हंसा दीप का उपन्यास ‘बंद मुट्ठी फ्लैश बैक शैली में व्यक्ति स्वातंत्र्य और परम्परा के टकराव से हुए भावनात्मक सुखों के अधूरेपन का आख्यान है। मम्मी-पापा और बड़ी बहन, राजी के अतिरिक्त लाड़ प्यार में बड़ी हुई तान्या अपने पिता के सपनों को साकार करने की अभिलाषा से उच्च शिक्षा के लिए टोरंटो जाती है। वहाँ जाने से पहले की तान्या का जीवन मम्मी-पापा और राजी दी के इर्द-गिर्द तक सीमित है। अपने हर काम के लिए राजी दी पर निर्भर रहने वाली तान्या को टोरंटो जाकर स्वतंत्रता का पहला अनुभव हुआ जब उसको अपने रहने खाने और पढ़ने की सारी व्यवस्था अपने आप करनी थी।
वहाँ भी शुरुआत में अपनी फ्लैटमेट में राजी दी का दिशा निर्देशन खोजने में सचेष्ट रहने वाली तान्या अपनी फ्लैटमेट्स के संरक्षण में नये देश के रीतिरिवाज़ से धीरे –धीरे अभ्यस्त हुई। पोलिश विद्यार्थी सैम से मिलने के बाद जैसे वह पूरी तरह से स्वतंत्र हो गई। सैम के साथ शादी करने के निर्णय को उसकी हर सफलता पर गौरवांवित अनुभव करने वाले परम्परावादी मम्मी-पापा और हर कदम पर ज़िंदगी जीने के पाठ सिखाने वाली बहन स्वीकार नहीं कर पाए।
डॉ. हंसा दीप
परम्परा और आधुनिक विचारों के बीच की खाई का मुद्दा अपने आप में जितना प्रासंगिक है उतना ही गंभीर भी। इस एक मुद्दे पर पूरा उपन्यास टिकाने के लिए जिस भावनात्मक ऊर्जा और गहराई की ज़रूरत थी उपन्यास उसको सम्हाल नहीं सका और अपने परिवार से पूरी तरह से काटी जाकर तान्या की मन:स्थिति का केवल एक सतही विवरण भर बन कर रह गया।
एक सीमा तक इसके लिए हंसा दीप की इतिवृत्तात्मक शैली और मुख्य प्रसंग के साथ-साथ अन्य सामाजिक समस्याओं को सरसरी दृष्टि से कहने का उतावलापन कहा जा सकता है। व्यक्ति स्वातंत्र्य के मुद्दे का ही एक आयाम तान्या के साथ फ्लैट शेयर करने वाली तीन लड़कियों के प्रसंग में मिलता है। अपने परिवार से दूर रहकर जस्सी, बीनू और शुचि अपने तरीके से जीते हुए एक स्वतंत्र भविष्य के सपने बुनती हैं।
जस्सी जीवन को भरपूर तरीके से जीना चाहती है। पर उसकी जिजीविषा और उन्मुक्त भविष्य के सपने चूरचूर हो गए। भारत में पिता की अचानक मृत्यु होने पर वह अपने सपनों की बलि देकर परिवार का दायित्व उठाने के लिए भारत लौट गई। बीनू और मलिंगा की प्रेम कहानी अधूरी रह गई क्योंकि बीनू ने अपने मन की बात मलिंगा के साथ कभी शेयर नहीं की। केवल शुचि की शादी माता पिता की अनुमति से धूमधाम से हुई। इन तीन प्रसंगों के अलग-अलग अंत एक ही उद्देश्य के अलग-अलग परिणाम परिस्थितिजन्य हैं। 
पीढ़ियों के द्वंद्व के साथ उपन्यास में आई वी एफ की मुश्किलें, विदेश जाकर अनाथालय से शिशु को गोद लेने और उसके बड़े होने पर उसको जन्म की वास्तविकता से अवगत कराने की जटिल समस्याओं को समेटा है। ये सारे के सारे प्रसंग आधुनिक जीवन के यथार्थ को चित्रित करते हैं।
तान्या और सैम एक साथ जुट कर सबका सामना करके उन्हें एक सकारात्मक परिणाम तक पहुँचाते हैं। तान्या के माता-पिता का अचानक हृदय परिवर्तन और उससे मिलने के लिए कनाडा आना, राजी और उसके पति का तान्या और सैम से मिलने आने के विवरण, रिया का अपने जन्म की वास्तविकता को सहजता से स्वीकारना आदि उपन्यास को हैप्पी एवेर आफ्टर की ओर तेज़ी से ले जाते हैं।
इनमें से हर एक समस्या जितनी जटिल है, उपन्यास में उसका समाधान उतनी ही सरलता से किया जाना उपन्यासकार की आशावादी दृष्टि को रेखांकित करता है। जैसे इन सबका समाधान बंद मुट्ठी में हैअंत तक पहुँचने पर  पाठक अचम्भित रह जाता है कि क्या ज़िंदगी सचमुच इतनी सरल हो सकती है! उपन्यास की भाषा में सहज प्रवाह उसे पठनीय बनाता है। इतिवृत्तत्मक शैली में किए गए घटनाओं और स्थितियों के विवरण के साथ पाठक स्वत: ही जुड़ता चला जाताहै। 
पुस्तक – बंद मुट्ठी (डॉ. हंसा दीप)
प्रकाशन – शिवना प्रकाशन 
ISBN: 978-93-87310-43-8
समीक्षक – डॉ अरुणा अजितसरिआ एम बी ई 
डॉ अरुणा अजितसरिया एम बी ई ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिन्दी में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान, स्वर्ण पदक, स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी उपन्यास पर शोध कार्य करके पी एच डी और फ़्रेंच भाषा में डिग्री प्राप्त की। 1971 से यूके में रह कर अध्यापन कार्य, शिक्षण कार्य के लिए महारानी एलिज़ाबेथ द्वारा एम बी ई, लंदन बरॉ औफ ब्रैंट, इन्डियन हाई कमीशन तथा प्रवासी संसार द्वारा सम्मानित की गई। ब्रूनेल विश्वविद्यालय के अंतर्गत पी जी सी ई का प्रशिक्षण और सम्प्रति केम्ब्रिज विश्वविद्यालय की अंतर्राष्ट्रीय शाखा में हिन्दी की मुख्य परीक्षक के रूप में कार्यरत। संपर्क : arunaajitsaria@yahoo.co.uk

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