उनके आगे हम भला उतने ज़ियादा कब खुले
बोलने को आँख से बढ़कर हैं जिनके लब खुले
तेज दोपहरी हो चाहे सुब्ह हो या शाम हो
रात होना तय है तेरी ज़ुल्फ चाहे जब खुले
कश्मकश में हूँ कि मैं किस रंग का तोहफ़ा चुनूँ
रंग जितने हैं जहाँ में तुझ पे सब के सब खुले
वस्ल की रातें मिलें या हिज्र की रातें सही
राज़ उनके दिल का मेरे सामने या-रब खुले
दिल के दरवाज़े पे दस्तक हो गई वह खुल गया
ये नहीं वो शय कि जब तुम चाह लो बस तब खुले
पत्थरों की चोट से तब तब हमें तोड़ा गया
आईना बन कर किसी के सामने जब जब खुले
छः
हवा के साथ मिलकर पंछियों के पर को ले डूबा
तरक्की का धुँआ धरती तो क्या अंबर को ले डूबा
सभी को छोड़कर पीछे हमें आगे निकलना था
जुनूँ आगे निकलने का ज़माने भर को ले डूबा
तभी से ही न कोई सूर मीराँ जायसी जन्मा
बदलता दौर जबसे प्रेम के आखर को ले डूबा
जिसे खुद को मिटाकर भी बुजुर्गों ने सहेजा था
कि बँटवारा हमारे गाँव के उस घर को ले डूबा
ज़माने हो गए बदली नहीं अख़बार की फ़ितरत
किसी का डर बढाता है किसी के डर को ले डूबा