Saturday, October 12, 2024
होमकविताडॉ. अंजू सक्सेना की कविता - स्त्री की व्यथा

डॉ. अंजू सक्सेना की कविता – स्त्री की व्यथा

मैं ही बंधी बंधन में
तुम बंधकर भी न बंध सके।
मैं ही सदा चली संग तुम्हारे
तुम साथ रहकर भी संग ना चल सके।
चलते-चलते जो थक गए ,
कदम तुम्हारे मैं रुक गई ।
पर तुम मेरे थकने पर
कभी दो घड़ी ना रुक सके।
तुम्हारी खुशी के सब जतन किए मैंने।
पर मेरी खुशी के लिए
तुम कोई जतन ना कर सके।
तुम्हारे रूठने पर हमेशा मनाया मैंने
मुझे भी बहुत-सी बातें चुभती होंगी
पर तुमने कभी जाना ही नहीं।
खुद ही रूठी कई बार
और खुद ही मान गई
पर तुम कभी ना मना सके।
जो तुम चाहते थे वह तुम करते रहें
मैं क्या चाहती हूं
तुम कभी ना सुन सके।
अपने सपने भूलकर तुम्हारे और
परिवार के सपनों में रंग भरे हैं मैंने।
पर मेरे समर्पण,त्याग पर दो शब्द
स्वीकृति के भी कह ना सके।
घाव तो बहुत दिए
कभी अपेक्षा के कभी उपेक्षा के
पर सांत्वना का,
प्रेम का मरहम कभी तुम बन ना सके।
मै स्त्री सदा बनी रही आधार तुम्हारा
मेरा संबल तुम बन ना सकें।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest