कुसुम पालीवाल की कविता – आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ

आओ ! चाँद पर बैठ कर सूरज से आँख मिलाएँ कलियों से लेकर रंग पराग अपना एक अस्तित्व बनाएँ हों चाहे विपरीत परिस्थिति नहीं डरें ………नहीं झुकें एक अपनी डगर बनाएँ हम आगे ही बढ़ते जाएँ आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ … नदियाँ कल-कल करती हैं उनको भी नया राग बताएँ पथरीले पथ पर...

रश्मि ‘लहर’ के दोहे

1. पद की गरिमा के बनें, झूठे दावेदार. प्रिय है मिथ्या चाटुता, मिथ्या ही सत्कार. 2. औरों की श्री कीर्ति का, कब रखते वे ध्यान? कृपाकांक्षी हैं स्वयं, बनते कृपानिधान. 3. थाली के बैंगन सदृश, कभी दूर या पास. आखिर उनकी बात पर, कैसे हो विश्वास? 4. उनकी बातें चुभ रहीं, चुभता हर संदेश. पद-...

अनिमा दास के सॉनेट

1. हंसदेह - सॉनेट इस परिधि से पृथक प्राक पृथ्वी है नहीं इस मयमंत समय का क्या अंत है कहीं? नहीं.. नहीं अब नवजीवन नहीं स्वीकार अति असह्य..अरण्यवास का अभिहार। भविष्य की भीति भस्म में बद्ध वर्तमान प्रत्यय एवं प्रणय में पराभूत...प्रतिमान क्षणिक में क्यों नहीं क्षय होती क्षणदा? जैसे प्रेम में...

डॉ मुक्ति शर्मा की कविता – स्त्री प्रेम में छली जाती है

स्त्री प्रेम में छली जाती है। ऐसे पुरुष के हाथों जिसे वे अपना सब कुछ समर्पित कर देती है। बार-बार छली जाती है। कभी परिवार के हाथों कभी ससुराल के हाथों। आखिर क्यों छली जाती है? क्या वह कमजोर है। ना ना... वह कमजोर नहीं वे तलाशती है उन मजबूत कंधों को जो सहारा दे। क्या मिल पाते हैं मजबूत कंधे ? जिनकी चाहत में वह भटकती है। जिसके कारण करती है अपने मान- सम्मान का खून चंद खुशियों के...

विनिता शर्मा की कविता – गर कभी चर्चा चलेगी

खाक हो कर भी तुम्हें हम याद आएंगे गर शहादत की कभी चर्चा चलेगी राख के उस ढेर में अब तक दबी चिंगारियाँ हैं शांत सी बहती पवन के साथ रहती आँधियाँ हैं हम शहीदों के बुझे दीपक जलाएंगे गर बग़ावत की कभी चर्चा चलेगी बाँटते हैं प्यार लेकिन हम...

डॉ किरण खन्ना की कविता – शीरो कैफे की होली

आओ... खेलो होली... लगाओ रंग.. ...... होली खेलना चाहते हो.... आओ.... होली खेलने शीरो कैफे में... .खेलो रंग.. हमारे संग..... अरे रे रे रे क्या हुआ? ... डर गए? .... हमारे चेहरे देख कर.... जी मितला गया...न... न भागो नहीं... सुनो..... हम...हम भी...रंगों से ज्यादा रंगीन होना चाहती थी... इन्द्र धनुष के रंगों को मात...