संपादकीय – क्या भारत एक राष्ट्र नहीं है…?
जो लोग नेशनलिज़म की यूरोपीय अवधारणा से अभिभूत हैं, उन्हें भारत की राष्ट्रीयता समझ में नहीं आती। ऐसा देश जिसे हजारों वर्ष पहले लिखे पुराणों में भी एक राष्ट्र माना गया है, जहां विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, जात-बिरादरियों, पूजा पद्धतियों के बावजूद एक एकात्मता का...
संपादकीय – ज्ञानपीठ न हुआ भारत रत्न हो गया…!
पुरवाई परिवार ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति के सदस्यों को दावत देता है कि वे अपने कारण सार्वजनिक करें जिससे पता चल सके कि ममता कालिया, चित्रा मुद्गल या नासिरा शर्मा जैसी लेखिकाओं की अनदेखी क्यों की जा रही है। ज्ञानपीठ को याद रखना होगा कि...
संपादकीय – चुनावी धांधली सीमा के आर-पार
चाहे हम सरहद के इस पार रहें या उस पार, धांधली हमारे चरित्र में शामिल है। कम से कम पाकिस्तान में रावलपिंडी के कमिश्नर लियाकत अली चट्टा की आत्मा अभी तक पूरी तरह मरी नहीं और उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए अपने पद...
संपादकीय – तेल और पान मसाला बेचते सुपर स्टार
फ़िल्म कलाकार आपको कार, शैंपू, इंश्योरेंस, पान मसाला से लेकर सॉफ्ट ड्रिंक्स, टॉयलट साफ़ करने के क्लीनर तक बेचते दिखाई देंगे। बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेत्री ऐसे विज्ञापनों में आपको टीवी से लेकर शहरों में लगे बिल बोर्ड्स तक पर नजर आते होंगे। इससे एक...
संपादकीय – पुस्तक मेला का खेला
कुछ प्रकाशक अपने-अपने स्टॉल पर पुस्तक चर्चा का आयोजन भी करते हैं। बेचारा लेखक यहां भी अपना किरदार पूरी शिद्दत से निभाता है। वह समीक्षक और आलोचक का इंतज़ाम तो करता ही है, पांच से दस श्रोताओं को भी आमंत्रित करता है और मिठाई...
संपादकीय – पूनम पांडेय और मौत का नाटक…
पूनम पांडेय की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसने अपने मरने का नाटक सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिये किया था। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी विश्वसनीयता अपने ही घटिया व्यवहार के कारण खो देते हैं। यदि...