शैलेंद्र चौहान का लेख – निराला की कविता में मनुष्य राग

यह संयोग ही है कि मेरे प्रियतम कवियों में निराला रहे हैं। जब मैं आठवी कक्षा का छात्र था तभी उनकी कवितायेँ गुनगुनाता था। इस पर मेरे शिक्षक श्री चिरोंजी लाल श्रीवास्तव जो वहीँ हमारे पड़ोस में रहते थे बहुत प्रसन्न होते थे और...

लेखक का क़द उसकी पुस्तकों से बड़ा नहीं होना चाहिए – पंकज सुबीर

चर्चित लेखक, संपादक एवं प्रकाशक पंकज सुबीर का नाम हिंदी साहित्य में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आज पंकज सुबीर से पुरवाई की उपसंपादक नीलिमा शर्मा ने उनके रचनाकर्म, रचना-प्रक्रिया, प्रकाशन अनुभवों आदि पहलुओं पर बातचीत की है। प्रस्तुत है। प्रश्न- आप गज़लगो हैं, कथाकार...

रश्मि रविजा का लेख – फील्ड मार्शल सैम मानेकशा

1942 में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था. बर्मा में भारत की सेना अंग्रेजों की तरफ से जापानियों से लड़ रही थी. 22 फरवरी 1942 को सैम मानेकशा अपनी बटालियन ‘रायफल कंपनी’ को कमांड करते हुए ‘पगोडा हिल’ की तरफ बढ़ रहे थे. जिस पर...

देवी नागरानी का संस्मरण – कल, आज और कल

यादें भी फूलों की तरह खिलती है, खुशबू बिखेरती  है, फिर नए मोड़ पर आकर मुरझा जाती है. कभी यूं ही होता है कि अनगिनत फिजाओं के मौसम आकर चले जाते हैं पर उन फूलों पर कभी शबनम नहीं ठहरती. 2020 की पुरानी दहलीज की...

आशा विनय सिंह बैस का लेख – बचपन और दीपावली

बचपन की दीपावली का मतलब छोटी दीवाली,  बड़ी दिवाली और उसके बाद गंगा स्नान (कार्तिकी) की तैयारी हुआ करता था। धनतेरस और भैया दूज कम से कम हमारे गांव में तो नहीं मनाया जाता था।  शायद टेलीविजन  और वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण ये...

कमलेश कुमार दीवान का दीपावली पर एक गीत – आओ अंतर्मन के दीप

आओ अंर्तमन के दीप, दीप प्रज्वलित करें हम। पथ पथ अंधियारे फैलें हैं ,दिशा दिशा भ्रम हैं सूरज चांद सितारे सब हैं, पर उजास कम हैं थके पके मन, डगमग पग हैं भूले राह चले हम। आओ अंर्तमन के दीप, दीप प्रज्ज्वलित करें हम। मन मुटाव वैमनस्य दूर हो, मानव मूल्य द्रवित...