छोटा बेटा कर्तव्य अपनी बयासी साल की वृद्ध मां की सेवा को ही अपना धर्म समझता था। ‘मातृदेवो भव:’ यही उसका जीवन मंत्र था।
बड़ा बेटा भाविक अपने परिवार समेत पास की सोसाइटी में ही रहता था। मां हर रोज़ अपने बेटे-बहू और बच्चों को याद किया करती। आखिर मां जो है! लेकिन उनके चेहरों को देखना मां के नसीब में……..।
आज़ भाविक चार-धाम की यात्रा करके मां से मिलने आया है। मां- “बेटे, हर रोज़ तुम्हें, बहू और बच्चों को याद किया करती हूं। आज लगभग दो महीने बाद तुम्हारा चेहरा देखने को मिला। अब मेरे शरीर का कोई भरोसा नहीं।”
इतना बोलकर मां गहरी नींद में सो गई और खर्राटे लेने लगी।
भाविक- “कर्तव्य, आज़ ब्रह्म-भोजन है। क्या तुम्हारे यहां न्योता आया है? जमींदार बादल सिंह आज़ अपने पितरों के पीछे ब्रह्म-भोजन करवा रहे हैं। हमारी पूरी ब्राह्मण बिरादरी को न्योता दिया है।”
कर्तव्य- “हां, कल एक लड़का निमंत्रण पत्र दे गया है।”
भाविक- “मां के जाने के बाद हमें भी पूरी ब्राह्मण बिरादरी को भोजन करवाना होगा। हम पांच भाई हैं। ख़ूब कमाते हैं। लोग कहेंगे कि पांचों लड़के इतना कमाते हैं, फ़िर भी मां के पीछे ब्रह्म-भोजन नहीं करवाया। लोग बातें करेंगे।”
कर्तव्य मन ही मन- “मा के जीते जी उनके पीछे ब्रह्म- भोजन करवाने की बात कहां तक उचित है? भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि मां सौ वर्ष की आयु पूरी करें और बड़ी धूमधाम से उनका जन्म शताब्दी महोत्सव मनाऊं।”
भाविक- “कर्तव्य किस सोच में पड़ गए?”
बड़े भाई भाविक की मां के प्रति भावशून्यता और संवेदनहीनता को देखकर कर्तव्य को बड़ा आघात पहुंचा। अपने आंसुओं को रोक लिया और इतना ही बोल पाया- “भैया, मां अभी जिंदा है।”
कई बार लोग कर्म कांडों में इतने मशगूल हो जाते हैं कि संवेदनशीलता ही छोड़ देते हैं।