कंगना के ऑफ़िस को तोड़ने में अतरिक्त फुर्ती दिखाने वाली मुन्शीपालटी भिंडी बाज़ार,  मुम्बई मे दाऊद की अवैध बिल्डिंग हाजी इस्माईल मुसाफ़िरखाना हाई कोर्ट के कई बार आदेश के बाद भी नहीं गिराती। कहती है कि कोरोना काल में उनके पास अधिकारियों की कमी है। वैसे इसी वर्ष जून मे बी.एम.सी. ने हाईकोर्ट मे अपने एक निर्णय में  कहा था कि कोविद-19 के चलते कोई बिल्डिंग गिराने की कार्यवाही न की जाए। मगर कंगना के लिये तो ठाकरे सरकार में प्रेम के झरने बह रहे हैं। उसे तो सबक सिखाना है।

‘हरामखोर’, ‘जबड़ा तोड़ देंगे’, ‘पानी में रह कर मगर से बैर न करे’, ‘उखाड़ दिया’… ये बातें किसी झोंपड़पट्टी में रहने वाले अनपढ़ जाहिल ने नहीं की हैं। ये शब्द शिवसेना के राज्यसभा सांसद एवं सामना के संपादक संजय राऊत के हैं।
मुंबई में 9 सितम्बर को जब कंगना रनौत के दफ़्तर पर बुलडोज़र चलाया जा रहा था, मुझे 1975  का इमरजेंसी काल याद आ गया। मैं उन दिनों दिल्ली में ही रहता था। उन दिनों तोड़फोड़ के काम उस समय के संजय यानि कि संजय गान्धी के नेतृत्व में किये जा रहे थे। और कंगना का दफ़्तर 2020 के संजय राऊत के आदेश पर हो रहा था। कांग्रेस पार्टी का उस समय भी केन्द्र में राज था और आज महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ही सत्ता पर काबिज़ है। 
समय समय पर बॉलीवुड से जुड़े बहुत से कलाकारों एवं निदेशकों ने भारत की भाजपा सरकार को फ़ासीवादी, हिटलरशाही वाली सरकार कहा है। बोलने की स्वतन्त्रता पर असहिष्णुता का इलज़ाम लगाने वाले अनुराग कश्यप, जावेद अख़्तर जैसे दिग्गज शिवसेना सरकार के रवैये के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं।
यहां तक कि किसी भी हिन्दी साहित्यकार ने कंगना के साथ शिवसेना के व्यवहार के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। यहां तक कि फ़ेसबुक पर नारी विमर्श और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की कैंडल मार्च करने वाले किसी भी फ़ेसबुकिये के कम्पयूटर ने जुंबिश नहीं ली। 
शिवसेना, कांग्रेस और एन.सी.पी. की मिली जुली सरकार ने तय कर लिया है कि जो भी सरकार को चुनौती देगा उसे मसल दिया जाएगा। कंगना के फ़्लैट पर बी.एम.सी. (जिसे कवि कुमार विश्वास मुन्शी-पालटी कहते हैं) की निगाह लगी है। उस पर नशीली दवाओं को लेकर केस चलाया जा रहा है।
सवाल यह है कि जिस अध्ययन सुमन के साक्षात्कार को लेकर कंगना रनौत की जांच नशीली दवाओं को लेकर होगी, उस मामले में अध्ययन सुमन की जांच क्यों नहीं की जा रही… वह तो मान भी रहा है कि कंगना के साथ ड्रग्ज़ लेता था….
कंगना के ऑफ़िस को तोड़ने में अतरिक्त फुर्ती दिखाने वाली मुन्शीपालटी भिंडी बाज़ार,  मुम्बई मे दाऊद की अवैध बिल्डिंग हाजी इस्माईल मुसाफ़िरखाना हाई कोर्ट के कई बार आदेश के बाद भी नहीं गिराती। कहती है कि कोरोना काल में उनके पास अधिकारियों की कमी है। वैसे इसी वर्ष जून मे बी.एम.सी. ने हाईकोर्ट मे अपने एक निर्णय में  कहा था कि कोविद-19 के चलते कोई बिल्डिंग गिराने की कार्यवाही न की जाए। मगर कंगना के लिये तो ठाकरे सरकार में प्रेम के झरने बह रहे हैं। उसे तो सबक सिखाना है। 
महाराष्ट्र के गृह मन्त्री ने जब बयान दिया कि कंगना को मुंबई वापिस नहीं आना चाहिये तो कंगना ने टिप्पणी की, “महाराष्ट्र किसी के बाप का नहीं है… यह उन सभी का है जिन्होंने महाराष्ट्र के गौरव को प्रतिष्ठा दी है।”
संजय राउत ने उनके बयान का जवाब ट्विटर पर दिया, “मुंबई मराठी मानुष के पूर्वजों की धरती है. जो इससे सहमत नहीं हैं वे अपने बाप लाकर दिखाएं. शिवसेना सुनिश्चित करेगी कि हम महाराष्ट्र के ऐसे दुश्मनों को एक सबक सिखाएं।”
कंगना को हिमाचल और केन्द्र सरकार ने सुरक्षा प्रदान की ताकि वह सुरक्षित मुंबई में रह सके। मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा है कि किसी नागरिक को सरकार से जानमाल का ख़तरा हो। आम तौर पर अराजक तत्वों से सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिये सरकार मौजूद रहती है। यहां तो मामला ही अलग था।
जब कंगना अपने कहे अनुसार 9 सितम्बर को मुंबई पहुंची तब तक मुन्शीपालटी ने कंगना के दफ़्तर को नेस्तोनाबूद कर डाला था। उसके वकील की गुहारों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। 
कंगना रनौत ने हार नहीं मानी और उद्धव ठाकरे को चुनौती दे डाली, उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है तूने फ़िल्म माफ़िया के साथ मेरा घर तोड़ कर मुझसे बहुत बड़ा बदला लिया है। आज मेरा घर टूटा है कल तेरा घमंड टूटेगा। ये वक़्त का पहिया है याद रखना हमेशा एक जैसा नहीं रहता और मुझे लगता है तुमने मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है, मुझे पता था कि कश्मीरी पंडितों पर क्या बीती होगी आज मैंने महसूस किया है। आज मैं इस देश को वचन देती हूं कि मैं अयोध्या पर ही नहीं कश्मीर पर भी एक फ़िल्म बनाऊंगी। और अपने देशवासियों के जगाऊंगी क्योंकि मुझे पता था कि ये हमारे साथ होगा तो लेकिन ये मेरे साथ हुआ है इसका कोई मतलब है, कोई मायने है। उद्धव ठाकरे अच्छा हुआ कि ये क्रूरता मेरे साथ हुई क्योंकि इसके कुछ मायने हैं… जय हिंद, जय महाराष्ट्र।” 
हैरानी यह है कि फ़िल्मी कलाकार प्रकाश राज कंगना का मज़ाक उड़ा रहे हैं और कांग्रेस पार्टी के संजय निरुपम महाराष्ट्र सरकार के विरुद्ध बयान दे रहे थे। 
उम्मीद करनी चाहिये कि बिना किसी गॉडफ़ॉदर के हिन्दी सिनेमा में अपने को स्थापित करने वाली यह कलाकार सरकारी हिंसा से सफलतापूर्वक निपट सकेगी। वेद प्रकाश शर्मा ने उपन्यास लिखा था ‘वर्दी वाला गुंडा’, लेकिन ऐसी उम्मीद नहीं थी कि हमें हमारे जीवन काल में वर्दी वाले गुंडों का ऐसा जीवंत रूप देखने का अवसर मिल जाएगा। 
आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र में कोरोना के आंकड़े रूस के आंकड़ों  से आगे निकल गये हैं। महाराष्ट्र सरकार जितने प्रयास कंगना को ध्वस्त करने में लगा रही है यदि उन प्रयासों को कोरोना के विरुद्ध लगा देतो महाराष्ट्र से संभवतः कोरोना का सफ़ाया हो जाए।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. सम्पादकीय ,दो समय काल में दो संजय की भूमिका पर एक
    बेहतरीन ध्यानाकर्षण है ।
    सिने जगत का स्वर्णिम समय बीत गया लगता है ।
    प्रभा

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