निर्जन पथ पर मेरे श्लथ पगों को घिसटते और आगे बढ़ते हुए देखा होगा
मेरी उदास आँखों में सूरज को डूबते हुए अवलोका होगा
ज़िन्दगी में मिले काँटों से हरदम होते रहते लहू-लुहान फूलों ने मेरा दर्द तो समझा होगा
आवाज़ दी होगी मुझे गले से लगाया होगा फूलों ने मेरी व्यथा को चुपके से सहलाया होगा पतझड़ के इस मौसम मेरे हृदय-पथ पर वसंत को उगाया होगा!
2- दुनिया एक पुस्तकालय है
यह दुनिया एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें करोड़ों ग्रंथ हैं हर प्राणी एक किताब है जिसके कई-कई खंड हैं
कुछ-एक को डूब-डूब कर और कई-कई बार पढ़ता हूँ कुछ को झाँकता हूँ भीतर तक और पढ़ता हूँ जहाँ-तहाँ से कुछ के कवर को देख आगे बढ़ जाता हूँ सहसा ही आह कि ज़्यादातर दृश्यमान और पठनीय किताबों को एक जीवन में पढ़ना आसान कहाँ
वे जो सूक्ष्म-अति-सूक्ष्म जीव हैं अपनी नंगी आँखों से जिन्हें देखना संभव नहीं उन्हें पढ़ना हो अगर तो भला कैसे हो!
हमारी ओर से जो भी हो मगर वे निश्चय ही पढ़ रहे हैं हमें सतत पूरी धरती पर अलग-अलग कोणों से हाँ, हमारे चिकित्सक और वैज्ञानिक उन्हें पढ़ने-समझने की कोशिश में लगे हैं अनवरत
वे कीटाणु और विषाणु बदलकर ज्यों अपना ‘वर्क-रोस्टर’ बारी-बारी से अपनी आक्रामक और विकासमान उपस्थिति से हमें छकाते रहे हैं प्राण हमारे हरते रहे हैं नई-नई चुनौतियाँ हमारे समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं
उन्हें ठीक-ठीक जानना और समझना जाने कब मुमकिन हो उन्हें अपना दोस्त बनाना जाने कब मुमकिन हो!
3- मास्क
कभी नहीं देखे मैंने लोगों को एक साथ इतने सारे मास्क लगाए हुए
जो मास्क अमूमन चिकित्सक और अपराधी लगाया करते थे अब आम जनता के लिए उनका प्रयोग जगह-जगह अनिवार्य कर दिया गया है
क्या इस धरती पर निर्दोष ही अपराधियों के वेष में घूम रहे हैं या अकस्मात् हमारे समाज में संख्या कुछ ज़्यादा बढ़ गई है! आह कि हमारी कलुषता ने ही शायद हमें अपराधियों की ऐसी शक्ल दे दी आह कि हमारे चिकित्सक ही अब मरीज़ हुए जाते हैं
स्वयं को दुनिया का ठेकेदार मानने और भगवान का अवतार बतानेवाले लोग आज जाने किन खोहों में छुपे पड़े हैं
जब पूरी पृध्वी हो गई है दूषित-प्रदूषित ऐसे में हमारे ये मास्क हमें बचाएँ, न बचाएँ हमारे कर्कश और ज़हर उगलते मुँहों को ढाँपने में हो रहे हैं कामयाब निश्चय ही हमें आगाह भी कर रहे हैं बार-बार कुछ आत्म-चिंतन करने को
चेहरे को ढँकना नहीं है समस्या से कोई किनाराकशी करना हाँ, वाचालता को छोड़ अपने भीतर उतरने की इसके बहाने एक कोशिश ज़रूर हो सकती है।
4- दृश्य बदल रहा है
दृश्य बदल रहा है परिदृश्य बदल रहा है गौरवशाली भूत को भूल जाइए महानुभावो! एक अनदिखे विषाणु से हमारा चमकता वर्तमान बदल रहा है
बदलते मौसमों के साथ कितनी आशंकाएँ बढ़ी हैं यह धरा आगे जाने कैसी होगी हमें अपने आपको ही देनी पड़ रही है आहूति जब मनुज ही हो जाएँ हविष्य तब जानिए कि विश्व का भविष्य बदल रहा है!