मनोज कुमार मनोज के गीत
अब चैन क्यों मिलता नहीं मन है प्रणय की प्यास में।
साकेत के सौमित्र से, मन उर्मिला सा जल रहा।
परिरंभ आतुर देह को, लेपन मिलेगा प्रीत का।
देखो नदी सहकर सभी, गहरे समन्दर मिल गयी।
वह कौन-साधन बता? जिससे फलित तू हो सके।
छूकर तुझे देखूँ प्रिये! रति से तरंगित गात से।
फिर निराला गीत बनकर वेदना में में छा रहे हो।
रोम कंटक हो गये हैं, याद में देखो तुम्हारी।
एक अनुबंधन प्रणय का, दर्द पर भारी पड़ेगा।
ये तड़ागों के कुसुम सब, हर कहानी कह रहे हैं।
है प्रिये मुधु प्रेम तुमसे, तुम नहीं तो वेदना है।
तुझसे हृदय अरविंद कुसमित पल्लवित सद्भावना।
याचक बनूं, साधक बनूं, गायक बनूं, बस नेह दो।
मतिमान हो, रतिवान हो, तू है मदन मन की प्रिया।
सब एषणा मिटती रही, इस दृष्टि पथ जब आ गए।
किस जन्म की आराधना, किस जन्म की पावन कथा।
रसमय अधर, रक्तिम कपोलो का निमंत्रण क्या कहें ।
हमेशा घेर लेती है, मुझे यह याद की गुंजन।
उदय होने से पहले ही, कही हम खो नहीं जाएँ।
हृदय के गाँव आ जाओ, करें कुछ नेह की बातें।
तुम्हारी भावना अब तो कहीं जीने नहीं देती।
कठिन पाषाण को तुमने तरल-सा जल बनाया है।
वचन जो भी दिए हे भाविका!पूरे निभाएँगे।
मनोज कुमार मनोज
सम्पर्क सूत्र
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बड़े और और लंबे गीत हैं आपके विप्रलंब श्रृंगार से आपूरित मनोज जी! पहले तो देख कर ही हिम्मत नहीं हुई पढ़ने की।पर पढ़ा। गीत में वियोग की पीड़ा महसूस हुई ।वियोग गीत लिखना सरल नहीं होता है इन गीतों के लिए आपको बधाई।