योगेन्द्र को अपने मित्र कमलकांत की पत्नी के देहांत की खबर मिली तो उसने तुरंत कपड़े बदले और उसके घर की ओर चल दिया ।
शमशान घाट से लौटा तो वह कुछ ज्यादा ही परेशान था । कमलकांत की पत्नी का जाना योगेन्द्र को उसके अपने अतीत में छोड़ गया था । आज उसकी अंतरात्मा उसे रह रहकर कचोट रही थी । उसे अपनी पत्नी और उसके प्रति अपनी कठोरता सभी कुछ तो आँखों के सामने कुछ इस तरह से घूमते हुए लग रहे थे कि वह अंदर तक हिल गया।
उसे दिख रहा था कि उसकी अपनी पत्नी उसकी ही आँखों के सामने जल रही है, चीख रही है लेकिन वह उसे बचाने की कोशिश तक नहीं कर रहा है । उसके मन पर उसका आक्रोश इस तरह से हावी है कि वह उसे पूरी की पूरी जलते हुए देखना चाहता है लेकिन तभी अचानक उसे एक झटका सा लगता है और वह उस पर कंबल डाल देता है । वह उस अधजली सी बेहोश पत्नी को लेकर अस्पताल की ओर जाता है । इधर उधर की कहानी गढ़ता है, बचाने के लिए मिन्नतें करता है और भर्ती कराने में सफल हो जाता है पर सुरेखा बच नहीं पाती । वह जैसे तैसे मामले को रफा दफा करवाता है और वो सारी हकीकत जिसे केवल वह जानता है, वहीं की वहीं दफन हो जाती है ।
पर अंतरात्मा कहाँ पीछा छोड़ती है । ऐसा वीभत्स अतीत आज के जैसे अवसरों पर ही तो ज्यादा चोट देता है । आज वह टूट रहा था । उसके अंदर आत्मग्लानि चरम सीमा पर थी । उसका मन मोम की तरह पिघल रहा था । उसका दुष्कर्म उसे धिक्कार रहा था । तुमने सुरेखा के साथ ऐसा क्यों किया योगेन्द्र ? उसको बचाने की कोशिश तुमने दिल से क्यों नहीं की ? इत्यादि इत्यादि ।
वह वहीं बैठे बैठे फफक फफक कर रो पड़ा।