डॉ ममता मेहता का व्यंग्य – गिरगिट
"चल न क्या किताबों में मुंह गड़ाए बैठी रहती है." नीरू ने चारु के कंधे हिलाते हुए कहा.
"अरे अरे रुक तो.. बहुत ही बढ़िया...
वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – अपने आप पर भरोसा करें
‘जो करना है, बस इसी समय करना है।‘ यह कथन हम सबने ना जाने कितनी बार ‘सुना’ है। बहुत से लोगों ने इसको अपनी...
संपादकीय – किराये पर परिवार…!
अब जापान में किराये के रिश्तेदार मिलने लगे हैं। डेली वेज वाले कलाकार भी हैं। जो दिन में परिवार के सदस्य की एक्टिंग करते...
नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – नीले फूलों वाले दिन
अपनी क्लास लेकर अचला बाहर आ गयीं। क्लास से निकलते ही बाहर का मौसम खिला-खिला मौसम अच्छा लगा। बाहर गुलाबी धूप खिली थी।
अचला क्लास...
जय शेखर की दो लघुकथाएँ
प्रेम
वह आज पूरे 5 दिन कर घर लौटा था । उसे देखते ही परिवार के...
कमला नरवरिया की लघुकथा – रक्षाबंधन
सावन का महीना चल रहा था। आसमां नीला और धरती पहले से अधिक हरी हो...
दिव्या शर्मा की दो लघुकथाएँ
1- सर्व धर्म समन्वय
फेसबुक पर एक न्यूज एजेंसी के पेज पर नजर पड़ते ही मैं...
कमला नरवरिया की दो लघुकथाएँ
1 - पंचायत
गांव में चौपाल पर मर्दों की पंचायत बैठी हुई थी। पंचायत में झुनिया...
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा की दो लघुकथाएँ
1 - दूसरे जैसा
"बड़ी गुमसुम सी लग रही हो ।"
"नहीं तो !"
"झूठ मत बोलो ।"
"तुमने...
सूर्यकांत नागर की कलम से – लाेक और दलित जीवन का...
पुस्तक - वसंत के हरकारे: कवि शैलेन्द्र चौहान संपादक: सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा
प्रकाशक - मोनिका प्रकाशन, जयपुर मूल्य: 300 रूपये
समीक्षक - सूर्यकांत नागर
वसंत के हरकारे:...
मोहन सपरा की कलम से – पांव ज़मीन परः लोक जीवन...
कथा रिपोर्ताज : पांव जमीन पर / शैलेन्द्र चौहान मूल्य : 300 रुपये प्रकाशन : बोधि प्रकाशन, एफ-77, करतारपुर औद्योगिक क्षेत्र, बाईस गोदाम, जयपुर...
वन्दना यादव का स्तंभ ‘मन के दस्तावेज़’ – अपने आप पर...
‘जो करना है, बस इसी समय करना है।‘ यह कथन हम सबने ना जाने कितनी बार ‘सुना’ है। बहुत से लोगों ने इसको अपनी...