दीपक शर्मा की कहानी – पिता की विदाई

“तुम आ गईं, जीजी?” नर्सिंग होम के उस कमरे में बाबूजी के बिस्तर की बगल में बैठा भाई मुझे देखते ही अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ| “हाँ,” मैंने हलके से उसे गले लगाया, “बा कैसे हैं?” बाबूजी की आधी खुली आँखें शून्य में देख रही...

संदीप तोमर की कहानी – अहसासों के दरमियान

कुछ जरुरी कागज ढूँढ रहा हूँ अचानक एक फाइल मेरे हाथ में आती है, बहुत धूल जमी है, मेरी यादों पर जमी धूल की ही तरह, फाइल खोलकर देखता हूँ तो पाता हूँ – ये एक स्क्रिप्ट है। स्क्रिप्ट देख मैं यादों के भंवर...

प्रदीप श्रीवास्तव की कहानी – जेहादन

वह चार साल बाद अपने घर पहुँची लेकिन गेट पर लगी कॉल-बेल का स्विच दबाने का साहस नहीं कर पाई। क़रीब दस मिनट तक खड़ी रही। उसके हाथ कई बार स्विच तक जा-जा कर ठहर गए। जून की तपा देने वाली गर्मी उसे पसीने...

नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – पीले दरख़्त

बचपन में गुरूजनांे से सुना था कि जीवन के सबसे अच्छे दिन बचपन के होते हैं। उस समय उनकी कही गयी इस बात को उतनी गम्भीरता से नही लेता था जीवन की यात्रा तय करते-करते अब जब कि बचपन को कहीं बहुत पीछे छोड़...

डॉ कृष्णलता सिंह की कहानी – हर्ज क्या है

पार्टी शानदार चल रही थी।ऑफिसर व्हिस्की, बीयर,जिन और लेडीज़,वाइन,लाइम सोडा,कोक,जूस हाथ में थामें -'चीयर्स टू न्यूली  वेड कपल'-कहकर अपनी अपनी ड्रिंक इंज्वॉय कर रहे थे। मन्द मन्द स्वर में बजते कर्णप्रिय संगीत की धुनें पार्टी में अलग ही रस घोल रहीं थीं। स्मार्ट यूनिफॉर्म...

सतीश सिंह की कहानी – जद्दोजहद

नए स्कूल का पहला दिन था। कावेरी विंग की तीसरी मंजिल पर नौवीं की “एम” कक्षा थी, जिसका आवंटन मीनाक्षी को किया गया था। वह थोड़ी डरी, सहमी और घबराई हुई सी थी। सीढ़ियों के स्टेप बड़े-बड़े और खड़े थे, इसलिए, वह रुक-रुक कर...