फेसबुक की दुनिया एकदम ही निराली है यहाँ की हर बात खास है ..यहाँ किसी की म्रत्यु पर लिखे गए संस्मरण और तारीफें पढ़कर तो अच्छे भले इंसान का मन मरने का होने लगता है कभी कभी ख्याल आता है  यदि मरने से पहले ये सब बातें लिख दी जाती तो बन्दा ख़ुशी के मारे ही कुछ और जी सकता था | किसी की मृत्यु का समाचार आते ही उसके साथ के फोटो खोज खोज कर निकाले जाते हैं…
मरने वाला कोई प्रसिद्ध है तब तो हर कोई उनके करीब होने का जिक्र जैसे करता है उन्हें पढ़कर हम ऐसे भाव-विभोर हुए कि हमारे अन्दर मरने की इच्छा जन्म लेने लगी.. ऐसा लगने लगा कि जल्दी से मर जाएँ फिर देखें कि लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं ? पर दूसरे ही पल ख्याल आया कि हम मर गए तो पढ़ेंगे कैसे फेसबुक पोस्ट यमराज के यहाँ फेसबुक की सुविधा होगी इस पर हमें डाउट है ..

दिनरात बस यही दिमाग में आता काश मरने के बाद फेसबुक पोस्ट पढ़ने की छूट मिल जाए ..कभी सोचते हैं काश हमारे मरने के बाद हमारी आत्मा एक हफ्ते फेसबुक पर ही भटक लेती तो हम देख तो लेते लोग हमें सच में कितना प्यार करते हैं ? असली बात तो दोस्तों और फेसबुक के चाहने वालों की बात है ..
हम सारा समय इसी जुगत में लगे थे कि एकबार मरकर तो देखें ताकि देख सकें कौन कौन हमसे प्यार करता है. हमने अपनी ये इच्छा पतिदेव के सामने रखी और नाम दिया अंतिम इच्छा .. पहले तो वे नाराज हुए “दिमाग खराब है तुम्हारा.. कैसी बातें करती हो ? मौत जैसे विषय पर मजाक सूझ रहा है ये कोई गोलगप्पे हैं कि खाकर देखने है पानी कैसा है ?” हम मुहँ लटकाए सुनते रहे फिर धीरे से बोले “मरना तो सभी को है एक दिन ..बात करने में क्या गलत है ? हम देखना चाहते हैं कौन कौन हमारी तारीफ़ लिखेगा ? कौन कौन हमारे साथ फोटो डालेगा..” 
हमारी बात सुनते ही पतिदेव जोर जोर हँसने लगे और बोले “देखो मैडम मेरी तो मजबूरी है तुम्हारी तारीफ़ करना पर तुम्हारा एक भी कर्म ऐसा नहीं है जो कोई तुम्हारी तारीफ़ करेगा ..काम कर करके सिर्फ दुश्मन बनाये हैं तुमने ..ना तो लटके झटके दिखाए ..ना ही मक्खन की टिक्की का इस्तेमाल किया कभी ..बिना किसी के कंधे का सहारा लिए आगे बढ़ी हो ..तुम्हारे बारे में कौन अच्छा लिखेगा ? लोग तो खुश होंगे कि अच्छा हुआ मर गयी कमबख्त…!
बल्कि फेसबुक पर  पोस्ट कुछ इस प्रकार लिखेंगे 
-बड़ी ही मुहँ फट और लड़ाका थी ..परों पर पानी नहीं पड़ने देती थी ..नकचढ़ी कहीं की 
– कमबख्त मुहँ पर सच बोल देती थी इसलिए डर लगता था उससे चलो मुक्त हुए |
-हमेशा मुस्कुराती रहती थी …खुश रहती थी पर किसी के सामने झुकती नहीं थी ..अक्खड़ कहीं की 
-पुरस्कार और मंच के लालच के दाने को भी नहीं चुगा कभी ..
उनकी तो मै कल्पना तक नहीं कर पा रहा जिनकी तुमने कुटाई की है या बैंड बजाई है ..और फोटो वो भी इस मुटल्ली और झगड़ालू का कोई सोचेगा भी नहीं ..कैंसिल करो मरना और जाओ कुछ बढिया सा खाने को बनाओ ताकि ऐसे फ़ालतू विचार बाहर निकल जाएँ दिमाग से …
पतिदेव तो हँसते जा रहे थे और हम मुहँ बाए उन्हें देख रहे थे हमारी अंतिम इच्छा की अंतिम यात्रा जो निकल रही थी …

1 टिप्पणी

  1. मतलब मृत्यु लेख पर भी हास्य पैदा किया जा सकता है..चण्डी भाई सही कहते हैं कि व्यंग्य लिखना हो तो अर्चsना जी को पढ़ो

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