होम कविता बी. एल. गौड़ की दो कविताएँ कविता बी. एल. गौड़ की दो कविताएँ द्वारा बी. एल. गौड़ - November 15, 2020 126 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 – सूरज अब तू अपने घर जा… सूरज अब तू अपने घर जा अश्व लगे थकने मैं भी धीरे धीरे पहुँचूँ घर आँगन अपने । सुबह सवेरे फिर आ जाना जब बजते हों शंख पंछी जब नीड़ों से निकलें फैला अपने पंख तब हम दोनों संग चलेंगे फिर संध्या की ओर तू अस्ताचल ओर सरकना मैं बस्ती के छोर घर पर बाट जोहते होंगे कुछ मेरे अपने । मनभावन का मिलना जग में केवल सपना है अमर प्रेम तो इस दुनिया में एक कल्पना है सारी रात बदलकर करवट जब हमने काटी कब तक पीर मथेगी मन को पूछे यह माटी बुद्धि कहे सुन यह दुनिया है देख न तू सपने । 2 – सुनो ताल की मीन… सुनो ताल की मीन न जाना दूर किनारे तक उस गोलाई वाले घर में बगुले रहते हैं । उनकी कथनी और करनी में भारी अंतर है उनके पास न जाने कैसा जादू मंतर है पांच बरस तक ये लक्ष्मी की पूजा करते हैं । अगर देश के किसी भाग में आ जाये विपदा तो फिर से आकर कर जाते इक झूठा वायदा इसी तरह से ये संन्यासी रमते रहते हैं । एक तिहाई से कुछ ज्यादा इनमें दागी हैं कुछ बलात्कार कुछ डाकू टाइप हिंसक गांधी हैं । कभी कभी ये न्यायालय के दर्शन करते हैं । संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉली की दो कविताएँ जितेन्द्र कुमार की व्यंग्य कविता – क्योंकि मैं वरिष्ठ हूँ शैली की कलम से : सावन में शिव से प्रार्थना – जयतु, जयतु महादेव Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.