होम कविता बी. एल. गौड़ की दो कविताएँ कविता बी. एल. गौड़ की दो कविताएँ द्वारा बी. एल. गौड़ - November 15, 2020 141 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 – सूरज अब तू अपने घर जा… सूरज अब तू अपने घर जा अश्व लगे थकने मैं भी धीरे धीरे पहुँचूँ घर आँगन अपने । सुबह सवेरे फिर आ जाना जब बजते हों शंख पंछी जब नीड़ों से निकलें फैला अपने पंख तब हम दोनों संग चलेंगे फिर संध्या की ओर तू अस्ताचल ओर सरकना मैं बस्ती के छोर घर पर बाट जोहते होंगे कुछ मेरे अपने । मनभावन का मिलना जग में केवल सपना है अमर प्रेम तो इस दुनिया में एक कल्पना है सारी रात बदलकर करवट जब हमने काटी कब तक पीर मथेगी मन को पूछे यह माटी बुद्धि कहे सुन यह दुनिया है देख न तू सपने । 2 – सुनो ताल की मीन… सुनो ताल की मीन न जाना दूर किनारे तक उस गोलाई वाले घर में बगुले रहते हैं । उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है उनके पास न जाने कैसा जादू मंतर है पांच बरस तक ये लक्ष्मी की पूजा करते हैं । अगर देश के किसी भाग में आ जाये विपदा तो फिर से आकर कर जाते इक झूठा वायदा इसी तरह से ये संन्यासी रमते रहते हैं । एक तिहाई से कुछ ज्यादा इनमें दागी हैं कुछ बलात्कार कुछ डाकू टाइप हिंसक गांधी हैं । कभी कभी ये न्यायालय के दर्शन करते हैं । संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ मुक्ति शर्मा की कविता – स्त्री प्रेम में छली जाती है विनिता शर्मा की कविता – गर कभी चर्चा चलेगी डॉ किरण खन्ना की कविता – शीरो कैफे की होली कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.