भारत में चुनाव हुए हैं। किसान आन्दोलन चल रहा है। बंगाल में राजनीति गरम है। इन सब गतिविधियों से पता चलता है कि भारत में शायद कोरोना की एक नयी वेव आ सकती है क्योंकि न तो चुनावी सभाओं में, न ही किसान आन्दोलन में और न ही बंगाल में फ़ेसमॉस्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है। याद रहे जबतक भारत अपनी वैक्सीन का विकास नहीं कर पाता, तब तक का मन्त्र एक ही है – “जो डरेगा, वो बचेगा।”
कोरोना वैक्सीन के सिलसिले में 11 दिसम्बर बहुत ही महत्वपूर्ण दिन माना जा सकता है। इतिहास में लिखा जाएगा कि ऑस्ट्रेलिया ऐसा पहला देश बना जिसने कि कोरोना वैक्सीन के बनाने और टेस्ट करने पर रोक लगा दी है। किस्सा कुछ यूं हुआ कि जिन लोगों पर ये टेस्ट किये गये उनमें से कुछ लोगों में एच.आई.वी. के लक्ष्ण पैदा हो गये। यानि कि दवा का ऐसा उल्टा असर!
इन टेस्टों का आयोजन क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय एवं ऑस्ट्रेलिया बायोटेक फ़र्म सी.एस.एल. द्वारा किया गया था। ऑस्ट्रेलिया का अपना 750 मिलियन डॉलर का वैक्सीन कार्यक्रम चल रहा था।
मगर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमन्त्री स्कॉट मॉरीसन ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि इस प्रोजेक्ट को मुलतवी किया जा रहा है क्योंकि यहां विश्वास का मामला है जिससे खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
क्वीन्सलैण्ड विश्वविद्यालय ने ज़ोर देर कहा कि ऐसी कोई संभावना नहीं है कि वैक्सीन से किसी प्रकार का इन्फ़ेक्शन हो रहा है। उनका कहना है कि परीक्षणों से साफ़ होता है कि जिन्हें वैक्सीन दी गयी उनके शरीर में एच.आई.वी. के कोई लक्ष्ण मौजूद नहीं हैं।
इधर ब्रिटेन में भी दो हेल्थ वर्कर्स में कोरोना वैक्सीन लेने के बाद एलर्जी रिएक्शन हुए। ब्रिटेन में फ़ाइज़र बायो एन-टेक की वैक्सीन इस्तेमाल की जा रही है जिसे माइनस सत्तर से अस्सी डिग्री तक स्टोर करने की ज़रूरत है।
ब्रिटेन के उच्च मेडिकल अधिकारी डॉ. जून रेन ने कहा कि हम उन दोनों मामलों पर नज़र रखे हैं। घबराने जैसी कोई स्थिति नहीं है। उन दोनों पर निगाह रखी जा रही है।
ब्रिटेन में टेस्टिंग के लिये 44,000 लोगों को चुना गया है। इनमें से 42,000 को दूसरी बार वैक्सीन दी जा चुकी है।
विश्व भर में कोरोना केसों के मामले में यदि हम पहले दस देशों पर निगाह डालें तो, अमरीका (1,64,25,038), भारत (98,54,201), ब्राज़ील (68,43,232), रूस (26,25,848), फ़्रांस (23,65,319),
यू.के. (18,30,956), इटली (18,25,775), तुर्की (18,09,809), स्पेन (17,41,439), और अर्जन्टीना (1,48,932) सामने आते हैं।
वहीं जब कोविद19 से ज़िन्दगी की लड़ाई हार गये लोगों के बारे में सोचते हैं तो टॉप टेन देशों के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं – अमरीका (3,04,142), ब्राज़ील (1,80,552), भारत (1,42,994), इटली (64,036), यू.के. (64,026), फ़्रांस (57,761), स्पेन (47,624), रूस (46,453), अर्जन्टीना (40,606), कोलम्बिया (38,669)।
भारतीय स्टेट बैंक के उच्चाधिकारी सतीश सिंह का मानना है कि भारत में कोरोना से लड़ाई के मामले में उत्तर पूर्वी राज्य सबसे अधिक सफल रहे हैं। उसके बाद नंबर आता है बिहार और उत्तर प्रदेश का। भारत में संक्रमितों की संख्या अनुमान से 466166 कम है, जो यह दर्शाता है कि भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के मामले में उम्दा काम किया है।
भारत में चुनाव हुए हैं। किसान आन्दोलन चल रहा है। बंगाल में राजनीति गरम है। इन सब गतिविधियों से पता चलता है कि भारत में शायद कोरोना की एक नयी वेव आ सकती है क्योंकि न तो चुनावी सभाओं में, न ही किसान आन्दोलन में और न ही बंगाल में फ़ेसमॉस्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है।
याद रहे जबतक भारत अपनी वैक्सीन का विकास नहीं कर पाता, तब तक का मन्त्र एक ही है – “जो डरेगा, वो बचेगा।”
सम्पादकीय में विश्व करोना की विस्तृत व्याख्या ज्ञान वर्धक है।
भारत के संदर्भ में बात सही है। सन्देश लाज़वाब है ।
प्रभा मिश्रा
जो डरेगा, वह बचेगा – हिट कर ग़या. हमेशा की तरह सशक्त सम्पादकीय
एक दम सटीक
आपकी संपादकी के शीर्षक चौकाने वाले ,आकर्षक होते हैं ।
एक दम सटीक