होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रभा मिश्रा का एक मुक्तक और एक गीत ग़ज़ल एवं गीत डॉ. प्रभा मिश्रा का एक मुक्तक और एक गीत द्वारा डॉ. प्रभा मिश्रा - June 21, 2020 194 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet मुक्तक जिस साँझ कभी बारिश में पत्तों पर न हो ठहरा पानी शायद है शरारत मौसम की या फिर है हवा की नादानी। गीत अपना पानी बचाकर रखे है कँवल और गुलाबों को पानी की दरकार है जिसकी चाहत है जो ,वो उसे मिल रहा कौन किसके मुक़द्दर का हक़दार है। जो सहारा दिया तो नदी ही रही जो बहा ले गई एक मझधार है। ख़्वाब आये तो पलकों से हटते नहीं नींद आँखों में आने को बेज़ार है । खुश्बुओं से उसे क्या शिकायत रहे फूल जिसके लिए एक व्यापार है । आस्था को बदलती नई सोच है देव, जिसके लिए एक उपहार है। वो तुम्हारी अदब, या मेरी सभ्यता आ बचाकर चलें, विश्व बाजार है । संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं अनुराग ग़ैर की ग़ज़लें आशुतोष कुमार की ग़ज़ल डाॅ राजेश तिवारी ‘विरल’ का शृंगार-गीत 1 टिप्पणी सुंदर रचना जवाब दें Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
सुंदर रचना