अपने अपने गाँव लौटते मज़दूर एक तरह से कोरोना बम्ब हैं। यह जब फटेगा, भारत के पास इसे कंट्रोल करने का कोई साधन नहीं होगा। याद रहे इस समय विश्व भर में क़रीब 6 लाख लोगों में कोरोना के लक्ष्ण पाए गये हैं। 27,359 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और एक लाख तीस हज़ार के करीब लोग इस वायरस से बाहर निकलने में सफल हुए हैं। इटली (9134), स्पेन (5138), चीन (3295), ईरान (2378), फ़्रांस (1995), अमरीका (1711), ब्रिटेन (760), नीदरलैण्ड (547) जैसे देशों में सार्वाधिक मौतें हुई हैं। देखने वाली बात यह है कि चीन (जहां से यह वायरस शुरू हुआ था) इस सूचि में तीसरे स्थान पर है।

मैंने हमेशा से कहा है कि हिन्दी साहित्य की मूल-धारा प्रवासी लेखन की है। जो लोग दिल्ली, मुंबई, बनारस, प्रयागराज, लखनऊ, भोपाल आदि में लिख रहे हैं उनमें से अधिकांश लेखकों का जन्म उन शहरों में नहीं हुआ। वे बाहर कहीं से आकर नौकरी के लिये इन शहरों में आ बसे और साहित्य सृजन करने लगे। 

मेरी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। और कहा जाता था कि प्रवासी होने के लिये देश छोड़ना पड़ता है। यदि एक भारतीय एक प्रदेश से दूसरे में जाता है तो वह प्रवासी नहीं कहलाएगा। हालाँकि एक ज़माना था जब इंद्रप्रस्थ से पाटलिपुत्र जाना प्रवास ही होता था। तो आज पटना से दिल्ली आना प्रवास क्यों नहीं हो सकता?

मगर कोरोना वायरस के चलते तीन हफ़्ते की तालाबन्दी ने यह सवाल पुरज़ोर तरीके से उठाया है कि बड़े शहरों में उत्तर प्रदेश, बिहार या राजस्थान से आए मज़दूर या कर्मचारी यदि वापिस अपने घर या गाँव जाना चाहें तो इसका क्या उपाय हो सकता है। सभी महात्मा गान्धी की तरह यदि पदयात्रा पर निकल पड़ेंगे तो वायरस तो ख़ुशियां मनायेगा। उसे तो मालूम नहीं कि कौन प्रवासी मज़दूर है और कौन सैर सपाटे के लिये सोशल तौर पर मिल रहा है। उसे तो जो सामने दिखाई देता है, वह उसके शरीर के भीतर प्रवेश कर जाता है। 

जो चित्र सोशल मीडिया में देखने को मिल रहे हैं, वे तो चिन्ताजनक हैं ही। अभी तो बहुत मुश्किल से शाहीन बाग़ जैसे प्रदर्शनों से मुक्ति मिली थी और अचानक यह पलायन! क्या केन्द्र सरकार ने अन्य राज्यों की सरकारों से इस विषय में बातचीत की थी? क्या इन मज़दूरों के बारे में किसी ने भी कोई योजना बनाई थी या यह समस्या अचानक अपना फ़न उठा कर खड़ी हो गयी है।

सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि विदेशों से प्रवासी भारतीयों को भारत वापिस लाया जा सकता है तो फिर इन प्रवासी मज़दूरों को क्यों इनके गाँव वापिस नहीं भेजा जा सकता। 

तुरत फुरत इन मज़दूरों पर कविताएं भी फ़ेसबुक पोस्ट बन कर आ गयीं। मगर सवाल वहीं का वहीं खड़ा है कि इन मज़दूरों और इनके परिवारों को गाँव वापिस जाने की ज़िद क्यों है? यदि गाँव में ये लोग कोरोना वायरस का टेस्ट भी करवाना चाहेंगे तो बहुत आसान नहीं होगा। और वहां से यदि ये वापिस दिल्ली या किसी अन्य महानगर में आना चाहेंगे तो बहुत कठिनाई होगी। क्या इन मज़दूरों का रहने का इन्तज़ाम उन्हीं राज्यों में नहीं किया जा सकता था जहां वे अब तक रह रहे थे।

मीडिया ने भी अराजक ढंग से इस ख़बर को भुनाया है। सवाल यह भी उठता है कि क्या प्रधानमन्त्री को तालाबन्दी या लॉकडाउन के स्थान पर इमरजेंसी लगा देनी चाहिये थी और देश में सेना को तैनात कर देना चाहिये था। क्या लोकतंत्र में अनुशासन क़ायम रख पाना संभव नहीं है? क्या तानाशाही कोरोना को कंट्रोल करने के लिये एकमात्र तरीका है… जिस तरह चीन ने कोरोना पर विजय पाई है उससे तो लगता है कि लोकतन्त्र यह काम करने में असमर्थ सिद्ध होगा। इटली, स्पेन, अमरीका, ब्रिटेन सभी लोकतन्त्र हैं और यहां हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। रूस, उत्तरी कोरिया और इज़राइल की स्थिति कुछ और इंगित करती है।… सोचना तो होगा।

अपने अपने गाँव लौटते मज़दूर एक तरह से कोरोना बम्ब हैं। यह जब फटेगा, भारत के पास इसे कंट्रोल करने का कोई साधन नहीं होगा। याद रहे इस समय विश्व भर में क़रीब 6 लाख लोगों में कोरोना के लक्ष्ण पाए गये हैं। 27,359 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और एक लाख तीस हज़ार के करीब लोग इस वायरस से बाहर निकलने में सफल हुए हैं। इटली (9134), स्पेन (5138), चीन (3295), ईरान (2378), फ़्रांस (1995), अमरीका (1711), ब्रिटेन (760), नीदरलैण्ड (547) जैसे देशों में सार्वाधिक मौतें हुई हैं। देखने वाली बात यह है कि चीन (जहां से यह वायरस शुरू हुआ था) इस सूचि में तीसरे स्थान पर है। 

भारत में 873 मामले कोरोना पॉज़िटिव पाये गये हैं और 19 की मृत्यु हो चुकी है। मगर जिस तादाद में लोग पलायन कर रहे हैं कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए। हम जानते हैं कि सरकार बहुत कुछ कर रही है, मगर यह बिपदा इतनी भयानक है कि जितना भी कर लो… कम ही रहेगा।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

7 टिप्पणी

  1. आपकी श॔का सही है और सोचा जाये तो एक प्रकार की चेतावनी है लोगों और सरकार के लिए ।

  2. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से घर लौटने को आतुर विशाल जनसमूह की तस्वीरें देख कर ड़र लग रहा है। लगभग यही हाल हर महानगर की सीमाओं का है ऐसे में कोरोना के कहर को रोक पाना बहुत कठिन होगा।
    सरकार की नीतियाँ जनसमूह के समर्थन के बिना पूरा कर पाना जटिल काम है।

  3. “आ बैल मुझे मार ” को साबित कर रहा है हमारा लोकतंत्र । वैसे आज मन की बात कहते हुए मोदी जी ने पलायन करने वालों से माफी मांगी , पर यह समस्या का समाधान तो नहीं ।

  4. आपने बहुत सही सवाल उठाए हैं सर,देश से मजदूरों के पलायन की स्थिति से हम भी चिंतित हैं और अब तो डर भी लग रहा है, सचमुच गावजाकगां भी उनका रहन-सहन,खानप खान पान और सही जाच संभव नहीं है,,हालत गंभीर है—–पद्मामिश्रा

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