चित्रकार-कवयित्री लेखिका निर्मला सिंह की किताब “जंगल कॉटेज” उनका पहला उपन्यास है।इससे पहले उनकी कविता संग्रह की कई किताबें आ चुकी है। वे कहती हैं, “….किंतु अब मेरे अधूरे उपन्यास मेरी प्राथमिकता हैं।”
इस उपन्यास की कहानी उच्च जमींदार परिवार की क्षीण कथा को आधार बना ,निम्न मध्यवर्गीय परिवार के स्तर से होकर एक कर्मठ, सफल , युवक रमन की पारिवारिक कथा है। एक सौ चौतीस पृष्ठ,सात अध्यायों में विभक्त इस उपन्यास की कहानी बेहद प्रेरणादक है और लेखिका के चित्रकार,कवियत्री रूप से आच्छादित है। पूरे उपन्यास में वे शब्दों के माध्यम से सुंदर बिंब प्रस्तुत करती हैं। इस उपन्यास में लेखिका का कवयित्री रूप को पन्ना दर पन्ना महसूसा जा सकता है, लेकिन पाठकों को कहीं-कहीं यह आवश्यकता से अधिक लग सकता है । परंतु यह कहीं भी कथा में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं करता बल्कि इसकी क़िस्सागोई को संबल देता प्रतीत होता है।
 चित्रकार-कवयित्री लेखिका निर्मला सिंह की किताब “जंगल कॉटेज” है तो उपन्यास,पर पूरी किताब पन्ना – दर -पन्ना जीवन जीने के,समझने के सूत्र वाक्य से भरा हुआ है।और ये वाक्य कहीं भी कथा – सूत्र में व्यवधान उत्पन्न नहीं करते बल्कि उसे पुष्ट करते हैं –जब वे भावों की अभिव्यक्ति इन शब्दों में करती हैं —
“अँधेरे में हम दीया लेकर नहीं, दीया हमें लेकर चलता है…”(पृष्ठ -120)
“…न जाने क्यों रमन को लगा जैसे कहीं, मन का कोई कोना दरका, कोई पन्ना हाथों से सरका…।” (पृष्ठ -13)
” दुविधाओं के व्यवधान पार कर सुविधाओं के संविधान स्वयं ही गढ़ने पड़ते हैं।(पृष्ठ -10 ,13)
…असुविधाओं के व्यवधान पार करके”(पृ -46)
एक और पंक्ति देखिए : “ज़िंदगी, त्रिभुज-चतुर्भुज, दो भुजाओं के बीच, चक्रवाती दायरा, ज़िंदगी कुछ दायरों का खेल है, ज़िंदगी कुछ रखाओं का मेल है…” ( पृष्ठ – 47 -48)
इसी तरह ” मन के भाव सर्वप्रथम आखें ही उजागर करती हैं”(पृष्ठ -132)
या एक जगह वे लिखती हैं – “तुम्हारा प्रेम मौसमी बारिश था, चिलचिलाती धूप था, जो मेघ छँटते ही कुछ पलों को खिलती है।” (पृष्ठ -38)और
“कड़वी स्मृतियों की तुरपन उधेड़ना सरल नही होता, निशान रह ही जाते है। “(पृष्ठ -21)
इन पंक्तियों को पढ़कर पाठक को ऐसा महसूस होता है कि जैसे स्वयं अपने जीवन मे इन्हें अनुभव किया हो।
इसमें संदेह नहीं कि निर्मला सिंह की भाषा समृद्ध और कहन में पकड़ है। इस उपन्यास की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी कवितात्मकता भी है।क्योंकि लेखिका स्वयं कवियत्री हैं, मोना की भावनाओं को व्यक्त करती ये पंक्ति देखिए–
“…वह खो जाना चाहती थी समय की कंदराओं में, हवन कुंड की समिधाओं में, गगन के वितान में, मन के धूल उड़ाते रेगिस्तान में, धरा की अतल गहराइयों में, पंछियों की रानाइयों में, हवा की शहनाइयों में…। जैसे …बारिश की बूंदों संग धरा में,स्वरों की स्वराओं में,अतृप्त कामनाओं में। रेशम के गुंजल में बहते गंगाजल में दू…र” (पृष्ठ -19)
ये पंक्ति देखिए — “मोना अलसाई सी बैठी थी। छोटी सी धूप, खपरैल की छत की बड़ी सी दरार से कूद कर, उसकी कलाई पर जड़ाऊ कंगन सी आ बैठी थी….बड़ी सी हवा उसके बिखरे बाल और बिखरा रही थी…।” (पृष्ठ -34)
बोलचाल की भाषा जिसमें प्रचलित हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू का सहज प्रयोग के साथ ही तमिल भाषा के कुछ शब्द ‘इल्ले ‘(नहीं),’एन्ने ‘,(क्या हुआ), ‘सेरी ‘ (ठीक)आदि का स्वाभाविक प्रयोग किया है।
उपन्यास ‘जंगल कॉटेज’ के लिए उन्ही के तर्ज़ पर एक वाक्य में कहा जाय तो कह सकते हैं –” उपन्यास दुःख के धागे में पिरोया सुख के मोती – सा है।”
पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर “अपनी बात” में लेखिका उपन्यास के नामकरण को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि, “जंगल कॉटेज “से मेरा तात्पर्य केवल घने जंगल में बनी हुई कोई शिकारगाह या विश्रामगृह नहीं है। सघन वन में सिर उठाए अकेली खड़ी कोई कुटिया भी नही है।” बल्कि व्यक्ति के मन की तह तक अपनी जड़ें बना लेने वाली उन विषम परिस्थितियों से है जो इस उपन्यास के कथानक का सूत्रधार है।
हांलांकि जिस “जंगल कॉटेज ” में रमन – मोना का प्रेम पेड़ की छाल पर लिखा ” ‘रमोना ‘…और सिंके भुट्टे के रंग की दोपहर उन्हें रंग गई ” ( पृष्ठ – 14) ने दोनों के बीच का नया अध्याय तो खोला पर उनकी यात्रा का यह टुकड़ा ‘जंगल कॉटेज ‘ उन्हें जीवन भर का साथ नहीं दे सका।रमन कड़वी स्मृतियों को सुन,परिवार के प्रति उसके कर्तव्य,उसकी इच्छाओं को जानने के बाद ‘ मोना के मन के हरियाली सावन सहसा सुख गए ‘। वही “जंगल कॉटेज” कहीं न कहीं रमन के मन किसी कोने में घर कर गया था।क्योंकि जब उसके पिता की पुश्तैनी ज़मीन जब उसे मिलती है तो “गढ़ी के अपने हिस्से वाले घर को कॉटेज के रूप में बदल दिया था।चारों ओर बाउंड्री बनवाकर पेड़ – पौधे लगवा दिए थे उसके मुख्य द्वार पर रमन ने एक बोर्ड लगवाया था।जिस पर बड़े – बड़े अक्षरों में लिखा था “जंगल कॉटेज”!
मोना एक शिक्षित उच्चवर्गीय परिवार की युवती जो कामकाजी माता – पिता की अकेली संतान है।उसकी अपनी पीड़ा है ” पापा ने कभी भी और पापाओं की तरह,दो पहिए की साइकिल के पीछे दोडकर मुझे साइकिल नहीं सिखाई…”(पृष्ठ – 19)अपनी आकांक्षाओं के पंखों से आकाश में उड़ान भर, वह रमन को साथ लेकर विदेश उड़ जाना चाह रही थी, पर रमन अपने मूल संस्कृति से जुड़ा युवक है,वह अपने परिवार के पथ प्रदर्शन में स्थिर धरा पर विचरण करना चाहता था। रमन की ” अनुभूतियों में छोटी बहन की वेदना की कराह थी, मां का कुम्हलाया चेहरा था,दादी की पुकार थी…. और मोना उसे लेकर अमेरिका बसना चाहती है…. नो वे!!!”( पृष्ठ -37) एक ओर सब पा लेने की चाहत और दूसरी ओर अपनों के प्रति समर्पित भाव ने दोनों को अलग अलग रास्तों पर मोड़ दिया!
सच तो यह है कि, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परेशानियों,दुविधाओं से खुद ही निबटना होता है। मानव जीवन में कुछ कड़वी यादें मन और मस्तिष्क में ऐसे घर कर जाती है कि चाहकर भी इन्हें भूलना असंभव – सा प्रतीत होता है।जैसा कि रमन के पिताजी के साथ उनके बचपन की घटना! परंतु उन्हीं के द्वारा दिए गए शिक्षा – संस्कार
से रमन उन्हें यादों के दुश्वार गहवर से निकाल जीवन की दूसरी पारी के लिए तैयार करता है।
पिता के जीवन के सघर्षपथ के साथी सुंदर काका – सरला काकी ,स्कूल प्रिंसिपल बाबूजी, उनकी पत्नी माताजी और रमन के कर्मपथ के सहयोगी ‘अमित – मधु ‘ कथा सूत्र के चमकते मोती कहे जा सकते हैं। परिश्रम, लगन से समाज में स्थापित होना, समस्याएं हैं तो धैर्य से उसका निवारण भी सरलता से सम्पन्न हो जाता है, और इसी समर्पण भाव से परिवार व अपनी कम्पनी के उच्चतर स्थान पर स्थापित होना, पूर्ण समर्पण से काम करने वालों के लिए प्रगति उन्नति किसी सिफारिश की मोहताज नहीं होती जैसे मानवीय मूल्यों का उपन्यास में संदेश दिया गया है। “….जो स्वयं ही मंदिर – सा ऊँचाई पर हो,वो तो बस हाथ बढ़ा,सबको अपनी ओर खींच,अपने इर्द – गिर्द बिठा सकता था।”(पृष्ठ -93)
उपन्यास के मुख्य पात्र के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित हुआ । कुछ स्मृतियां उसे जीवन के हर मोड़ पर , उम्र के हर पड़ाव पर कचोटती रही लेकिन उसी पात्र ने अपनी कर्मठता और कर्तव्यपरायणता के गुणों के साथ लक्ष्य को पा लेने की दौड़ मे जीत हासिल की। बहुत ही प्रेरक सन्देश देता , जीवन के विषम परिस्थितियों भी संयम -धैर्य और निःसंदेह कठिन परिश्रम से सपने पूरे किए जा सकते हैं। जीत हासिल करने की मूल मंत्र देता एक पठनीय उपन्यास!
कहा जा सकता है कि विस्मृत भारतीय जीवन – मूल्यों और प्रकृति का संवर्धन – पुनरोद्धार का समन्वय लेखिका ने ” जंगल कॉटेज” में किया है।लेखिका ने पारिवारिक जीवन के विभिन्न स्तरों को जिस सरलता – सहजता पिरोया है वह रोचक है। कथा प्रवाह पाठक की रुचि व जिज्ञासा को अपने साथ बहाने में सफल!
प्रकाशक – इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड

1 टिप्पणी

  1. बहुत सुंदर लिखा। कृति लघुकाय हों या विस्तृत, समीक्षा उसके तलों – बलों, संधियों और दुरभिसंधियों सभी को जगह आवंटित करती है। इस समीक्षा में बहुत ध्यान और दान से रचनाकार के कथनों, संवादों को रेखांकित और उद्धृत किया गया है। यह लेखन के साथ पठन पाठन का न्याय है और सम्मान के साथ धैर्य के टिप्पणी के लिए अभिमत को भी दर्शाता है। अभिनंदन।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.