डॉ मुक्ति शर्मा की कविता – जाने क्या है…!

जाने क्या है? खलिश है खला है जाने क्या है ये कुछ मुझ में प्रज्वलित है जाने क्या है...। आंखों से दिल का हाल बयां हुआ है होंठ क्यों सिले हैं जाने क्या है। अभी तक कोलाहल में तल्लीन है यह कंपन यही बस तरतीब है जाने क्या है। दुनिया की परवाह ना...

पुरवाई के 07 नवंबर 2021 के संपादकीय पर पाठकीय प्रतिक्रियाएं

07 नवंबर 2021 के संपादकीय ‘ भ्रम भंग होते ही हैं...’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं - शन्नो अग्रवाल, लंदन बहुत बढ़िया और सटीक संपादकीय लिखा है आपने, तेजेन्द्र जी। आज जो भी दिखता या लगता है  वह इमेज किसी वजह से भविष्य...

निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल

बात  सच्ची  कहो  पर  अधूरी   नहीं। लोग   माने  न   माने   ज़रूरी   नहीं।। आज जो  है  जहाँ  कल  रहेगा वहाँ। जानकारी  किसी  को  ये  पूरी  नहीं।। जिनको नफ़रत थी हमसे जुदा हो गए। दूर  रह  कर  भी  उनसे  है  दूरी  नहीं।। दोस्ती दिल से की दुश्मनी खुल के की। साफ दिल  हूँ ...

तेजस पूनियां का लेख – समाज और सिनेमा में पर्यावरण

साल 1880 के बाद से 21 वीं सदी के प्रत्येक साल को सबसे गर्म सालों की सूची में 14 वें पायदान पर रखा गया है। साल 2000 से 2004 के बीच हुए सर्वे के अनुसार अलास्का, पश्चिमी कनाडा, रूस में औसत तापमान वैश्विक औसत...

हिंदी में एक नया प्रयोग साइंस फिक्शन ‘3020 ई.’ से

एक हजार वर्ष बाद हमारी स्थिति क्या होगी? हमारा जीवन कैसा होगा? नदी-पेड़-तालाब का साथ मिल पायेगा या नहीं? कैसी होगी हमारी प्यारी धरती? कैसे होंगे धरा के लोग? ऐसी कल्पना से ही मन रोमांच से भर उठता है। मन यह जानने को बेचैन...

पुरवाई के संपादकीय ‘किसान आन्दोलन : कितने सच कितने झूठ’ पर कुछ पाठकीय प्रतिक्रियाएं

31 जनवरी 2021 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय 'किसान आन्दोलन : कितने सच कितने झूठ' पर संदेश के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं। डॉ. तारा सिंह अंशुल अभी कुछ समय पूर्व पुरवाई पत्रिका की संपादकीय शीर्षक " किसान आंदोलन : कितने सच कितने झूठ " पढ़ा, यह शीर्षक...