अजीब है,
हाँ अजीब ही तो है !
अचानक से ये दुनिया
गोल से तिकोनी होने लगी है
चुभने लगे हैं नुकीले कोने
उभरने लगे हैं आढ़े टेढ़े नए आकार 
खिंच-भिंच के बैठने भर जितनी
बस बची हो जब जगह तो
डेढ़ फ़िट फ़ासले कहाँ सिमटेंगे ?
देखो गिरने लगे हैं धरती के कोनों से
लोग ओंधे मुँह आसमान में 
डरे हुए हैं दुनियादारी के स्कूल
ताले में छुपा कर रख दिए हैं
जाने कितने दिनों के लिए
बचपन से पढ़ाए समझाए
दुनियादारी के तौर तरीक़े
मिलने मिलाने के रिवाज
सद्भावना के सैंकड़ों उदाहरण
हाथ मिलाने, गले लगाने
हाथ चूमने, पैर छूने की रवायतें 
दिल तो शायद कल भी दूर थे
पर अब ज़रूरतन दूरियाँ हैं
पहले ज़ोर दूरियाँ मिटाने पे था
आज सारा ज़ोर दूरियाँ बढ़ाने पे है
क्योंकि नज़दीकियाँ जानलेवा हैं ।
इकलौता संदेश है
दूर रहो !
बदलो ! बदलो !
आदतें बदलो ! 
पर
बहुत मुश्किल है बदलना आदतें
उससे मुश्किल दुनियादारी के ठौर
और सबसे मुश्किल पता है क्या है ?
धरती के अंगड़ाई लेते हुए,
आकार बदलते हुए
इंसानी प्रजाति के दिलों का जुड़े रहना 
देखो खिंचने लगी हैं महीन रेखाएँ दुनिया के नख़्से पे
देखो बनने लगे हैं कठघरे घरों के अंदर !
खैर चंद रोज़ की बात है, सब्र रखो, धीरज धरो
जल्द बनेगा वो औज़ार जो धरती को फिर गोल कर दे
मार मार के, ठोक पीट के, इधर उधर से
जैसे सदियों से करते आए हैं हम इंसान
और फिर इंसान की आम ज़िंदगी शुरू हो पाएगी
निकल पाएँगे हम दबडों से,
और वो जानवर फिर पिंजरों में जाएँगे 
पर शर्तिया 
नई दुनिया में जाने का रास्ता
कुछ तो बदलावों से होकर ज़रूर निकलेगा
इसलिए सम्भाल लो खुद को,
बंद करके, बदल के आदतें पुरानी
कठिन पर दिलचस्प होगी नई दुनिया
इसलिए बचना ज़रूरी है 
संभलो, बदलो, वक्त रहते अपने लिए
हो सके तो 
बिना दिलों में दूरियाँ किए !!!
बिना दिलों में दूरियाँ किए !!!

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