रूस को जिम्मेदार ठहरा रहा है। यूक्रेन पर हमले के बाद दुनिया भर में कीमतों में उछाल आया है।
मुझे याद पड़ता है कि करीब पाँच दिन पहले आदरणीय ज़किया जी की कार में डीज़ल भरवा रहे थे। उनकी कार डीज़ल से चलती है। डीज़ल का दाम है £1.82 प्रति लिटर। पहली बार उनकी कार में डीज़ल भरने के बाद जब मीटर की ओर देखा तो मीटर रीडिंग थी – £101/-… मुझे ज़ोर का झटका लगा। कार में एक बार टंकी भरने के लिये इतने अधिक पाउंड! मुझे याद आ रहा था कि बस दो महीने पहले इतना ही डीज़ल कार में भरने पर केवल– £61/- लगा करते थे… यानी कि चालीस पाउंड अधिक!
लंदन में कभी भी सामान की किल्लत नहीं देखी थी। जो चाहिये होता था… जाते थे और ख़रीद लाते थे। पहली बार कुछ ऐसा अहसास हो रहा है कि सोचना पड़ता है कि ब्रेकफ़ास्ट अगर ‘ग्रेग्स’ से खा लिया जाए तो सस्ता पड़ जाएगा। हैच एण्ड का सकोनी रेस्टॉरेण्ट रविवार सुबह को ब्रेकफ़ास्ट के  £12.95 लेता है तो वहीं डिनर के £19.50…
घर का बजट बुरी तरह से उलझता जा रहा है। महंगाई की मार का आलम यह है कि  ब्रिटेन के लोगों को दो जून की रोटी भी नहीं मिल पा रही… बहुत से लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं। पिछले तीन महीनों में ऐसे लोगों की संख्या 57 फीसदी बढ़ी है जो खाना खरीदने में सक्षम नहीं हैं। सर्वे में शामिल 14 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पिछले एक महीने में उन्होंने या उनके परिवार में किसी ने भरपेट खाना नहीं खाया या भूखे ही रहे।
एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार आम आदमी फ़ूड बैंक्स से अधिक से अधिक ठंडा भोजन ले रहे हैं। उन्हें इस बात का डर है कि खाना पकाने से उनका गैस का बिल बहुत बढ़ जाएगा। फ़ूड फ़ाउंडेशन की एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर ऐना टेलर ने कहा है कि देश आर्थिक संकट से स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहा है। फ़ूड बैंक्स से यह समस्या हल होने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार को समझना होगा कि बहुत से परिवारों की किश्ती बस डूबने वाली है, इस स्थिति से निपटने के लिये मज़बूत कदम उठाने होंगे। इमरजेंसी फ़ूड पार्सल बांटने से काम नहीं चलेगा। 
उधर ब्रिटिश सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा है कि लोगों की सहायता के लिये अगले वर्ष हम एनर्जी बिल में लोगों को सहायता करने और गैस इत्यादि पर ड्यूटी कम करने  के लिये 22 अरब पाउंड ख़र्च करने जा रहे हैं। साथ ही ग़रीबों को वार्षिक अतिरिक्त 1000 पाउंड दिये जा रहे हैं। इस सर्वे से एक बात तो साफ़ हो रही है कि ब्रिटेन में आम आदमी की हालत ख़ासी ख़राब चल रही है। 
ब्रिटेन में पति-पत्नी या फिर लिव-इन रहने वाले जोड़े परिवार शुरू करने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि एक बच्चे को बड़ा करने में, उसकी परवरिश में आज के अनुसार एक औसत ब्रिटिश जोड़े को £3,20,000/- का ख़र्चा पड़ जाएगा। इतने पैसों में इंग्लैण्ड के कॉट्सवॉल्ड्स इलाके में तीन-बेडरूम का घर ख़रीदा जा सकता है। 
दूध, अंडे, डबल रोटी, मीट, चिकन सभी महंगे हो रहे हैं। हम तो श्रीलंका और पाकिस्तान की हालत पर चिंता जता-जता कर दुबले हुए जा रहे हैं। पश्चिमी देशों की हालत कुछ कम पतली नहीं हो रही है। पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा कर सोचा था कि रूस को घुटने टेकने पर मजबूर कर देंगे। मगर सच तो यह है कि अपने घुटनों की हड्डियां कड़कने लगी हैं। वर्तमान काल में पूरा विश्व एक दूसरे पर आर्थिक रूप से निर्भर है। युक्रेन पूरे युरोप को खाने का तेल दे रहा था तो रूस ऊर्जा।
लंदन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन यानी कि एल.बी.सी. रेडियो पर एक वृद्ध महिला अपनी राम कहानी सुना रही थी, “मैं अपना सीनियर सिटिज़न कार्ड बसों और ट्रेन में यात्रा करने के लिये सुबह नौ बजे से इस्तेमाल कर सकती हूं। मैं सुबह का नाश्ता खा कर सुबह साढ़े नौ बजे बस में बैठ जाती हूं। उस बस में तीन चार चक्कर लगा लेती हूं। फिर किसी दूसरी बस में यात्रा करके समय बिताती हूं। मजबूरी है… क्या करूं… मगर ठंडे घर में बैठने से बेहतर है कि गर्म बस में अपना समय बिताऊं। बस शाम को घर वापिस जाती हूं। मेरा दिन भी बीत जाता है और घर में हीटिंग भी नहीं चलानी पड़ती। और मैं ठण्डे घर में रहने से अपने आपको बचा भी लेती हूं।… कभी सोचा नहीं था कि ऐसे भी दिन आएंगे।” इस महिला का दर्द पूरे समाज का दर्द है।
याद रहे कि इस महंगाई का सबसे अधिक असर बच्चों पर पड़ने वाला है। जब घर हवादार नहीं होंगे; ठंडे, नमीयुक्त और फफूंदी से भरे होंगे तो ऐसे घरों में बड़े होने वाले बच्चों में सांस के संक्रमण और अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ेंगी। बीमारियां शरीर में घर कर जाएंगी और विकलांगता कि दर में भी बढ़ोतरी होगी। बच्चों में अवसाद, चिंता तो बढ़ेंगे ही शारीरिक और दिमाग़ी विकास में भी कमी आएगी।  
माँ-बाप के सामने बड़ी चुनौती है। उन्हें सोचना पड़ रहा है कि अपने परिवार के लिये अपने घरों को गर्म करना अधिक ज़रूरी है या फिर अपने बच्चों को सही ढंग का भोजन मुहैय्या करवाना। माता-पिता तय नहीं कर पा रहे कि किस विकल्प को चुनें… वे नहीं जानते भविष्य में क्या करने जा रहे हैं। ऊर्जा बिलों में वृद्धि के कारण नमीयुक्त घरों में रहने वाले बच्चे न केवल भूखे सोने को मजबूर होंगे… उन्हें शायद वो अवसर भी न मिल पाएं जो उनके विकास के लिये ज़रूरी हैं।  
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

25 टिप्पणी

  1. महगाई की मार सारी दुनिया पर है डिमांड और सप्लाई में फर्क है फिर इंसान भी जरूरत के बनिस्पत दिखावे में ज्यादा व्यय कर रहा है , बहुत बढ़िया लेख

    • पंकज भाई आपने संपादकीय को न केवल पढ़ा बल्कि एक सार्थक टिप्पणी भी की। आपका विशेष धन्यवाद।

  2. महंगाई इस समय किसी एक देश की नहीं, पूरे विश्व की दुखती रग बनती जा रही है। ऐसे समय में लंदन के संदर्भ में महंगाई का यह विस्तृत संपादकीय सहज ही ग़ौरतलब है कि किस तरह एक साधारण आय से अपना जीवन व्यतीत करने परिवार कठिनाइयों से गुजर रहा है। सिलसिलेवार महंगाई से प्रभावित मुख्य वस्तुओं का वर्णन और बिजली एवं ईंधन की अल्पता का प्रभाव आपके सम्पादकीय को उल्लेखनीय बना देता है। चर्चा के बीच वृद्धा का जीवंत उदाहरण आज के हालत को दर्शाने के लिए काफ़ी है। बहरहाल एक स्पष्ट और सामयिक संपादकीय के लिए हार्दिक साधुवाद आद: तेजेन्द्र जी।

    • विरेन्द्र भाई आपकी विस्तृत टिप्पणी संपादकीय के साथ पूरा न्याय करती है। धन्यवाद।

  3. Your Editorial of today narrates the plight of the commoners and middle classes of Britain where the severe pinch of inflation is at its peak these days.
    What we consider is not so bad in India is viewed differently there.
    Heating a house is a big luxury in India but a necessity there!
    I was struck by the story of this old woman spending her days in warm buses rather than in her cold house.
    I wonder how many old women of India will afford this kind of a SUPPORT!!
    Congratulations and thanks,Tejendra ji, for familiarizing us with the state of affairs in Britain.
    India on the other hand is used to inflation and its citizens are accustomed to deny themselves luxuries which money alone can buy.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  4. ज का सम्पादकीय कितने सारे प्रश्न उठाता है। पहला प्रश्न तो युद्ध ही है। युद्ध किसी मसले का हल होता ही नहीं , पर क्या प्रतिबंधों के आक्रमण अस्त्रों के आक्रमण से कम आँकें जा सकते हैं? रूस ने अपने कुछ मुद्दों के लिए यूक्रैन पर युद्ध कार्रवाई की, जवाब में समूचे पश्चिमी जगत ने रूस पर प्रतिबन्ध लगाए। दोनों पक्षों के देशों में पिस आम जनता रही है और कुछ लोग इसमें अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं। विश्व में स्थिति को बदलना होगा, कोई राष्ट्र या समूह पूरी दुनिया के लिए पुलिस बनकर नहीं रह सकते। आपसी आर्थिक निर्भरता की दुनिया में अब कोई भी राष्ट्र शायद खुद को दूसरे से बड़ा नहीं कह सकता।

  5. आज का सम्पादकीय कितने सारे प्रश्न उठाता है। पहला प्रश्न तो युद्ध ही है। युद्ध किसी मसले का हल होता ही नहीं , पर क्या प्रतिबंधों के आक्रमण अस्त्रों के आक्रमण से कम आँकें जा सकते हैं? रूस ने अपने कुछ मुद्दों के लिए यूक्रैन पर युद्ध कार्रवाई की, जवाब में समूचे पश्चिमी जगत ने रूस पर प्रतिबन्ध लगाए। दोनों पक्षों के देशों में पिस आम जनता रही है और कुछ लोग इसमें अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं। विश्व में स्थिति को बदलना होगा, कोई राष्ट्र या समूह पूरी दुनिया के लिए पुलिस बनकर नहीं रह सकते। आपसी आर्थिक निर्भरता की दुनिया में अब कोई भी राष्ट्र शायद खुद को दूसरे से बड़ा नहीं कह सकता।

    • प्रगति आपने एक दूसरे दृष्टिकोण से संपादकीय को समझा है। यही इस संपादकीय की सफलता भी कही जा सकती है।

  6. सम्पादकीय पढ़कर आज अल्फ़्रेड मार्शल और ग्रेसम के नियम याद आ गए ।मानव व्यवहार दुनिया में एक सा पाया जाता है कीमतों के बढ़ने पर या पूर्ति के संदेह होने पर संग्रह की प्रवृत्ति ,जिससे अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुएं बाजार से गायब हो जाती हैं।
    कोविड और यूक्रेन ,रूस का युद्ध इनके भयावह परिणामों नज़र आ रहे हैं आगे के हालात और गम्भीर होंगें ।भौगोलिक आधार पर सभी देशों की प्राथमिकताओं का स्वरूप अलग अलग है लेकिन संकट सभी के समान हैं ।
    एक संतुलित आर्थिक विश्लेषण है सम्पादकीय में
    नमन
    Dr Prabha mishra

  7. ज्वलन्त विषय, विशव व्यापी समस्या कुछ प्राकृतिक आपदा कुछ मानव निर्मित। महँगाई तो सब जगह असर दिखा रही है परन्तु इंग्लैण्ड जैसे देश मे लन्दन जैसे शहर में वाक़ई गम्भीरता से ध्यान देने योग्य है। इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है! सब अपने जीवन यापन की जुगत में लगे हैं, लन्दन ब्रॉडकास्टिंग वाली महिला की सूझ एक विशेष क्षेत्र के खुराफ़ाती दिमाग़ का फ़ितूर है। इतना सब होने पर राजनीतिक हलचल में कोई लहर नहीं !
    अगर इस पर क़ाबू नहीं हुआ तो आगे गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
    बहुत हुई महँगाई की मार
    अबकी बार ……..
    रहो होशियार

    • कैलाश भाई विश्व के हालात सच में परेशान कर रहे हैं। हर देश के नागरिकों पर कोरोना और युद्ध का असर बाक़ायदा दिखाई दे रहा है।

  8. विस्तृत आँकड़े और गहरी दृष्टि से लिखे इस संपादकीय के लिए आभार, आपके संपादकीय स्मरणीय होते हैं, वक़्त ज़रूरत इनसे उद्धरण लिये जा सकते हैं। डूबते हुए को बचाने में अक्सर, बचाने वाला भी डूब जाता है, यूरोपीय देशों की स्थिति बहुत कुछ ऐसी है, ज़्यादा गहरे डूबे देश को बचाने में पैर उखड़ रहे हैं।
    विश्व स्तर पर मंहगाई इस युद्ध की देन है। पश्चिमी देशों की स्थित देख कर भी, “जागरूक”(??? ) भारतीय नागरिक भारत की मंहगाई और बेरोजगारी का रोना रो रहे हैं (संयोगवश आज प्रतिक्रियाएं पढ़ कर, अपनी टिप्पणी दे रही हूँ )।
    भारत के गाँवनुमा प्रदेश, उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर लखनऊ से हूँ, यहाँ 20₹ किलो तरोई, लौकी, कद्दू, 50₹ की 2.5 किलो प्याज, 40 ₹किलो टमाटर, 60₹किलो परवल और 50₹ दर्जन केला ख़रीद रही हूँ, यदि जगह होती तो ‘blinkit’ की रसीद की फोटो भी भेज देती। भला हो भारत की सरकार का। भारतीय जनता की आँखों में myopia और hypermetropia दोनों ही विकार साथ साथ हुए हैं, न पास के पड़ोसी देश दिखते हैं न दूर के पश्चिमी देश…, देश में मंहगाई और भ्रष्टाचार का रोना रोते रहते हैं… ईश्वर सभी को स्वस्थ दृष्टि दे… amen

  9. तेजेंद्र शर्मा जी, दारुण स्थिति। बहुत अच्छा लिखा आपने पूरी संवेदनशीलता के साथ।

  10. तेजेंदर जी ने महंगाई पर अच्छा विश्लेषण किया है । वाक़ई यह गौरतलब है कि यह महंगाई दर अगर यूं ही बढ़ती रही तो विश्व की आर्थिक दशा चरमरा जाएगी और हालात बाद से बदतर हो जाएंगे

  11. आप के संपादकीय सदैव मस्तिष्क को झकझोरने वाले होते है सर। ये विशेष इस दृष्टि से भी होते है कि जब आप आम जनता को दृष्टि में लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते तो आने वाली बड़ी आपदाओं की भी तस्वीर खींच देते है। यूरोप ब्रिटेन जैसे समृद्ध देशो मे स्थितियां महंगाई की मार से दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है आपका आकलन आपकी चिंता भविष्य को लेकर,क्या कुछ दिनों में ही बढ़ने वाली समस्याओं को लेकर बिल्कुल सही है।पर काश ये बात सत्ता लोलुप समझते, कि जब जनता ही नही बचेगी तो राज किस पर करोगे। ओर जनता भूख नही सह पाती बर्बर हो जाती है ,सत्ताओं को उखाड़ कर फेकने का साहस भी रखती है। बढ़ती महंगाई अभी समाज मे अराजकता को बढ़ावा देगी चिंता इस बात की भी है।
    साधुवाद आपको।

    • शिप्रा आप हमारे संपादकीय लगातार पढ़ती हैं और अपनी टिप्पणी भी देती हैं। आपकी इस उत्साह बढ़ाती टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

  12. आपकी संपादकीय मन को उद्वेलित कर रही है। कारण मानवीय संवेदनाओं के अन्तिम छोर पर खड़ी अन्तिम ईकाई भूखों मरने की कगार पर है किन्तु सरकार है कि राष्ट्र की सुरक्षा से अधिक अन्य मुद्दों पर केन्द्रित है । इतनी महंगाई राष्ट्रीय ताकत को मृतप्राय कर देती है। यह सब सत्तात्मक आकांक्षाओं का नतीज़ा है । भारत अभी इन परिस्थितियों को दूर से देख परख रहा है । सभी राष्ट्रों को नए सिरे से अपनी नीति नियमों को देखना समझना होगा। एक सीमा के पश्चात भूखी जनता …. अच्छाई बुराई भूल जाती है । ऐसे और भी देश होंगे आप इंगलैंड को बहुत नज़दीक से देख रहे हैं…. इसलिए लन्दन सुर्खी में आ गया।
    समय की मांग को देखते हुए मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने ही चाहिए । लकीर के फकीर बनने की अपेक्षा नए सिरे से विचार करना चाहिए। आपकी कलम ने जीवन को जीवंत कर दिया । 14% बहुत बडी आबादी है देश की । स्थिति नाज़ुक है । आपकी कलम को नमन है।

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