रूस द्वारा यूक्रेन पर हुए आक्रमण से एक बात तो साफ़ है कि जो देश अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता उसे दूसरे देशों से अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये कि संकट के समय वे आकर उसकी रक्षा करेंगे।

रूस द्वारा यूक्रेन पर हुए आक्रमण से एक बात तो साफ़ है कि जो देश अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता उसे दूसरे देशों से अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये कि संकट के समय वे आकर उसकी रक्षा करेंगे।
आज तक यही देखा जा रहा था कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद की दुनिया में केवल अमरीका ही दूसरे देशों पर आक्रमण करता रहा फिर चाहे विएतनाम हो कंबोडिया, अफ़ग़ानिस्तान हो या इराक़ या फिर लीबिया। बाकी पूरा विश्व या तो अमरीका के साथ खड़ा दिखाई दिया या मजबूर।
इससे पहले चीन ने भी तिब्बत और भारत के बहुत से इलाकों पर हमला करके उन पर कब्ज़ा कर लिया था। मगर विश्व भर के देश उस समय भी तमाशबीन बने देखते रहे। रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पूतिन पश्चिमी देशों की प्रकृति से पूरी तरह वाक़िफ़ हैं। पूतिन को मालूम था कि अमरीका और नाटो देश केवल शोर मचाएंगे… उनके बस का कुछ भी नहीं। इससे पहले रूस क्रीमिया को हथिया चुका है। शायद पूतिन का सपना है पुराने सोवियत संघ का निर्माण।
वहीं अमरीका और नाटो देश भी रूस को तंग करने से बाज़ नहीं आए। नाटो देशों ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू किया और पूर्वी ब्लॉक के बहुत से देशों को नाटो का सदस्य बना लिया। रूस नहीं चाहता था कि युक्रेन को नाटो देशों की सदस्यता मिले। उसे डर था कि जैसे ही युक्रेन नाटो सदस्य बनेगा नाटो देशों के मिसाइल रूस की सीमा पर तैनात कर दी जाएंगी। पूतिन को यह मंज़ूर नहीं है।
पूतिन ने युक्रेन की सीमा पर अपने सैनिक, टैंक, हैलिकॉप्टरों और बख़्तरबंद गाड़ियों का जमावड़ा करने में लगा रहा और अमरीका समेत नाटो देश चेतावनियां देते रह गये। युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को यह विश्वास हो चला था कि पश्चिमी देशों की धमकी के चलते रूस कम से कम युक्रेन पर सैनिक कार्यवाही नहीं करेगा।
पूतिन सोच समझ कर अपनी चालें चल रहे थे। सबसे पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के दो अलगाववादी क्षेत्रों ‘दोनेत्स्क’ और ‘लुहांस्क’ को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दे दी। युक्रेन के तीन तरफ़ डेढ़ लाख से अधिक सैनिक तैनात कर दिये। दोनों पक्ष जैसे एक दूसरे को तौल रहे थे। रूस कहे जा रहा था कि उसका हमला करने का कोई इरादा नहीं है और नाटो देश कहे जा रहे थे कि यदि हमला हुआ तो रूस को परिणाम भुगतने होंगे।
यहां पुरवाई के पाठकों को यह बताना भी ज़रूरी होगा कि युक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की पहले एक हास्य कलाकार थे। वे 2019 में युक्रेन के राष्ट्रपति बने थे। मैं उनका मुक़ाबला भगवंत मान से नहीं कर रहा। मगर यह भी सच है कि ज़ेलेंस्की मामले की गंभीरत को समझने में असफल रहे।
रूस ने पुरज़ोर हमला किया और पहले ही दिन युक्रेन के 137 लोगों की मृत्यु हो गयी। एअरपोर्ट, सैनिक ठिकाने और बहुत से भवनों पर रूस के मिसाइलों ने धमाके किये और आग लगा दी। टैंक और सैनिक राजधानी कीव के निकट पहुंच गये। सभी मंत्रियों को खंदकों में शरण लेनी पड़ी। अफ़वाह फैल गयी कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की देश छोड़ कर भागने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
रूस ने बम्बारी के साथ-साथ चेतावनी भी दे डाली कि यदि नाटो देशों ने रूस पर आक्रमण करने की ग़लती की तो उन्हें ऐसा मौत का तांडव देखने को मिलेगा जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
हमे याद रखना होगा कि 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था, तब नाटो देशों के साथ रूस के राष्ट्रपति गोर्बाचेव के साथ एक सहमति बनी थी कि नाटो पूर्वी यूरोप (पूर्वी जर्मनी) से आगे अपने संगठन का विस्तार नहीं करेगा और सोवियत संघ से अलग हुए राष्ट्रों को नाटो संगठन में शामिल नहीं करेगा। लेकिन अमरीका की शह पर नाटो ने इस समझौते का न केवल लगातार उल्लंघन किया बल्कि रुस के भीतर भी हस्तक्षेप करने का प्रयास करता रहा। इसके परिणाम स्वरूप 1991 में जहां नाटो देशों की संख्या 17 थी, वह अब बढ़कर 30 हो चुकी है।
पुरवाई पत्रिका रूस द्वारा युक्रेन पर थोपे गये युद्ध का समर्थन नहीं कर रही है। हम किसी भी प्रकार के युद्ध के विरुद्ध हैं मगर एक संपादक के तौर पर मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मैं अपने पाठकों को स्थिति के हर पहलू से अवगत करवाऊं।
वैसे तो यूक्रेन हर मंच पर भारत के विरोध में खड़ा दिखाई दिया है। यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार बेचने में सबसे आगे है। फिर भी इस संकट के समय में यूक्रेन के राजदूत इगोर पोलिखा ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की गुजारिश की है। यूक्रेन के राजदूत ने कहा कि भारत और रूस के संबंध अच्छे हैं। भारत यूक्रेन-रूस विवाद को रोकने में अहम योगदान दे सकता है। इगोर पोलिखा ने कहा कि हम पीएम नरेंद्र मोदी से गुज़ारिश करते हैं कि वह तत्काल रूस के राष्ट्रपति पुतिन और हमारे राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की से संपर्क करें।
उधर भारत के लिये स्थिति ख़ासी विषम है। रूस भारत का सबसे पुराना समर्थक देश है। भारत को सैनिक साज़ो सामान की सबसे अधिक पूर्ति रूस ही करता है। सुरक्षा परिषद में भी रूस ने ही हमेशा भारत के पक्ष में वीटो किया है। भारत रूस के विरुद्ध कोई बयान दे ही नहीं सकता।
आजकल बदले हुए हालात में भारत अमरीका के साथ भी बहुत से संगठनों का हिस्सा बना हुआ है। ख़ास तौर पर चीन के विरुद्ध भारत को अमरीका के समर्थन की आवश्यक्ता महसूस होती ही है। इसलिये सुरक्षा परिषद के रूस के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव में भी भारत ने तटस्थ रुख़ अपनाते हुए दोनों पक्षों को युद्ध रोकने की सलाह दी है।
भारत के लगभग 16,000 विद्यार्थी इस समय यूक्रेन में फंसे हुए हैं। वैसे भारत के विदेश मंत्रालय ने समय रहते अपने नागरिकों को यह संदेश प्रेषित कर दिया था कि वे यूक्रेन से जल्दी से जल्दी निकल जाएं। मगर ऐसा हो नहीं पाया। अब विदेश मंत्रालय और एअर इंडिया मिल कर भारतीय नागरिकों को यूक्रेन से वापिस भारत लाने के अभियान में जुट गये हैं। भारतीय विद्यार्थियों को सीमावर्ती देश रोमानिया में लाकर वहां से उड़ान द्वारा भारत लाया जाएगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग 25 मिनट तक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से वर्तमान समस्या पर बातचीत की। इस विषय पर लगातार मंत्री परिषद भी आपस में बातचीत कर रही है।
वैसे वर्तमान युद्ध ने एक बात तो साफ़ कर दी है कि संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद सबसे अधिक बेबस संस्थाएं हैं। सुरक्षा परिषद के नियमों को बदलना होगा। वरना पाँच स्थाई सदस्यों के विरुद्ध कभी भी कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं हो पाएगा। सुरक्षा परिषद में यूक्रेन के राजदूत आँखों में आंसू लिये अपनी गुहार लगा रहे थे। और अमरीका व संयुक्त राष्ट्र केवल बातें कर पा रहे थे।
रूस द्वारा यूक्रेन पर किये गये आक्रमण ने तैइवान के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिये हैं। चीन तो पहले ही तिब्बत और भारत के क्षेत्र हड़प चुका है। पश्चिमी देशों के रवैये ने उसके हौसले अवश्यबुलंद कर दिये होंगे कि यूक्रेन की ही तरह तैइवान भी नाटो का सदस्य नहीं है। तो क्या चीन उसे हथियाने के लिये रूस वाला पैंतरा नहीं इस्तेमाल कर सकता।
एक तरफ़ तो अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ़्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणाएं कर रहे हैं। वहीं अमरीका की स्पेस एजेंसी नासा ने घोषणा की है कि वर्तमान युद्ध की तनावपूर्ण स्थिति में भी दोनों पक्ष यानी कि रूस और अमरीका अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन में सहयोग करना जारी रखेंगे। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी ने स्पष्ट किया कि रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मॉस के साथ उसका सहयोग अभियान सामान्य रूप से जारी रहेगा। ऐसी ढुलमुल नीति से कभी किसी समस्या का हल निकलना आसान नहीं होगा।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

17 टिप्पणी

  1. अंतराष्ट्रीय राजनयिक और कूटनीतिक सम्बन्धों पर विस्तृत और विचारणीय संपादकीय सटीक और सार्थक लगी । सब कुछ साफ नज़र आने के बाद भी एक द्वंद की स्थिति दुनिया के सामने है ,बस कोई दैवीय चमत्कार हो और विश्व युद्व से दुनिया बची रहे ।
    सादर नमन
    dr prabha mishra

  2. अंतराष्ट्रीय समस्या पर आपका यह सम्पादकीय न केवल एक विस्तृत वार्ता सामने रखता है, बल्कि कई बिंदुओं पर स्थिति को स्पष्ट करता है। चाहे वह अतीत में नाटो द्वारा रूस के साथ किए गए समझौतों का उल्लंघन करना हो, यूक्रेन का युद्ध के परिपेक्ष में किया गया व्यवहार हो या वर्तमान मुद्दे पर भारत की स्थिति हो। और आपका सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिंदु तो आज का एक सच बनाता जा रहा है कि युद्ध की स्थिति में किसी भी देश को स्वयं पर ही निर्भर होना होगा, दूसरे देशों की मदद पूरी तरह बेमानी ही है। बहरहाल हमेशा की तरह आपके मुद्दे से जुड़े विषय पर एक बेहतरीन संपादकीय के लिए दिल से बधाई और सादुवाद तेजेन्द्र सर।

    • धन्यवाद भाई विरेन्द्र जी। आपने स्थिति की गंभीरता को अपनी टिप्पणी में रेखांकित किया है।

  3. यूक्रेन के स्थिति अमेरिका और नाटो देशों ने वही कर दी है – चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम – यूक्रेन आत्मघात करने पर तुला है, अपना सर्वनाश करके अंत में समर्पण करना पड़ेगा। लेकिन इस युद्ध से विश्व को सभी नुकसान झेलने होंगे, यह अभी तक के दृश्य से सिद्ध हो गया है। भारत के प्रभाव को देख कर जहां खुशी हो रही है, वहीं चिंता भी कि धर्म संकट में फंसा हुआ है। UNO, और UNSC तो मज़ाक बन कर रह गए हैं। वैश्विक दृष्टिकोण से लिखा संपादकीय प्रशंसनीय है।

  4. तेजेंद्र जी, आपने सीमित शब्दों में वर्तमान स्थिति और उसके कारणों की बेहतरीन तस्वीर पेश की है। निस्संदेह युद्ध किसी भी मसले का हल नहीं है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कई बार एकमात्र विकल्प रह जाता है।

    • प्रगति आप तो इस युद्ध के कारण प्रभावित भी हुई हैं और मॉस्को जाने की बजाय आप मुंबई पहुंच गयी हैं। इन हालात में भी आपने टिप्पणी की है… धन्यवाद।

  5. बिल्कुल सटीक बात । अगर आज रूस युद्ध को नहीं रोकता है, तो स्थिति बहुत ही भयावह होगी।1971 का समय भारत कभी नहीं भूल सकता जब सिर्फ रूस ही था जिसने भारत का साथ दिया था,और यही बात रूस के राष्ट्रीय अच्छे से जानते थे कि अमेरिका और भारत उसका विरोध कभी नहीं कर पायेंगे।आज भी भारतीय छात्रों की बसों पर लगे तिरंगे को देखकर रूसी सैनिक बिना रोक टोक के जाने दे रहे हैं किन्तु इस सब पर यूक्रेन की आमजन का क्या दोष?

  6. Congratulations for presenting the background of the present military crisis between Russia n Ukraine in such an authentic and objective manner.
    We all share the concern and wish it gets resolved without leading to a worse situation.
    Regards
    Deepak Sharma

  7. स्थिति को स्पष्ट करता हुआ आपका संपादकीय बहुत अच्छा है। किंतु रूस ने स्थिति खराब कर दी है। विश्व का मानवाधिकार आयोग भी चुप है। भारत यदि कश्मीर में कुछ राष्ट्रहित का कार्य करता है तो देश के भीतर भी विवाद होने लगता है। दुनिया के देशों को समझना होगा कि किसी भी राष्ट्र की अम्मन्यता से कितने लोगों की जानें जाती हैं!!

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