Monday, May 20, 2024
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ऋचा सिंह सचान की दो कविताएँ

1- मासूम की आवाज

आज मैंने एक भारत को देखा

अन्याय मासूमों को सहते देखा

कहते हैं उन्हें भारत का भविष्य

तो फिर क्यों किसी ने

उनके दर्द को नहीं देखा

उनकी आँखो में लहरों का सैलाब देखा

सवालो में उलझी बेबसी को देखा

चुप रहकर सुनने की परम्परा को देखा

तो फिर क्यों किसी ने

उनकी मासूमियत को नहीं देखा

उनको खेतों में काम करते देखा

तालाबों से रास्तों को बनाते देखा

हर बात पर डांट सुनते देखा

तो फिर क्यों किसी ने

उनकी भावनाओ को नहीं देखा

उनके कोमल हाथों को दुकान का सामान बेचते देखा

उनके आस-पास से लोगों को गुजरते देखा

मासूम को अपनी व्यथा लिखते देखा

तो फिर क्यों किसी ने

उनकी इच्छाओ को नहीं देखा

जब हमने उन सबको स्कूल आते देखा

किताबें कक्षा में उन्हें पढ़ते देखा

नन्हे क़दमों को मैदान में खेलते देखा

तो फिर लगा कि

शायद अब इन्होने अपना बचपन देखा

2- तुम और मैं

कितना आसान है

तुम्हें लिखना

मैं हर रोज तुमको

लिख रही हूँ

मेरे हर शब्द में

जो दर्द है

वो सिर्फ तुम्हारे

प्यार का है

मेरे जज़्बातों में

जो हक़ीक़त है

वो सिर्फ तुम्हारे

मेरे होने की है

तुम कहीं भी रहो

रहोगे हमेशा मेरे

क्योंकि मैंने तुमको

अपनी क़लम में दफ़्न

कर लिया है

तुम कभी न कभी

खुद को ढूढ़ते हुए

मेरे पास आओगे

इसलिए

मैं तुमको ताउम्र लिखती रहूँगी

ऋचा सिंह सचान
ऋचा सिंह सचान
सम्पर्क : richasinghsachan69@gmail.com
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