सूर्य को पिता, धरती को माता
और चांद को कहा गया है मामा
यानि हम रहते हैं एक स्त्री की गोद में
न जाने कितने अरबों-खरबों वर्ष से
यह धरती सिर्फ देती आयी है,
हमें जीने के लिए पर्याप्त संसाधन ।
बदले में वह चाहती रही है सिर्फ देखभाल
ताकि वह विधवा की भांति न लगे बंजर
बल्कि सुहागन की तरह रहे हरी-भरी
पर, अफसोस जो किसान ,
इसे समझकर अपनी माता करता है इसकी सेवा
वो सदैव रह जाता है निर्धन,
एक समाजसेवी की तरह ।
पर, अब इस संसार में यह चर्चा है जोरों पर,
कि ,यह धरती अब हो जाएगी नष्ट
इसीलिए धरती माता के धनाढ्य संतान
अब घर बसाना चाह रहे हैं अपने जन्मभूमि से दूर
तलाशी जा रही है चांद और मंगल ग्रह पर जमीन
और वहीं संतान रहेंगे सिर्फ वसुधा के पास जो
हैं गरीब, लाचार और असहाय , ताकि,
हो सके उनका पोषण मां के द्वारा
इसमें नहीं होनी चाहिए किसी को हैरत
क्योंकि ,यह नजारा तो हम भी देखते हैं जीवन में
लेकिन,प्रश्न है एक मेरा कि जब होगा
इस सृष्टि का अंत तो क्या
सारे ग्रह,नक्षत्र रहेंगे जस के तस!
क्या नहीं होगा उनमें बदलाव ?
हमें समझना चाहिए कि इस सृष्टि के
क्षय होने के बाद फिर होगी शुरू
यही एक अबूझ दुनिया ।
क्योंकि, स्त्री करती आयी है सदैव से निर्माण।
2 – धर्म और स्त्री
धर्म और स्त्री को होना चाहिए
पर्याय एक-दूसरे का ।
साक्षी है घटनाएं कि अधिकांश
भीषण युद्ध के केंद्र में
या तो रही है स्त्री या फिर धर्म ।।
दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध
स्मारक-स्थल बने हुए हैं
धर्म और स्त्री के नाम पर ।।
धर्म और स्त्री से जुड़े मुद्दे होते हैं संवेदनशील
तभी तो,भड़क उठते हैं दंगे
उसी दंगे में मारे गए लोगों के खून से
लाल हो जाता है पैगम्बरों का हाथ ।
जलते हुए शरीर के धुऍं से काला हो जाता है
धार्मिक ठेकेदारों का चेहरा ।।
किसी के स्त्रीत्व के बिना,है हमारा पुरुषत्व नपुंसक ।।
जिस स्त्री को देनी चाहिए सदैव से प्राथमिकता
उसे बना दिया हमने संदेहास्पद ।
जिस धर्म को होना चाहिए कल्याणकारी
उसे बना दिया हमने विवादास्पद ।।
शिवम जी की अच्छी, समाजधर्मी कविताएँ। बधाई