पहली बार जब साहित्य मंच के कार्यक्रम में भाग लेने जालन्धर गई, तब मेरा परिचय मंच के अध्यक्ष जगदीश चन्षद्र से हुआ। उनका निवास माडल टाउन में था। मेरे रुकने की व्यवस्था स्काई लार्क होटल में की गई थी। मैं संस्था के सचिव प्रोफेसर मेहर गेरा के निमन्त्रण पर वहाँ गई थी। प्रोफेसर मेहर गेरा से यह मेरी दूसरी मुझे मुलाकात थी।
शायद यह 1984 के जुलाई या अगस्त की बात है। प्रोफेसर मेहर गेरा मुझे दूरदर्शन ले गए। मैंने इससे पहले दूरदर्शन सेंटर नहीं देखा था। 
साधारण से कार्यालय में एक सौम्य व्यक्तित्व के दर्शन हुए। प्रो गेरा ने बताया ये वैद्य जी हैं। आप तब तक यहाँ इनसे बात करें, मैं फूल वाले के पास होकर अभी आया।
मैं हिमाचल के दूर दराज के क्षेत्र रामपुर बुशहर के भी छोटे से गाँव की रहने वाली। लम्बे सफर से थकी झेंपू सी औरत भला क्या बात करती। पर वैद जी इतने साधारण लग रहे थे कि उनका ज़रा- सा भी रौब मुझ पर नहीं पड़ा। 
थोड़ी ही देर में प्रोफेसर मेहर गेरा लौट आए, हमने चाय पी और थोड़ी इधर-उधर की बातें करते रहे। फिर उन्होंने मुझे होटल छोड़ दिया। दो-तीन घण्टे मैंने आराम किया और लम्बे सफर की थकान उतारी। शाम को वे दोनों मेरे कमरे में आए और मुझे वहाँ की व्यवस्था समझाने के बाद मेरी ग़ज़लें देखीं। उनके मंच पर मुझे पहली बार पढ़ना था। मैं मंच की मंजी हुई कलाकार भी नहीं थी। इससे पहले शिमला के गेयटी थियेटर में कुल मिलाकर एक इंडो-पाक मुशायरा पढ़ा था, पर हाँ आत्म विश्वास खूब दृढ़ था। दिल में डर कहीं नहीं था या इस नाम की चिड़िया से परिचय नहीं था। 
इस मुशायरे में दिल्ली से जमीला बनो भी आई थीं। जमीला बानो से पहली मुलाक़ात गेयटी थियेटर में हो चुकी थी। एक पत्रकार भी थे, ‘अश्विनी’ जो मेरे आगे-पीछे मंडराने लगे, जिसे शायद वैद जी ने भांप लिया था। मैं घबरा गई थी। तब वैद जी ने बड़े ही नर्म लहजे में उसे मेरे कमरे की तरफ न जाने का परामर्श दिया था। इस समय उनकी आँखें देखने लायक थीं।
एक पंजाबी के सरदार शायर थे उनको सभी मीशा कह के पुकार रहे थे। बहुत हँसमुख और मिलनसार थे। आज़ाद गुलाटी और राजेंद्र नाथ रहबर भी थे। बशीर बद्र, प्रेम कुमार नज़र, एहतेशाम सिद्दीकी और पंजाब के कई दूसरे नामी शायर थे। आकाश वाणी और दूरदर्शन के लोग भी थे। पर हिमाचल से मेरे सिवाय कोई नहीं था।
इस मुशायरे के बाद मुझे वैद्य जी निदेशक के पास ले गए और मेरे लिए दूरदर्शन के पहले ही कार्यक्रम में एक मुलाकात कार्यक्रम हुआ। धीरे-धीरे निकटता बढ़ने पर मुझे पता चला कि यह जो एकदम सीधा सा आदमी है, बहुत टेढ़ी कलम रखता है। बाद में इनके साहित्य मंच के लिए मुझे हिमाचल का प्रतिनिधित्व मिला और मिली जगदीश चन्द्र की टुण्डा लाट और अन्य पुस्तकें। 
फिर एक दिन वे हमारे बीच से अचानक ही उठकर चले गए। इसके साथ ही साहित्य मंच भी बिखर गया। प्रोफेसर गेरा खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगे थे। वैद्य जी के साथ हमने, मोगा, जालन्धर, जगराँव, कपूरथला, मलेरकोटला आदि में बड़े-बड़े मुशायरे किये। जिनमें शहरयार, और निदा फ़ाज़ली जैसे शायर हिस्सा लेते थे। इन्हीं मुशायरों के दौरान मेरी मुलाकात सिमर सदोष, गीता डोगरा, ज्ञान सिंह संधू, सुरेश सेठ, कीर्ति काले और दूसरे बहुत से कलमकारों से होती रहती थी। पर जगदीश चन्द्र तो नहीं थे!

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