लेस्‍टर निवासी उपन्‍यासकार, कहानीकार नीना पॉल का नवीनतम कहानी-संग्रह ‘शराफ़त विरासत में नहीं मिलती’ विदेश के परिवेश को समेटे और अपने में आत्‍मसात् किये हुए है। दस कहानियों के इस संग्रह में अलग-अलग हालात और उनसे रू-ब-रू होते पात्र सच में दिल को छूते हैं।

जहां ‘गुज़रे लमहों का हिसाब’ कहानी पति-पत्‍नी जॉन और पैट्रिशिया के बीच सच के लुकाव-छिपाव की कहानी है और उसका अंत होता है कि पैट्रिशिया पुत्र जेसन को लेकर हमेशा के लिये घर छोड़ देती है। जॉन के गेय होने की जब उसे ख़बर लगती है तो वह बहुत परेशान होती है कि किस तरह तीन ज़िन्‍दगियां बर्बाद हो रही थीं और उसे ही पता नहीं। हर जगह नारी के छले जाने की मार्मिक कहानी है यह…तो दूसरी ओर ‘घर से बेघर’ कहानी है। विदेशों में सामान्‍यत: घर के वृद्धों को ओल्‍ड पीपल होम में भर्ती कर देने की प्रथा है।

परिवार के लोगों के पास पार्टी में जाने का समय है, पर अपने माता.पिता को समय देने के लिये समय नहीं है। जनरैलसिंह की बहू जसमिंदर व बेटे प्रीतम की भी यही मानसिकता है। वे लोग जसमिंदर के घर में ही रहते हैं और उनको ही बेघर करना चाहते हैं पर ज़माना देखे पिता अपने घर को बेचने का फैसला करके खुद ओल्‍ड पीपल होम में रहने का निर्णय करते हैं और जो ठेंगा उनको दिखाया जा रहा था, वह वे बहू-बेटे का दिखा देते हैं। उनके घड़ियाली आंसुओं के सामने वे नहीं पसीजते…याने संबंधों की समाप्‍ति।

पति, पत्‍नी और वो की तर्ज़ पर कहानी ‘अंश’ उन हालात की कहानी है जहां ज़ारा अपने पति विलियम की कमज़ोरी की वजह से मां नहीं बन सकती। वह सरोगेट मदर का सहारा लेने के बजाय अपनी पक्‍की सहेली जेसिका के पति रिचर्ड पर डोरे डालती है और उनसे शारीरिक संबंध बनाने में और गर्भवती होने में सफल हो जाती है।

जेसिका की बेटी जूली अपने पापा और आंटी ज़ारा को अपनी नानी के घर ब्राइटन में रंगे हाथों पकड़ लेती है और जब भागती हुई नीचे उतरती है तो पैर फिसलने की वजह से घटनास्‍थल पर ही मौत हो जाती है। रिचर्ड का एक अंश खत्‍म हुआ और ज़ारा में एक अंश प्रवेश कर गया। विदेशों में नाजायज़ सबंधों का बनना बड़ी सामान्‍य सी बात है। इसमें वे लोग पुरुष/महिला मित्रों भी नहीं बख्‍शते। शायद यही वजह है कि वहां परिवार के सदस्‍य असुरक्षित महसूस करते हैं और अक्‍सर परिवार टूट जाते हैं। 

‘कुर्सी पलट गई’ पति-पत्‍नी नीलू और अनिल के उन हालात की कहानी है जहां अनिल का लक़वा मार गया है और नीलू नौकरी करते हुए उनकी देखभाल करती है। पति को यह महसूस नहीं होने देती कि वह उनकी सेवा करने से कतरा रही है और चकरघिन्‍नी की तरह घूमती रहती है। अनिल के मित्र प्रमोद नीलू की हालत समझते हें और वे उसकी मदद करते हैं। प्रमोद की पत्‍नी का देहान्‍त हो चुका है और वे अकेले हैं। अनिल एक दिन अकेले में उनसे कहते हें कि यदि उनका देहान्‍त हो जाये तो प्रमोद नीलू से शादी कर लें।

हालात ऐसे बने कि अनिल का देहान्‍त हो जाता है और एक दिन प्रमोद अकेले में नीलू को अपने आगोश में लेने का यत्‍न करते हैं। नीलू के एतराज़ करने पर वे घर आना-जाना कम कर देते हैं। नीलू का बेटा अंकि अपनी मां और प्रमोद के व्‍यवहार को देखकर हतप्रभ है। एक दिन वह प्रमोद के घर जाकर उनसे अपनी मम्‍मी नीलू से शादी करने का प्रस्‍ताव रख देता है। यह सुनते ही वे हतप्रभ रह जाते हैं और खुद को संभाल नहीं पाते और लड़खड़ा जाते हैं। अंकित ने अपनी मम्‍मी और प्रमोद के चेहरों को पढ़ा है और वह उन दोनों की पलभर की खुशी को स्‍थायी रूप देना चाहता है। 

‘फोन की घंटी’ एक ऐसी अकेली महिला जिनीटा की कहानी है जो शादी नहीं करना चाहती, स्‍वतंत्र यौन संबंध चाहती है..यानी ज़िम्‍मेदारीविहीन ज़िन्‍दगी। वह ब्रोना और विशाल की ज़िन्‍दगी को डिस्‍टर्ब करने की और विशाल से शारीरिक संबंध बनाने की भरपूर कोशिश करती है। विशाल अपनी पत्‍नी ब्रोना और अपने बच्‍चों प्रति पूरी तरह समर्पित है। अंतत: वह विशाल की नज़रों में दया का पात्र और ब्रोना की नज़रों में शक़ का पात्र बनकर रह जाती है।

‘गूंजती आवाज़’ का नायक अनुराग एक तलाकशुदा पुरुष है जो दुर्घटनाग्रस्‍त लड़की राधिका को अस्‍पताल पहुंचाता है और उस लड़की को कोई न होने पर वह अस्‍पताल में राधिका की देखभाल करता है। कुछ दिनों बाद जब राधिका की बहन रिचा आती है तो वह चुपचाप राधिका की ज़िन्‍दगी से चला जाता है। राधिका की आंखें उसे खोजती ही रह जाती हैं। बिस्‍तर पर उसका हाथ अनुराग के हाथों को ढूंढ़ता है पर व्‍यर्थ…राधिका के कानों में सिर्फ़ अनुराग की आरवाज़ गूंजती रहती है। 

‘बेअसर दुआ’ एक  ऐसे व्‍यक्‍ति की कहानी जो एक दुर्घटना में अपने पैर खो चुके हैं और इसीके चलते वे अपनी बीमार पत्‍नी को नहीं बचा पाये। इसके लिये वे खुद को ही क़सूरवार मानते हैं कि उनकी दुआओं में भी असर नहीं था, इसीलिये उनकी पत्‍नी उन्‍हें अकेला कर गई इस दुनिया में। 

इसी तरह किश्‍तों का भुगतान, सिगरेट बुझ गई और शीर्षक कहानी ‘शराफ़त विरासत में नहीं मिलती’ अपने नये कलेवर लिये हुए हैं। शीर्षक कहानी ऐसी तीन बहनों की कहानी है जहां स्‍मृति अपने माता-पिता की अवहेलना की शिकार है और जब वह अपनी सहेली रोहेला और उसके पापा से स्‍नेह पाती है तो अपने पापा मम्‍मी को छोड़कर उनके साथ चली जाती है। बेहद संवेदनशील कहानी है यह। 

नीना पॉल के इस कहानी संग्रह में ब्रिटेन, वहां के हालात, वहां के टूटते-फूटते रिश्‍तों के कारण पूरे विस्‍तार से दर्शाये गये हैं। चूंकि नीना पॉल ग़ज़ल क्‍वीन हैं तो उनकी लयात्‍मकता उनकी कहानियों में दिखाई देती है। शायराना भाषा और संवेदनशीलता पूरी शिद्दत से विद्यमान है। उन्‍होंने विदेश के ग्‍लैमर नहीं, बल्‍कि वहां की वास्‍तविक स्‍थितियों एवं परिवेश से रू-ब-रू कराया है पाठकों को। हर कहानी वहां की एक अलग कहानी कहती है, जो पाठकों को यह सोचने को विवश करती है कि सुसंस्‍कृत कहे जानेवाले देश में संबंधों, संवेदनाओं में अपसंस्‍कृति क्‍यों…..

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