होम कविता शिरीष पाठक की कविताएँ कविता शिरीष पाठक की कविताएँ द्वारा Editor - August 2, 2019 132 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet शिरीष पाठक मंदिर का भिखारी एक मंदिर के बाहर खड़े एक भिखारी से मैंने पूछा क्या मिलता है दिन भर यहाँ पे भीख मांग कर कभी क्या सोचा नहीं तुमने नौकरी के बारे में इज्ज़त के साथ पैसा नहीं कमाना चाहते वो मुस्कुराया और कहने लगा जानते हो बेटा इस काम में भी लोग इज्ज़त करते है कह ही देते है बाबा पैसे नहीं है आगे बढिए सुन कर मैं एकदम शांत हो गया मैंने अपने पास से कुछ रुपये देने चाहे इस पर वो कहने लगा कुछ खाना खिला दो बाबु मैंने बगल के ठेले वाले से कहा बाबा को खाना खिला दो मैं मुड़ कर जाने लगा और तभी बाबा ने मुझको दुआ देते हुए कहा तुमको सारी खुशियाँ मिले मैं मुस्कुराते हुए चलने लगा और सोचा कितना आसान है न खुशियों को पा लेना सवाल सवाल पूछता हूँ मैं खुद से ज़रूरी तो नहीं है हमारा इस तरह खामोश हो जाना कब तक देखते रहेंगे हम ऐसे लोगों को परेशान होते हुए उस बेटी का सोचना जो खो देती है अपने पिता को उस बाप का जिसके बाहों में दम तोड़ देती है उसकी बेटी उस बाप की हिम्मत देख लेनी चाहिए जो अपने बेटे को खोने के बाद भी कहता है शांत रह जाने को कैसे कुछ लोग खुश हो जाते है ऐसी घटनाओं से बिना सोचे हुए कह जाते है कुछ चुभने वाली बातें थाम लेना नहीं चाहते उस मां के आंसू जो अपने बेटे के लिए इंसाफ ढूंढती है अजीब लगता है ऐसे लोगो से बात भी करना जो न जाने धर्म ढूंढ लेते है हर इंसान में ये भी भूल जाते है ये हवा ये पानी और ये आसमान किसी एक धर्म के नहीं होते अक्सर मैं तुमको सोचता हूँ अक्सर सोचता हूँ क्या होता अगर हम एक दुसरे को पहले मिले होते क्या हमारा रिश्ता तब भी ऐसा ही होता हमारा साथ क्या इतना ही मज़बूत होता तब भी मैं जब भी तुमको देखता हूँ सोचता हूँ कोई इतना सुन्दर कैसे हो सकता है खुद को कभी मेरी निगाहों से देखा करो यकीन हो जाएगा मैं तुमसे झूठ नहीं कहता हूँ तुम मुझे कहती हो “नहीं चाहती हूँ तुमको बिलकुल भी” लेकिन चाहती हो मैं खुश रहूँ तुम्हारे साथ तुम भी मेरे साथ खुद को भूल जाती हो अक्सर मुझे अच्छा लगता है इंतज़ार तुम्हारे आने का भी तुम्हारे साथ होने पे तुझमें खो जाने का भी और तुम्हारे साथ अपने ख्वाबों की दुनियां को हकीक़त बनाने का भी मैं अक्सर कहता हूँ तुम मुझे बहुत पसंद हो और मैं तुमको प्यार भी करता हूँ शायद कुछ भी कह जाता हूँ जो तुमको नाराज़ भी कर देता है मगर ये मान लो मैं तुमको खुद से ज्यादा ही चाहूँगा रोजाना मिलता हूँ तुमसे रोजाना अब एक आदत सी बन गयी हो तुम मेरे लिए एक ऐसी आदत जो मेरे एक भारी बीत रहे दिन को हल्का बना देती हो अच्छा लगता है होना तुम्हारे साथ पुरे दिन के लिए तुम बेचैन होती हो लेकिन मेरे लिए अपनी बेचैनियाँ छुपा लेती हो चाहती हो मुझको खुश देखना लेकिन ये भूल जाती हो मेरी ख़ुशी तुमसे है तुम जब मेरे साथ होती हो इस बात से है जानती हो तुम तुमसे आंसू नहीं छिपते तुम कह देती हो हवा का असर है समझता हूँ तुमको अब मैं भी शायद थोड़ा ही सही लेकिन समझता ज़रूर हूँ कई बार तुमको मैं मुस्कुराता हुआ देखता हूँ सोचता हूँ तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में तुम कुछ नहीं कहती मुझसे लेकिन ये भी जानता हूँ मैं तुमको फ़िक्र रहती है हमारी जानती हो दिख जाती हो तुम मुझको अब हर कहीं जब तुम नहीं होती मेरे साथ तब भी मेरे पास बैठी रहती हो मुझको होसला देती हुई मुझको आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हुई और अक्सर मुझको हर दिन और बेहतर बनाती हुई ज़िन्दगी के सवाल ज़िन्दगी के न जाने ये कैसे सवाल है कल तक जिसको हँसते बोलते देखा हो अचानक से खामोश हो जाता है अलविदा कह जाता है बिना कुछ कहें अजीब लगता है किसी ऐसे इंसान का जाना जो मिलता है ख़ुशी के साथ हर बार भूख प्यास के अलावा भी जीवन में कुछ और जो हम शायद समझ नहीं पाते इंतज़ार करना खुद की मौत के बाद भी अपनों का भारी होता है कभी बर्फ के टुकड़ो पर लेट के और कभी टूटी हुई लकड़ियों पर आग से जल जाना भी आसान होता है और मिटटी में खुद को छुपा लेना भी आखिर मिल जाना हम सब को मिटटी में ही होता है कभी जलते हुए देखा है किसी को खुद की मौत के बाद भी जल जाना दूसरों के लिए जानते है हम सभी को मिटटी बन जाना है लेकिन ज़मीन में जाने का डर हमेशा रहता है जीवन शुन्य से शुरू होकर शुन्य पर ही अंत हो जाता है और हम सब शरीर बदल लेते है आत्मा बस आत्मा रह जाती है संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएँ प्रेमा झा की कविता – माँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने 1 टिप्पणी विभा जी परमार की कविताए पढ़ी ।पसंद आयी। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
विभा जी परमार की कविताए पढ़ी ।पसंद आयी।