समर्थ जी बहुत खुश हैं। पिछले बीस सालों से विदेश में रहकर हिन्दी की सेवा कर रहे हैं परन्तु इन दिनों उनकी सेवा लोगों को दिखाई दे रही है। फेसबुक पर उनके पूरे पाँच हजार फ्रेंड्स हैं। पहले तो भारत जाकर रिश्तेदारों से मिल-मिला कर आ जाते थे। इन दिनों भारत यात्रा की बात ही कुछ और है, फेसबुक के मित्र उनके लिये सम्मान समारोह रखते हैं। अब हर साल की एक भारत यात्रा पक्की कर ली है जिसमें कम से कम पच्चीस सम्मान समारोह न हो तो जाने का आनंद ही क्या। भारत से जब लौटते हैं तो अगली यात्रा के इंतज़ार में कई फूल मालाओं का वजन गर्दन पर महसूस होता रहता है। यहाँ की ठंड में मफलर पहनते हैं तो लगता है यह मफलर नहीं वे ही फूल हैं जो उन्हें इस ठंड में गर्मी दे रहे हैं।  

इस बार उन्हीं मित्रों में से एक मित्र अनादि बाबू विदेश की सैर पर आए। अनादि जी की दिली इच्छा थी कि जैसा सम्मान उन्होंने अपने मित्र समर्थ जी का भारत में किया वैसा ही शानदार कार्यक्रम अनादि बाबू के लिये यहाँ किया जाए। बस यहीं आकर समर्थ जी फँस गए क्योंकि वे जानते थे कि उनके अपने शहर में उनकी कितनी इज्जत है, उन्हें कोई घास तक नहीं डालता। अब वे फूलों के हार उन्हें गले में लिपटे साँप की तरह भयानक लग रहे थे व फूँफकारते हुए वही साँप उन्हें बिल में घुसने के लिये मजबूर कर रहा था। 

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