‘पाताल लोक’ देखने के बाद मुझे जो समझ आया वो ये कि इसमें कुछ मटेरियल हिन्दू विरोधी नहीं है, बल्कि ये पूरी वेब सीरीज अपने नाम-पोस्टर और पहले संवाद से लेकर आखिर तक भारत और भारतीयता की भावना के खिलाफ है। पहले भी वेब सीरीजों में भारतीयता विरोधी सामग्री दिखती रही है, लेकिन इसबार सब सीमाओं को पार कर दिया गया है।

बीती 15 मई को अमेज़न प्राइम वीडियो पर एक वेब सीरीज रिलीज़ हुई। नाम है ‘पाताल लोक’। फिल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की कंपनी क्लीन स्टेट फिल्म्स ने इसका निर्माण किया है और जयदीप अहलावत, नीरज काबी, गुल पनाग जैसे नाम इसमें मुख्य भूमिका में हैं। 
मैंने जब इसका ट्रेलर देखा तो वो मुझे बहुत जँचा नहीं और मन ही मन यह तय कर लिया था कि इसमें समय खर्च नहीं करूंगा। लेकिन रिलीज के बाद जिस तरह सोशल मीडिया पर इसकी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की चर्चा दिखाई देने लगी तो मुझे लगा कि इसे एकबार देखा जाना चाहिए। ‘वर्ड ऑफ़ माउथ’ के आधार पर आखिर इस वेब सीरीज को देखने बैठ गया और नौ एपिसोड वाली इस फिजूल में लम्बी वेब सीरीज को ‘अब कुछ बेहतर आएगा… अब कुछ बेहतर आएगा’ की उम्मीद में अंत तक झेल गया। 
कई मित्रों ने मुझसे कहा था और सोशल मीडिया पर भी मैंने पढ़ा था कि इसमें काफी कुछ हिन्दू विरोधी मटेरियल है, लेकिन इस वेब सीरीज को देखने के बाद मुझे जो समझ आया वो ये कि इसमें कुछ मटेरियल हिन्दू विरोधी नहीं है, बल्कि ये पूरी वेब सीरीज अपने नाम-पोस्टर और पहले संवाद से लेकर आखिर तक भारतीयता और सनातन संस्कृति के खिलाफ है। पहले भी वेब सीरीजों में भारतीयता विरोधी सामग्री दिखती रही है, लेकिन इसबार सब सीमाओं को पार कर दिया गया है।  
मैं हिन्दू की बजाय यहाँ ‘भारतीयता’ की बात इसलिए कर रहा क्योंकि भारतीयता हमारी सम्पूर्ण और सनातन पहचान की प्रतीक है। ये वेब सीरीज उसी भारतीयता के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों, उपासना प्रतीकों और परम्पराओं का बेहद शातिराना ढंग से मखौल बनाती है। इतना ही नहीं, इसमें दल-विशेष के विरोध का एजेंडा भी बड़ी बारीकी और चतुराई से घुसा दिया गया है। इन सब बातों को हम एक-एक कर समझेंगे।
पोस्टर (साभार : ShethePeople)
पोस्टर
बात इसके पोस्टर से शुरू करते हैं, तो इसके पोस्टर पर एक सायानुमा आकृति बनी है जो कि देवी दुर्गा से मिलती-जुलती है। उस आकृति के दस हाथ हैं जिनमें अलग-अलग हथियार हैं। वेब सीरीज देखने के बाद आपको समझ आएगा कि उस आकृति में जो हाथ दिखाए गए हैं, वे सीरीज के अपराधी चरित्रों के हैं।
सवाल है कि उन अपराधियों को देवी दुर्गा की आकृति में प्रस्तुत करने के पीछे इस सीरीज के निर्माता-निर्देशक की कौन-सी कलात्मकता है? क्या उन्हें आभास नहीं कि उनकी तथाकथित कलात्मकता से देश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है।
नाम
‘ये जो दुनिया है न..ये एक नहीं तीन दुनिया है। सबसे ऊपर स्वर्ग लोक, जिसमें देवता रहते हैं। बीच में धरती लोक जिसमें आदमी रहते हैं और सबसे नीचे पाताल लोक जिसमें कीड़े रहते हैं। वैसे तो ये शास्त्रों में लिखा हुआ है, पर मैंने ह्वाट्स एप पर पढ़ा था।’ 
ये वो संवाद है जिसके जरिये यह वेब सीरीज शुरू होती है। यहाँ हम जरा भारतीय पौराणिक ग्रंथों, जहां से इन लोकों की अवधारणा उत्पन्न हुई है, को देखें तो उनमें पाताल लोक में राक्षसों के होने का वर्णन आता है। हमारे ग्रन्थ कहते हैं कि देवता धर्म के साथ थे, इसलिए वे स्वर्ग में रहते थे और राक्षस अधर्मी इसलिए उन्हें धरती से नीचे पाताल में रहने को जगह दी गयी थी ताकि उनके अधर्माचरण का प्रभाव धरती पर न पड़ सके। हालांकि  इसके पीछे राक्षसों के साथ कोई अन्याय की भावना नहीं थी, केवल धर्म रक्षा का विचार ही कारण था।  
सीरीज के एक दृश्य में पत्रकार संजीव मेहरा ट्विटर पर पाकिस्तान जाने की धमकी मिलने का जिक्र करते हैं तो वहीं उनकी कोई साथी फोन पर उन्हें गौरी लंकेश की हत्या का उदाहरण देते हुए सावधान रहने की हिदायत देती है। बताने की जरूरत नहीं कि ‘पाकिस्तान जाने की धमकी’ या ‘गौरी लंकेश की हत्या’ के लिए किन लोगों द्वारा किस दल व विचारधारा को निशाना बनाया जाता रहा है। ये वेब सीरीज भी वही एजेंडा लेकर चलती है।
‘पाताल लोक’ नामधारी यह सीरीज पाताल लोक के कीड़ों के प्रति संवेदना जगाने वाले प्रसंग रचकर भारतीय ग्रंथों की अवधारणा के विपरीत कहीं न कहीं प्रकारांतर से यह भी सिद्ध करने का प्रयत्न करती प्रतीत होती है कि स्वर्ग लोक के निवासी यानी कि देवता बुरे थे और पाताल लोक के वासी राक्षस उनसे बेहतर थे लेकिन देवताओं ने उनके साथ अन्याय किया था। सवाल है कि जो  लोक-विभाजन और उनके नायक, सनातन ग्रंथों के हिसाब से स्थापित हैं, उसमें ऐसी नुक्ताचीनी करने की आवश्यकता और उद्देश्य क्या है? क्या ये निर्माता-निर्देशक जन्नत, जमीन और जहन्नुम जैसे प्रतीकों के साथ भी ऐसी वेब सीरीज बना सकते हैं?
सनातन विरोधी एजेंडा
पोस्टर और नाम के बाद अब हम वेब सीरीज के भीतर प्रवेश करते हैं। इस वेब सीरीज के मुताबिक, पूजा-पाठ करने और भगवान् को मानने वाले लोग या तो मूर्ख होते हैं अथवा अपराधी। हाथीराम की पत्नी से लेकर थाने में पूजा करने वाले पुलिसकर्मियों तक को मूर्ख की तरह प्रस्तुत किया गया है।
हाथीराम की पत्नी अपने भाई के घटिया उत्पादों को बेचने में जुटी रहती है, तो वहीं पूजा करते दिखे पुलिसकर्मी अक्सर नासमझी वाली हरकतें करते दिखते हैं। दूसरी तरफ ग्वाला गुर्जर हो या उसके ठिकाने के गुंडे आदि सब भगवान को मानने वाले हैं और उनका ठिकाना  मंदिर है जहां का पुजारी गाली-गलौज करता है, मांस पकाता है और ग्वाला गुर्जर मंदिर में बैठकर मांस खाता है। 
संभव है कि इसमें से कुछ चीजें वास्तव में भी घटित होती हों, परन्तु जिस चीज के प्रदर्शन से किसीकी भावनाएं आहत हो सकती हों उसे इस तरह महिमामंडित करके दिखाने की आवश्यकता क्या है? क्या ऐसा ही दृश्य निर्माता-निर्देशक कुछ मुसलमान पात्रों के साथ किसी मस्जिद में रच सकते हैं? यकीनन नहीं। लेकिन मंदिर और भगवान् के साथ यह दृश्य रचा जा सकता है, क्योंकि हिन्दू समाज को ऐसी चीजों से फर्क नहीं पड़ता। 
इसके अलावा एक ब्राह्मण पात्र का जनेऊ चढ़ाकर व्यभिचार करना हो या कुतिया का नाम सावित्री रखना हो अथवा भगवान नृसिंह बने चरित्र को बुरी तरह से धकियाकर गिराया जाना, ये सब दृश्य भी केवल और केवल सनातन उपासना प्रतीकों का मखौल उड़ाने की मंशा से प्रेरित होकर बनाए गए प्रतीत होते हैं। ये चीजें यदि इस वेब सीरीज में नहीं होतीं तो भी इसकी मूल कहानी को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इन्हें बेमतलब ही रखा गया है जो कि इसके निर्माता-निर्देशकों की नीयत को उजागर करता है।
राजनीतिक एजेंडा
सनातन संस्कृति के साथ-साथ इस वेब सीरीज में एक ख़ास दल व विचारधारा को भी बड़े शातिराना ढंग से निशाना बनाया गया है। उस दल व विचारधारा का नाम लिखने में मुझे कोई समस्या नहीं, लेकिन वेब सीरीज ने नाम नहीं लेकर इशारों में बात की है तो मैं भी वही कर लेता हूँ। 
सबसे पहले इतना जानिये कि ये दल व विचारधारा दोनों उक्त सनातन संस्कृति के समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं तथा देश की एक आयातित विचारधारा वाले लोगों को बड़ा खटकते हैं। इसलिए जाहिर है कि इस सनातन विरोधी वेब सीरीज का इस दल-विचारधारा के विरोध में खड़ा होना स्वाभाविक ही है। 
जिस तरह वेब सीरीज में भारत और भारतीयता विरोधी सामग्री दिखाई जाने लगी है, उसे देखते हुए जरूरत महसूस होती है कि अब ओटीटी माध्यमों के नियमन के लिए कोई नियामक संस्था बनाई जाए या फिर इसे भी सेंसर बोर्ड के अंतर्गत लाया जाए। सरकार ऐसे संकेत दे भी रही है। देखते हैं कि कबतक इस तरह की कोई पहल होती है।
सीरीज के एक दृश्य में पत्रकार संजीव मेहरा ट्विटर पर पाकिस्तान जाने की धमकी मिलने का जिक्र करते हैं तो वहीं उनकी कोई साथी फोन पर उन्हें गौरी लंकेश की हत्या का उदाहरण देते हुए सावधान रहने की हिदायत देती है। बताने की जरूरत नहीं कि ‘पाकिस्तान जाने की धमकी’ या ‘गौरी लंकेश की हत्या’ के लिए किन लोगों द्वारा किस दल व विचारधारा को निशाना बनाया जाता रहा है। ये वेब सीरीज भी वही एजेंडा लेकर चलती है।  
इसके अलावा सीरीज में एक वाजपेयी नामधारी नेता भी हैं, जो न केवल धोती पहनते हैं बल्कि कुछ ठहर-ठहरकर बोलते भी हैं। वेब सीरीज में हमें पता चलता है कि इन वाजपेयी की पार्टी लम्बे समय से अपना राष्ट्रीय अस्तित्व बनाने में लगी हुई है। ये सब बातें किस नेता व पार्टी से मिलती हैं, ये समझना दूध-भात खाने से भी आसान है।
साभार : News18.com
अब तो इसमें इस्तेमाल एक तस्वीर योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम की पाई गयी है, जिसमें से उन्हें हटाकर उनकी जगह ‘वाजपेयी’ नामक नेता को रख दिया गया है लेकिन कई चेहरे वास्तविक रहने दिए गए हैं। अब इसके बाद इस वेब सीरीज के राजनीतिक एजेंडे के विषय में छुपाने और बताने को क्या रह जाता है?
वेब सीरीज की नजर में मुसलमान इस देश की सबसे मासूम और मजलूम कौम है जिसपर बहुसंख्यकों द्वारा न केवल अत्याचार किया जाता है बल्कि उसके प्रति घृणा व हेय दृष्टि भी रखी जाती है। ‘कबीर एम’ नामक पात्र का ‘ऑपरेशन प्रसंग’ हो या जय श्रीराम करती भीड़ द्वारा मुस्लिम युवक की लिंचिंग हो या अंसारी के आईएएस की मुख्य परीक्षा निकालने पर सीबीआई अधिकारी का कथन कि ‘इनकी कम्युनिटी से भी निकलने लगे हैं लोग..’ हो अथवा ट्रेन में मुस्लिम का पानी हिन्दू महिला द्वारा न लेना हो, ये सब घटनाएँ यही स्थापित करती हैं कि भारत में हिन्दुओं के कारण मुसलमानों के लिए हालात बहुत मुश्किल हैं।
जाहिर है, इनमें से कई बातें निराधार हैं तो कई के पीछे गहरे कारण हैं, लेकिन वेब सीरीज उन कारणों में नहीं जाती। वेब सीरीज मुसलमानों के प्रति हिन्दुओं का अविश्वास और संदेह तो दिखाती है, लेकिन इस अविश्वास और संदेह के लिए कहीं न कहीं कारण खुद मुसलमान भी हैं, यह दिखाना भूल जाती है। शायद ये सब दिखाना वेब सीरीज के एजेंडे को सूट नहीं करता इसलिए वो बस अपने मतलब की बात मनगढ़ंत ढंग से कहके निकल लेती है। 
सीबीआई द्वारा केस को आतंकी हमले की योजना के रूप में स्थापित करने का प्रसंग रचकर भी वेबसीरीज यही नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश करती है कि भारतीय समाज ही नहीं, व्यवस्था भी मुसलमानों के विरुद्ध है। वेब सीरीज यह भी स्थापित करती है कि मीडिया में पाकिस्तान विरोधी जो खबरें चलती हैं, वो सत्य से दूर केवल टीआरपी की भूख से उपजी होती हैं। देश की केन्द्रीय जांच एजेंसी व मीडिया की छवि को इस तरह धूमिल करने की इस कोशिश के पीछे का आधार क्या है, ये निर्माता-निर्देशकों को बताना चाहिए। 
कहानी बराबर सुन्ना
कहानी की बात अंत में इसलिए कि इस वेब सीरीज में कोई कहानी है ही नहीं। बस कुछ टुकड़े हैं, जिन्हें जोड़-जाड़कर भानुमति का कुनबा खड़ा कर लिया गया है। जिन रहस्यों को लेकर शुरू से अंत तक ये वेब सीरीज माहौल बनाने की कोशिश में रहती है, वो खुलते हैं तो दर्शक अपना सिर पीट लेता है और  यही सोचता रह जाता है कि आखिर ये वेब सीरीज कहना क्या चाहती है? 
बाकी अंत में इतना ही कहूँगा कि सावधान इंडिया या क्राइम पेट्रोल देखते हैं, तो वही देखिये क्योंकि वो इससे बहुत कम समय में इसके स्तर से अच्छी ही कहानी दिखा देते हैं। प्लस पॉइंट ये कि उन कहानियों में किसी तरह का कोई बड़ा एजेंडा भी नहीं होता। 
बहरहाल, जिस तरह वेब सीरीज में भारत और भारतीयता विरोधी सामग्री दिखाई जाने लगी है, उसे देखते हुए जरूरत महसूस होती है कि अब ओटीटी माध्यमों के नियमन के लिए कोई नियामक संस्था बनाई जाए या फिर इसे भी सेंसर बोर्ड के अंतर्गत लाया जाए। सरकार ऐसे संकेत दे भी रही है। देखते हैं कि कबतक इस तरह की कोई पहल होती है।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला स्थित ग्राम सजांव में जन्मे पीयूष कुमार दुबे हिंदी के युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। दैनिक जागरण, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, पाञ्चजन्य, योजना, नया ज्ञानोदय आदि देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक व साहित्यिक विषयों पर इनके पांच सौ से अधिक आलेख और पचास से अधिक पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। पुरवाई ई-पत्रिका से संपादक मंडल सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। सम्मान : हिंदी की अग्रणी वेबसाइट प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा 'अटल पत्रकारिता सम्मान' तथा भारतीय राष्ट्रीय साहित्य उत्थान समिति द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिए 'शंखनाद सम्मान' से सम्मानित। संप्रति - शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय। ईमेल एवं मोबाइल - sardarpiyush24@gmail.com एवं 8750960603

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.