माटी कहे कुम्हार से (लघुकथा संग्रह 2018 – लेखकः डॉ. चन्द्रा सायता; प्रकाशकः अपना प्रकाशन, गोविन्दपुरा, भोपाल-462023। पृष्ठ संख्याः 104, मूल्यः रु.200/- मात्र

जैसे जैसे समाज में विरोधभास बढ़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे लघु कथा के लिये उर्वरा जमीन तैयार होती जा रही है चूँकि एक लेखक वो चाहे किसी भी विधा में लिख रहा हो, उसकी संवेदना औरों की तुलना में कहीं अधिक सक्रिय होती है इसी सक्रियता को वह अपनी रचनाओं में उतारता है इस कारण समाज में होने वाली घटनाएँ  अनेक रूपों में हमारे सामने आती हैं

एक सच्चा लेखक वही है जो अपने समय को अपनी कलम से शब्द बद्ध करके आने वाली पीढियाँ के लिये एक प्रामाणिक दस्तावेज़ के रूप में छोड़ कर जाये यह काम वर्तमान समय  में लघुकथाएँ बहुत प्रभावी तरीके से कर रही हैं कारण कि वे पद्य के दोहों और शेरों के जितनी प्रभावशाली होती हैं कम से कम शब्दों में अपनी भूमिका को श्रेष्ठ तरीके से निभा पाने के कारण ही लघुकथाएँ आज इतनी मात्रा में लिखी और पढ़ी जा रही हैं    

प्रसिद्ध लेखिका और अनुवादक डॉ . श्रीमती चन्द्र सायता की लघु कथाओं के  दूसरे संग्रह माटी कहे कुम्हार से में संकलित बहत्तर लघु कथाओं में गहरी संवेदना , दरकते मूल्यों के प्रति चिंता और निहित स्वार्थों के कारण टूटते रिश्तों का रेखांकन   हुआ  है   अपनी लघुकथाओं के पात्रों के चयन से चंद्रा जी कभी कभी तो चमत्कार  सा कर देती हैं उनके ये पात्र हमें अपने आस पास सहज ही दिख जाते हैं बस उनके प्रति उनकी दृष्टि सम्पन्नता ही  कथा बन जाती है , जिसे आम आदमी देखकर भूल जाता है

अंकुरण, ‘अर्थी और अर्थ तथा अकेलापन बाल मनोविज्ञान की अच्छी कथाएं हैं अंकुरण माँ के आभाव में पला बच्चा अपने पापा से भावनात्क रूप से बहुत अटेच है , वह बिना पापा के किसी बात की कल्पना नहीं कर सकता अकेलापन में परिवारों में आजकल जो एक ही बच्चा हो रहा है , ऐसे में उस बालसखा विहीन बच्चे की मनोदशा अच्छे से रेखांकित हुई है

अर्थी और अर्थ में बच्चा शव यात्रा में शवों पर उड़ाये पैसों से अपनी बीमार माँ के लिये दवाई खरीदता है यह घटना समाज में चिंताजनक स्थिति तक बढ़ रही अमीरी और ग़रीबी की खाई को ऐसे बताती है कि पाठक बिना द्रवित नहीं रह सकता नामगुनिया चिकनगुनिया की ही तरह व्यक्ति को अपनी चपेट में लाइलाज तरीके से लेने वाले सोशल मिडिया के प्रति एडिक्शन की सुंदर बयानी है हम में कई लोग हैं जो अपने रोजमर्रा के जीवन की छोटी छोटी घटनाओं को इस माध्यम पर शेयर करने की गम्भीर बीमारी से जाने अनजाने ग्रसित होते जा रहे हैं

इसमें विरोधाभास यह है कि बाकी नशों की तरह यहाँ भी बीमार यह मानने को राज़ी नहीं है कि वह इस बीमारी की गिरफ्त में चुका है प्रतिष्ठा कवच और अधिकार दोनों लघुकथाएँ युवा वर्ग की दो समस्याओं को दर्शाती हैं प्रतिष्ठा कवच में अपने भाई की गलत हरकतों को बचाती बहन है तो दूसरी ओर उसके नामदार पिता की प्रतिष्ठा का कवच भी है जो ऐसे लोगों को ख़ुद को कानून से ऊपर मानने का खुला लायसेंस देता है इसमें वह बहन भी उस अपराध की कम दोषी नहीं कही जा सकती जो अपने भाई की गलत करतूतों के लिये उसे फटकारने के बजाय उसका बचाव करती है अधिकार में इन दिनों चल रहे अनैतिक लिव इन रिलेशन की विद्रूपताओं को बताती है

महीनों या बरसों साथ में रहने और बिना ज़िम्मेदारी के वैवाहिक सुखा भोगने के बाद कोई भी लड़की किसी भी दिन जाकर पुलिस में शिकायत दर्ज कर दे कि उसके साथ बलात्कार होता रहा है /था और पुलिस लड़के को बिना प्राकृतिक न्याय की परवाह किये एक तरफा सजा सुना के उसे दोषी करार देती है यहाँ किसी के भी प्रति ज्यादती की वकालात मैं नहीं कर रहा , लेकिन लिव इन में दोनों पक्ष सामान रूप से और अपनी मर्जी से इन्वाल्व होते हैं , तो सजा एक पक्ष को ही क्यों हो

सृजन सम्बन्धएक विशिष्ट प्रकार की लघुकथा है , जो किसी भी प्रकार के रचना कर्म में लगे लोगों के बीच अपने सृजन से उत्पन्न रिश्तों को बहुत ढंग सुंदर से बुनती है इसमें एक कवि के लिखे गीत को गायिका गाती है , जिसकी वजह से वह गीत बहुत लोकप्रिय हो जाता है , इससे अभिभूत हो कर वह कवि उस गायिका के घर जाकर उसका सम्मान करता है और दोनों धन्य हो जाते है इस संग्रह में उनकी  कुछ मानवेत्तर लघुकथाएँ भी हैं जो बेहतर बन पड़ी है ज़िन्दगी और समय में समय ज़िन्दगी के इस उलाहने पर कि तुम निष्ठुर और कुटिल हो उसे समझाते हुए कहता है कि – 

हे सखी मैं इतना पारदर्शी हूँ कि तुम अपने कर्म के अनुसार अपना ही प्रतिबिम्ब मुझमें देखने लगती हो इसलिए जब तुम्हारा भाव कुटिल होता है , तब तुम्हार कर्म भी कुटिल हो जाता है और कर्म कुटिल होते ही तुम्हारा दृष्टिकोण कुटिल बन जाता है तुम्हें जब जब मैं जैसा जैसा दिखता हूँ , तुम होती हो समझीं कुछ इस प्रकार वे ज़िन्दगी और समय के माध्यम से एक बड़ा सन्देश में कामयाब होती हैं , कि समय तो अपनी गति से ही चलता है ये हम ही हैं जो समय को अच्छा या कि बुरा बताते रहते हैं इसी प्रकार किताब की शीर्षक कथामाटी कहे कुम्हार से में माटी ख़ुद कुम्हार से यह कहती है कि वो बाकी बर्तनों के साथ ही उससे सकोरे भी बना कर बेचे ताकि प्यास से व्याकुल पंछियों को भी अपनी प्यास बुझाने को पानी मिल जाये   कुम्हार की इस समस्या पर  कि इससे बढ़ने वाली लागत का क्या होगा ? मिट्टी उसका तरीका बताते हुए कहती है कि इसकी लागत को मटके की कीमत में जोड़ कर सहज समाधान भी बताती है दुःख से उपजा सुख लघुकथा में बीमार बेटी के असामयिक निधन पर उसके प्रति चिंतिति उसकी माँ एक डीएम निश्चिन्त हो जाती है कि वह भी अब बेटी की चिंता के बिना आराम से मर सकेगी इसमें दुःख में भी सुख देखने कि मानवीय मानसिकता का अच्छा चित्रण किया है   

यहाँ यह भी कहना समीचीन होगा कि कुछ लघुकथाएँ अपने कथ्य और गठन में और मेहनत की दरकार रखती हैं जो चन्द्रा जी जैसी वरिष्ठ और दृष्टि सम्पन्न लेखिका के लिये कोई मुश्किल काम नहीं है आशा ही नहीं विश्वास है कि भविष्य में समाज को उनसे और बेहतर लघुकथाएँ मिलती रहेंगी 

नंद किशोर बर्वे, 114 ,बिजली नगर, इंदौर- 452016, मोबाइलः 09827207227 ईमेल : barvenk@gmail.com

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