एक रिवाज फ़ेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर भी है। जब कभी कोई बलात्कार की घटना होती है तो होलसेल में विलाप शुरू हो जाता है। रचनाएं यानि की मुख्य रूप से कविताओं और लघुकथाओं की एक बाढ़ सी आ जाती है। अधिकांश पोस्टों से साफ़ पता चलता है कि शब्दों को महसूस नहीं किया गया।

हैदराबाद की डॉ. प्रियंका रेड्डी के सामूहिक बलात्कार और फिर हत्या ने पूरे देश  में एक अजब सी सनसनी फैला दी है। सोशल मीडिया इस घटना के विरुद्ध लगातार लिख रहा है और न्याय की गुहार लगा रहा है।  प्रियंका एक जानवरों की डॉक्टर थी मगर नहीं जानती थी कि इलाज उन इन्सानों का होना चाहिये जो भीतर से हिंसक जानवरों से भी गये गुज़रे होते हैं। 

दिल्ली में चलती बस में हुए बलात्कार और हत्या के बाद एक नया कानून बनाया गया था जिसे निर्भया एक्ट का नाम दिया  गया था। डॉ. प्रियंका रेड्डी के केस को उसी एक्ट के तहत दर्ज किया गया है।

एक बात तो साफ़ है कि यह एक कोल्ड बल्डिड प्लैन किया गया बलात्कार और हत्या का मामला है। यही नहीं अपराधियों ने बलात्कार के बाद डॉ. प्रियंका के शरीर को जला भी दिया। इससे एक बात तो साफ़ ज़ाहिर है कि अपराधियों ने अपनी तरफ़ से अपराध के सारे सुबूत मिटाने का प्रयास भी किया।

भारत की न्याय व्यवस्था में बदलाव लाना अति आवश्यक है वर्ना बलात्कारियों को सज़ा मिलने में इतना लंबा समय लग जाता है कि करदाताओं का बहुत सा पैसा इन लोगों को वकील मुहैय्या करवाने और इनको जेल की रोटियां खिलाने में ख़र्च हो जाता है। इसमें वकीलों की भूमिका मबुत महत्वपूर्ण है। 

कुछ वर्ष पहले अरशद वारसी की एक फिल्म आई थी जॉली एल.एल.बी. जिसमें सौररभ शुक्ला ने जज की भूमिका अदा की थी। उसमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण संवाद है जब जज साहब कहते हैं – लो जी कानून अन्धा होता है, जज अन्धा नहीं होता है। जज को पहले दिन पता चल जाता है कि सच क्या है। वो तो बस उस एक सुबूत का इन्तज़ार करता रह जाता है जिससे गुनाह साबित हो जाए और अपराधी को सज़ा दी जा सके। वो सुबूत आता नहीं और अपराधी छूट जाता है।

इससे एक बात साफ़ हो जाती है कि हमारे पुलिसकर्मियों और वकीलों की इस मुहिम में अहम भूमिका है। सुबूत जुटाने का काम पुलिस का है और अदालत में समय पर पेश करने का काम वकीलों का है। जब सही सुबूत अदालत के सामने पेश हो जाएंगे तो ज़ाहिर है कि  जज को अपना निर्णय सुनाने में किसी प्रकार की झिझक या देरी नहीं होगी।

पुलिस की बात पर याद आया कि जब हमें ब्रिटेन या युरोपीय देशों में कोई पुलिसकर्मी सड़क पर मिल जाता है तो हम अतिरिक्त सुरक्षित महसूस करते हैं। मुझे शक है कि भारत में भी पुलिस की ऐसी ही छवि है। यहां यदि किसी के घर कोई पुलिस वाला वर्दी में आ जाए तो मुहल्ले में खुसुर पुसुर होने लगती है। मुझे एक बार करनाल की पुलिस अकादमी में जाने का मौक़ा मिला था। वहां देखने को मिला कि पुलिसकर्मियो को शालीन भाषा सिखाने का प्रयास किया जा रहा था।

एक रिवाज फ़ेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर भी है। जब कभी कोई बलात्कार की घटना होती है तो होलसेल में विलाप शुरू हो जाता है। रचनाएं यानि की मुख्य रूप से कविताओं और लघुकथाओं की एक बाढ़ सी आ जाती है। अधिकांश पोस्टों से साफ़ पता चलता है कि शब्दों को महसूस नहीं किया गया। 

बलात्कार और  हत्या के मामले में चार आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है.। इनमें आरिफ मोहम्मद (22), शिवा (20), नवीन(18) और चेन्नकेशवुलु (18) शामिल हैं। ताज़ा जानकारी के अनुसार पहले आरोपित आरिफ़ मोहममद की माँ ने बयान दिया है कि उसका बेटा बहुत डरा हुआ था और बार बार कह रहा था कि उससे किसी की हत्या हो गयी है। मगर उसने बलात्कार का ज़िक्र नहीं किया। और न ही लाश को जलाने की बात अपनी माँ से कही। मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसने बलात्कार किया या केवल ह्त्या की, उसका अपराध वैसा ही है। 

भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि सरकार पर दबाव बनाए रखें। हमें डॉ. प्रियंका रेड्डी के हत्यारों को सज़ा दिलवानी ही है।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.