चिट्ठी न कोई संदेश, ई-मेल, मैसेज – इंटरनेट ही  चले स्वदेश हो या विदेश
21 वीं सदी की ऐसी शब्दावली है जिससे इंटरनेट तकनीक लिखावट फोटो और आवाज के समन्वय का बोध होता है उसे सोशल मीडिया कहते है । इंटरनेट आधारिक तकनीकों का एक सामूहिक स्वरूप है जो लोगों को ऑनलाइन इंटरैक्टिव अभिव्यक्ति और आपसी संवाद के लिए स्पेस मुहैया कराता है । सोशल मीडिया मूलतः कम्प्यूटर और मोबाइल जैसे सूचना उपकरणों से जुड़ा ऐसा नेटवर्क है जहां उपभोक्ताओं का एक आभासी समुदाय मौजूद होता है और यह लेख फोटो वीडियो आदि किसी भी रूप में किसी भी तरह की सूचना को आपस में बांट सकता है । सोशल मीडिया सामाजिक अन्तर्संवाद का एक ऐसा माध्यम है जो अब तक मौजूद सभी माध्यमों की सीमाओं को ध्वस्त करता है । यह सूचनाओं के लेनदेन का एक इंटरैक्टिव माध्यम है । इन सभी माध्यमों का सहारा लेकर लोग ज्ञान सूचना और मनोरंजन को सीमाओं के पार जाकर प्राप्त कर रहे हैं । सोशल मीडिया की अपनी कुछ सामूहिक मगर स्वच्छन्द किस्म की विशेषताएं हैं जो इसे व्यवसायिक मीडिया से अलग कतार में खड़ा करती हैं । सोशल मीडिया पर सक्रिय किसी भी व्यक्ति को किसी सूचना के लिए पैसे भी अपेक्षाकृत कम खर्च करना होता है । सोशल मीडिया की पहुंच भूमंडलीय है । इंटरनेट की सुलभता के चलते  अब अमेरिका यूरोप के अलावा भारत जैसे विकासशील देशों में भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल अत्यंत तेजी से बढ़ रहा है । इंटरनेट और सोशल मीडिया के उपयोग की इस तीव्रता ने पूरा सामाजिक ढांचा ही बदलकर रख दिया है ।
भारत दुनिया में इंटरनेट यूजर्स की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर है । चीन 60 करोड से अधिक इंटरनेट यूजर्स के साथ पहले स्थान पर वहीं अमेरिका 27.9 करोड यूजर्स की अनुमानित संख्या के साथ दूसरे स्थान पर है । दुनिया भर में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या फिलहाल तीन अरब से अधिक है । यानी दुनिया की कुल आबादी की 40 प्रतिशत जनसंख्या इंटरनेट का इस्तेमाल करती है ।
एक जमाने में रोटी, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरत हुआ करती थी । इन आवश्यकताओं में कंप्यूटर , मोबाइल और इंटरनेट भी शामिल है । यह तीनों इलेक्ट्रॉनिक उपकरण व सेवाएं मनुष्य के यथार्थ और काल्पनिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है । पिछले दो दशकों से इंटरनेट ने हमारी जीवनशैली को बदलकर रख दिया है । हमारी जरूरतें कार्यप्रणालियां अभिरूचियां और यहां तक कि हमारे सामाजिक संबंधों का सूत्रधार भी किसी हद तक कंप्यूटर ही है । सोशियल नेटवर्किंग या सामाजिक संबंधों के ताने – बाने को रचने में कंप्यूटर की भूमिका आज किस हद तक है इसे इस बात से जाना जा सकता है कि आप घर बैठे दुनिया भर के अनजान और अपरिचित लोगो से संपर्क कर रहे है । 
‘’कैलिफोर्निया विश्वविधालय के प्रोफेसर मैन्यअल कैस्ट्ल के अनुसार सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों फेसबुक, ट्विटर आदि के जरिए जो संवाद करते हैं वह मास कम्युनिकेशन न होकर मास सेल्फ कम्युनिकेशन है । मतलब हम जनसंचार तो करते है लेकिन जन स्व संचार करते हैं और हमें पता ही नही होता कि हम किससे संचार कर रहे है । ‘’ 
सोशल मीडिया को सामाजिक मीडिया या समाज से जोड़ने वाली मीडिया या समाज के साथ चलने वाली मीडिया भी कह सकते है । अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित कल्पित समूहों को संदर्भित करते हुए व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी व संपर्क बनाने का माध्यम है। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे इंटरनेट के माध्यम से पहुंच बना सकते हैं। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है, जो कि सारे संसार को जोड़े रखता है। यह संचार का एक बहुत अच्छा माध्यम है। देश में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 14.3 करोड़ रही, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की संख्या पिछले एक साल में 100 प्रतिशत तक बढ़कर ढाई करोड़ पहुंच गई जबकि शहरी इलाकों में यह संख्या 35 प्रतिशत बढ़कर 11.8 करोड़ रही। यह द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान करने, जिसमें हर क्षेत्र की खबरें होती हैं, को समाहित किए होता है। सोशल मीडिया पर लॉगइन करते है अपने पराये और पराये अपने हो जाते है । 
‘स्वतंत्र’ और ‘स्वच्छंद’ दोनों का अर्थ समान समझ लिया जाता है, पर ऐसा है नहीं । प्राय: ‘स्वतंत्र’ को लोग ‘स्वच्छंद’ समझ लेने की भूल कर बैठते हैं, परंतु इनमें जमीन-आसमान का अंतर है। ‘स्व’ दोनों में प्रबल है, आजादी दोनों में है, लेकिन स्वतंत्र’ में एक तंत्र विद्यमान है जो स्वच्छंद नहीं होने देता अर्थात एक सिक्के के दो पहलू है ।
सोशियल मीडिया समाज के हर वरग पर गहरा प्रभाव पड़ा है । इसके उपयोग के आधार पर प्रभाव सकारात्मक भी है तो नकारात्मक भी है । कोई सामान्य सी बात कभी ज्वालामुखी बन जाए कहा नहीं जा सकता जिसमें इसे यूजर्स आहुती देती नजर आते है । इंटरनेट की प्रगति के साथ सोशियल मीडिया का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है । मोबाइल पर उपलब्ध इंटरनेट और डेटा की वजह से तो युवावर्ग लगभग हर समय सोशियल मीडिया पर व्यस्त देखा जाता है । सोशियल मीडिया के विभिन्न माध्यमों ने व्यक्तियों को उनकी आंतरिक ऊर्जा और विचारों की अभिव्यक्ति को सामाजिक मंच देने तथा इन माध्यमों पर अपनी उपस्थिति पर मुहर लगाने के अधिकारों के उपयोग को एक विस्तृत पटल प्रदान किया है । स्वतंत्र में ‘तंत्र’ यानी नियम, प्रबंध युक्त व्यवस्था। अंग्रेज़ी में कहें तो सिस्टम। स्पष्ट है ‘स्वतंत्रता’ में स्वेच्छाचारिता नहीं है, मनमानापन नहीं है। स्वच्छंद स्वतंत्रता का सुख दूसरों का ख्याल करके चलने में है, जबकि ‘स्वच्छंदता’ अनुशासन की बाड़ तोड़कर चलती है। ‘स्वच्छंदता’ नियंत्रणहीन व्यवहार है, अराजकता का कारण बन सकती है और जिससे विषमता भी व्याप्त हो सकती है । स्वतंत्रता शब्द में जो तंत्र शब्द है उसका मतलब होता है शासन जबकि स्वछंदता शब्द में जो छंद शब्द है उसका मतलब है इच्छा । अर्थात स्वतंत्रता का मतलब हुआ तंत्र के अनुसार कार्य करना जबकि स्वच्छदंता का अर्थ हुआ अपनी इच्छानुसार कार्य करना । अब उदाहरण से समझिये की कोई व्यक्ति चाय या दूध बेचता है वह उसकी स्वन्त्रता है क्योंकि वह तंत्र अर्थात शासन के अनुकूल है लेकिन यदि कोई शराब या तंबाकू बेचता है तो वह उसकी छंद के अनुकूल है न कि तंत्र के ..।
परिस्थिति विशेष के अनुसार स्वतंत्रता की परिभाषा में बदलाव होता रहता जो हमारे समक्ष सकारात्मक स्वतंत्रता और नकारात्मक स्वतंत्रता के रूप में प्रस्तुत होती है ।
तुलसीदास जी कहते हैं –
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा।।
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि पछिताइ।
 
स्वतंत्रता का अर्थ उच्छ्रंखलता नहीं है । शहीदों ने खून की होली खेलकर आप लोगों को इसलिए आजादी दिलायी है कि आप बिना किसी कष्ट के अपना, समाज का तथा देश का कल्याण कर सके स्वतंत्रता का सदुपयोग करो तभी तुम तथा तुम्हारा देश स्वतंत्र रह पायेगा, अन्यथा मन – मुखता के कारण अपने ओज-तेज नष्ट करने वालों को कोई भी अपना गुलाम बना सका है ।
सोशियल साइट पर तत्काल प्रतिक्रिया और प्रशंसा दिलाकर मनुष्य के इस मनोविज्ञान की पूर्ति करता है । आज की सभ्यता और संस्कृति का वर्गीकरण काल्पनिक (वर्चुअल ) और भौतिक (फिजिकल) सभ्यता के रूप में किया जा सकता है । सोशियल मीडिया इसी वर्चुअल सिविलाइजेशन (आभासी सभ्यता ) का एक उपक्रम है । सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतरजाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है । यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है । इसका उपयोग सामजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौधोगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है ।
स्वतंत्रता किसी भी तरह के निरपेक्ष स्वच्छंदता का पर्याय नहीं हो सकती है। यदि ऐसा होता तो वह आत्महंता कहलायेगा, जैसा कि अनेको देशों में हुआ है कि वहां पर प्रजातंत्र आया जरुर लेकिन वह अधिक दिनों तक ठहर नहीं सका। सही अर्थो में स्वतंत्रता मिलने के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति के साथ दायित्व एवं कर्तव्य जुड़ जाते हैं। आत्मनियंत्रण एवं लगातार चौकसी के अभाव में स्वतंत्रता की परिकल्पना अधूरी रह जाती है। सोशल मीडिया के माध्यम से विपणन का एक अंतिम लाभ यह है कि अनुसंधान सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को युवा, बेहतर शिक्षित और सामाजिक मीडिया का उपयोग नहीं करने वाले लोगों की तुलना में अधिक धनी होने का संकेत देता है। यह महान क्रय शक्ति का अनुवाद करता है। यदि हम वर्तमान समय में भाषा, व्यवहार और वैचारिक दायरे मे रह कर सोचे तो स्वतंत्रता, स्वाधीनता आज लगभग बाहर ढकेल दी गई है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि स्वायत्ताता, आत्मगौरव और आत्मबोध की जगह हम अंग्रेजी राज के मात्र उत्ताराधिकारी बनकर रह गए हैं। वैश्वीकरण के दबाव में हम यह मान बैठे हैं कि पश्चिमी सभ्यता अकाट्य एवं अपरिवर्तनीय भविष्य है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय यानी चोरी न करना, अपरिग्रह यानी आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना, शुचिता, इंद्रियनिग्रह, धैर्य और क्षमा जैसे गुणों को धर्म के प्राणिमात्र के लिए उपयुक्त या ठीक तरह से व्यवहार के अंतर्गत इसे शामिल कर मनुष्य को एक बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है। यह माना कि देश में शिक्षा और चेतना के मौजूदा स्तर को देखते हुए स्वतंत्रता को स्वच्छंदता में तब्दील होने की

एक ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से इस विषय को स्पष्ट करना चाहूंगा । विभीषण रावण के राज्य में रहने वाला एक ऐसा व्यक्ति था जिसके सहयोग के बिना श्रीराम को सीता नहीं मिलतीं, जिनके सहयोग के बिना लक्ष्मण जीवित नहीं बचते, जिसके सहयोग के बिना रावण के राज्य की गोपनीय बातें हनुमान – श्रीराम को पता नहीं लगतीं। एक लाइन में कहें तो ‘श्रीराम का आदर्श भक्त’… इतना कुछ होते हुए भी आज उस घटना के हजारों सालों के बाद भी किसी पिता ने अपने बेटे का नाम ‘विभीषण’ नहीं रखा । जानते हैं क्यों?
क्योंकि इस संस्कृति में आप राम भक्ति करें या ना करें कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर राष्ट्रभक्ति नहीं की तो कभी माफ नहीं किए जाएंगे।
सोशल मीडिया को मुख्य रूप से दो Broad Categories  में बांट सकते है
आंतरिक सोशल मीडिया – आईएसएन मुख्य रूप से closed और private community होती है जहां की छोटे मात्रा या कम मात्रा में लोग जुड़े रहते हैं, ये उन्ही लोगों के बीच में एक community के तरह होती है । यहां इस नेटवर्क में जुड़ने के लिए invitation की जरूरत पड़ती है  और  केवल invitation मिलने पर ही आप इनमें जुड़ सकते है  । उदाहरण के तौर पर कोई Education group, Photography group या Hacking Community या कोई Secret Forum.
बाहरी सोशल मीडियावहीं ईएसएन मुख्य रूप से Open और Public Community होती है जहां के बड़ी मात्रा या बड़े धारण में लोग जुड़े रहते हैं, ये भी इन्ही लोगों के बीच एक Community के तरह होती है । यहां इस नेटवर्क में कोई भी जुड़ सकते हैं जो की इससे जुड़ना चाहते है। ये मुख्य रूप से advertisers को अपनी और attract करती है चूंकि यहां ज्यादा traffic मौजूद रहती है । Users यहां  पर अपना picture add कर सकते है और दूसरे लोगों के साथ friends भी बन सकते है । उदाहरण के तौर फेसबुक, ट्वीटर,  इंसाग्राम, माईस्पेस, आश्क  इत्यादि
आज के समय में अगर आप अपने कुशलता को प्रदर्शित करना कहते है यानि की दुनिया के सामने लाना चाहते है तो ऐसे में सोशल मीडिया एक बहुत ही महत्वपूर्ण और मददगार मंच है । 
सोशल मीडिया के कुछ प्रकार(type) निम्नलिखित है ।
  1. सोशल नेटवर्क (फेसबुक ,ट्विटर और लिंकेदीन इत्यादि)
  2. मीडिया शेयरिंग नेटवर्क्स 
  3. बुकमार्किंग साइट्स (फ्लिप्बोअर्ड,)
  4. सोशल साइट्स
  5. मिक्रोब्लोग्गिंग
  6. फ़ोरम्स (reddit, कुओरा, digg)
  7. ब्लॉग्गिंग एंड पब्लिशिंग नेटवर्क (वर्डप्रेस, मीडियम, ब्लागस्पाट और tumblr)
 ‘’ सोशल मीडिया में रेडियों, टी.वी इंटरनेट आते हैं । रेडियो को 73 साल से अधिक हो चुके हैं । टीवी चैनल का प्रभुत्व तीसरे दशक में है । लेकिन इन सब को पीछे छोड़ते हुए सोशियल मीडिया ने अपने चार साल के अल्प समय में 60 गुना अधिक रास्ता तय कर लिया है, जितना अभी तक किसी मीडिया साधन ने तय नहीं किया ।‘’चायदुकान.ब्लॉगस्पॉट.इन में अभिषेख पाटनी की वॉल से 
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में जनवरी 2017 में तमिलों के परम्परागत खेल जल्लीकट्टू के समर्थन में जो आयोजन हुआ वह सोशियल मीडिया की ही देन थी जो बेहद असरकारक साबित हुई ।
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं । हर विषय का श्वेत पक्ष होता है तो स्याह पक्ष भी होता है । यदि सोशियल मीडिया का उपयोग गलत हो तो यह समाज में हाहाकार भी मचा सकता है । संवेदनशील विषयों पर सोशियल मीडिया पर दी जाने वाली प्रतिक्रियाएं मारक और घातक साबित होती है । सोशियल मीडिया की यह दुनिया ऐसे कई उद्दरणों से भरी पड़ी है । कई बार सोशियल मीडिया पर डाली गई सामग्री अप्रियता की स्थिति खड़ी कर देती है । 2013 में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुए दंगे को इसी प्ररिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है । कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद को लेकर आगजनी हिंसा व तोड़फोड़ की घटनाओं की बुनियाद भी सोशियल मीडिया  के पोस्ट बने । लेखक संजय द्विवेदी जी अपनी पुस्तक सोशल नेटवर्किंग – नए समय का संवाद में कहते हैं कि सोशियल मीडिया नेटवर्किंग आज हमारे जीने में सहायक बन गई है । 
यह सच है कि समाज की आवाज इस माध्यम से हर स्तर तक जा रही है लेकिन इसका दूसरा रूप यह भी है कि इस माध्यम ने भारत जैसे सामाजिक समरसता वाले देश में कहीं न कहीं जहर घोलने का काम भी किया है। देश की अधिकांश जनता धर्म, समाज और रीति रिवाज सहित पूर्वाधारणा से जकडी है जिसमें कुछ होशियार और चालाक लोग इस माध्यम से आमजन की भावनाओं को भडकाने का काम करते हैं और अपनी राय थोपने के लिए संगठित कार्ययोजना पर भी काम करते हैं। भारत जैसे स्वच्छंद देश में ये अल्हडता और फकीरी कब साम्प्रदायिक तनाव, जातीय हिंसा या वैचारिक अनर्गल संवाद का रूप ले लेगी इसकी चिंता किसी को नहीं है। यह भी सच है कि सोशल मीडिया ने समाज के संवाद को बढाया है और काफी मुष्किलों का सामना करना भी सिखाया है। समय के हिसाब से इस व्यवस्था पर कानून भी बने हैं और सरकारें ऐसे गलत उपयोग पर नजर भी रख रही है लेकिन वर्तमान में यह प्रयास ऊॅंट के मुंह में जीरे जैसा ही प्रतीत हो रहा है। यहां यह कहना उचित होगा कि कौन सा साधन किस रूप में और कैसे प्रयोग लेना है यह उस साधन का उपयोग करने वाले पर ज्यादा निर्भर करता है। आज आवश्यक है कि मीडिया समाज, राष्ट्र और मानवीयता के प्रति अपनी जिम्मेदारी स्वयं सुनिश्चित करें। आज आवश्यक है कि मीडिया समाज को स्वतंत्रता और स्वछंदता के बीच के अंतर के विषय में जानकारी दें
आरंभ में न्यू मीडिया (सोशियल मीडिया) का उद्धेश्य एक दूसरे को जोड़ना और संचार माध्यमों को मजबूत बनाना था लेकिन इसने सामाजिक संबंधों को भी गंभीर हद तक प्रभावित किया है । अब सोशियल नेटवर्किंग अधिकांश लोगों के जीवन का इस कदर हिस्सा बन चुकी है कि वे चौबीसों घण्टे ऑनलाइन रहते हैं । सुबह उठते ही अब वे भगवान अथवा धरती मां को नमन नहीं करते । पहले सिरहाने मोबाइल को टटोलते हैं । यहीं देखते हैं कि कितने नोटिफिकेशन आए हैं ।सोशल मीडिया एक काम और कर रहा है कि इससे तमाम गुमनाम लोगों भी एक स्पेस मिल रहा है । जहां वे अपनी बात कह सकते हैं । कई बार संयोगवश ये लोग शोहरत भी बटोर रहे है । जैसे इलाहाबाद के गोविन्द तिवारी को सबसे बुरे डिजाइन एनीमेशन ब्लॉग के लिए खूब चर्चा मिली । रातों – रात वे सेलिब्रिटी बन गये अमेरिका की युवा गायिका रेबेका ब्लैक का फ्राइडे गीत विवादों में आया और कुछ ही दिन में उसे यू-ट्यूब पर तेरह करोड़ लोगों ने देख डाला । ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया का सिर्फ सकारात्मक इस्तेमाल ही होता है । अगस्त 2011 में ब्रिटेन में दंगे फैले , जिसे सोशल मीडिया के जरिये खूब हवा  दी गयी । सोशल मीडिया  ने एक नयी टेक्नो संस्कृति  को जन्म दिया है । इसे परंपरागत प्रतिमानों को ध्वस्त कर दिया है । एक आभासी दुनिया जो जमीनी  दुनिया को प्रभावित कर रही है । मिस्त्र, ट्यूनीशिया सहित पूर अरभ जगत इस आभासी  दुनिया की ताकत का मजा ले चुका है ।
सोशल मीडिया की वर्तमान स्थिति के संदर्भ में एक दिलचस्प उदाहरण याद आता है। अल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया था, इस उद्देश्य के साथ कि यह धरती पर विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। वह खदानें खोदने, पत्थर तोड़ने और खंडहरों को गिराने के काम आएगा। वह पहाड़ों को तोड़कर रास्ते बनाने में मदद करेगा। नोबेल का यह भी मानना था कि  डायनामाइट की मौजूदगी युद्धों को टालने का कार्य करेगी। सरकारें एक-दूसरे के खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने से बचेंगी। डायनामाइट ने इन कार्यों में मदद की भी, लेकिन मानवता के लाभार्थ उसका जितना उपयोग हुआ, उतना ही दुरुपयोग भी मानवता के विध्वंस के लिए ही हुआ। एल्फ्रेड नोबेल, जिन्होंने बाद में संभवतः इस घातक आविष्कार से हुए नुकसान की ग्लानि को मिटाने के उद्देश्य से शांति का नोबेल पुरस्कार शुरू किया, बाद में पछताए थे कि उन्होंने यह आविष्कार क्यों कर दिया। 
एके 47 राइफल का विकास करने वाले मिखाइल कालाश्निकोव भी इसी तरह पछताए थे। आप जानते हैं कि आज पुलिस और सेनाओं के साथ-साथ दुर्दांत अपराधी और आतंकवादी भी इसी राइफल का इस्तेमाल करते हैं।
दुर्भाग्य से इन तकनीकों की ही तरह सोशल मीडिया भी दोधारी तलवार की तरह देखा जा रहा है। हालाँकि ऐसी घटनाओं के लिए वास्तविक रूप से जिम्मेदार हमारी मानसिकता है लेकिन सोशल मीडिया उस वाहन का कार्य करता है जिस पर सवार होकर यह मानसिकता एक से दस, दस से सौ और सौ से हजार लोगों को साथ जुटा लेती है। वह उसी तरह का माध्यम है जैसे कि एक टेलीफोन। आप इसका प्रयोग किसी को इंटरव्यू में सफल होने की खबर सुनाने के लिए भी कर सकते हैं और किसी के बारे में अफवाह फैलाने के लिए भी। वह एक माध्यम भर है।
लेकिन यह भी सच है कि इस माध्यम के भीतर ऐसा कोई तंत्र या प्रणाली अंतरनिहित नहीं है जो उसे अनुशासन या शालीनता के दायरे में बांधे रख सके। 
सोशल मीडिया के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों को विकास के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है । 
शिक्षा
सोशल मीडिया का अगर उपयोग करना चाहे तो ये विद्यार्थी के लिए काफी मददगार है। विद्यार्थी अपने घर से ही सोशल मीडिया के माध्यम से प्रोफेशनल और एक्सपर्ट्स से पढाई कर सकते है। 
सूचना और अद्यतन
सोशल मीडिया के माध्यम से लोग को आसानी से आस – पास होने वाली बात और घटनाओ की सूचना मिल जाता है। 
प्रचार 
अगर आप कोई काम करते है तो ऐसे में आप अपने काम का प्रचार सोशल मीडिया के माध्यम से आसानी से कर सकते है । आप पैसे दे के भी फेसबुक या ट्विटर जैसी साईट पर प्रचार कर सकते है। ये सुविधा लगभग सभी सोशल मीडिया साईट देती है।
जागरूकता
सोशल मीडिया का उपयोग कर लोगो की जिंदगी में आसानी से जागरूकता लाया जा सकता है। जिसका जीता जागता उदाहरण  स्वाच भारत अभियान ।
व्यापार प्रतिष्ठा में सुधार
सोशल मीडिया के माधय्म से व्यापर प्रतिष्ठा में अपार सुधार लाया जा सकता है ।
वेबसाइट ट्रैफिक
सोशल मीडिया वेबसाइट या ब्लॉग पर ट्रैफिक लेन में भी उपयोग किया जाता है । 
सोशल मीडिया से नुकसान
साइबर-धमकी
सोशल मीडिया का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि थोड़ा नाम मिलता है तो धमकिया भी मिलने लगती है । 
धोखाधड़ी और घोटाला
सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत सारी ऐसे कंपनिया है या फिर लोग है जो काफी लोगो के साथ धोखा धरी करते है।
हैकिंग
इन्टरनेट पर कुछ भी सुरक्षित नहीं है ।  आप सावधान नहीं है तो आपका महत्वपूर्ण डाटा हैक हो सकता है तब आप ब्लैकमेल के भी शिकार हो जाते है ।
सोशल मीडिया मौत का कारण
सोशल मीडिया पर अजीबो – गरीब हरकतों व तस्वीरों को वायरल करने के चक्कर में अपने जान से हाथ धो बैठते है ।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है जिससे किसी भी देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है। मीडिया एक ऐसी वस्तु है जो कही भी फिट होकर हिट हो जाती है। सोशल मीडिया को सामाजिक तनाव, अशांति, विवादों, हिंसा और प्रदर्शनों का साधन बना लिए जाने पर सरकारों की चिंता जायज है लेकिन इसका परिमाण इतना बड़ा है कि उसे बांधने की कोशिश सुनामी की लहरों को रोककर बांध बनाने की कोशिश के समान है। सोशल मीडिया न सिर्फ विधमान समाजों को प्रभावित कर रहा है बल्कि ऑनलाइन समुदायों की रचना भी कर रहा है । सभी मायने में सोशल मीडिया बहुत ही उपयोगी है पर ज़रुरी है की आप इसका सही उपयोग करना सीखे । सही उपयोग मालूम होने के बाद ही आप इसका लाभ अपने काम में उठा सकते है। सोशल मीडिया का दुरुपयोग न करे इसके आपको काफी ज्यादा नुक्सान भी हो सकता है । सोशल मीडिया को और उपयोगी बनाने में अपना योगदान दे और इसपर अच्छी जानकारी ही पोस्ट करे जिससे और लोगो को भी मदद मिले । द लैंग्वेज ऑफ न्यू मीडिया नामक अपनी पुस्तक में लेव मैनोविच ने न्यू मीडिया की नयी भाषा के बारे में कहा है कि यह त्रिविमीय वस्तुओं और अनुभवों को व्यक्त करने में ज्यादा सक्षम है , इसलिए यह ज्यादा पसंद की जाती है ।  
संदर्भ ग्रन्थ सूची
  1. पी के आर्य – इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली
  2. भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया डॉ. देवव्रत सिंह प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली
  3. The Media and Globalization by Terhi Rantan
  4. जन माध्यमों का मायालोक – लोकतांत्रिक समाजों के विचारों पर नियंत्रण – नोम चोम्स्की
  5. मीडिया और हमारा समय – प्रांजल धर – भारतीय ज्ञानपीठ
  6. www.rajasthanpatrika.com
  7. www.patrika.com
  8. www.jagranpehel.com
  9. www.jagran.com
  10. khabar.ndtv.com
  11. हिन्दीमीडिया.इन
  12. www.timesofindia.com
  13. www.hindimedia.in
  14. www.mediavimarsh.com
  15. www.mediakhabar.com
  16. www.mediamanch.com
डॉ. अमित कुमार दीक्षित, अनुवादक सेल, सीएमओ, मुख्यालय, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में कार्यरत हैं. कविता लेखन में रुचि रखते हैं. संपर्क - rajbhashahqkolkata@gmail.com

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