सारांश
साहित्य किसी भी समस्या को उजागर करने का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है I वर्तमान में, विविध विमर्शों के माध्यम से उन सभी वर्गों को समाज के मुख्य प्रवाह में लाने का प्रयत्न किया जा रहा है, जो आज तक हाशिये पर थे I इन्ही हाशियेकृत वर्गों में एक है – किन्नर वर्ग I वर्षों से सर्वाधिक उपेक्षित और वंचित इस किन्नर वर्ग को समाज में हिजड़ा, छक्का, मीठा, पुरुषार्थ-विहीन-भौंडा, ख़ुसरा आदि अनेक नामों से लांछित व अपमानित किया जाता है I यथार्थ के धरातल पर किन्नर आज भी एक यातनापूर्ण जीवन जी रहे हैं I
बीज–शब्द – किन्नर, उपेक्षित, संवेदना, अस्मिता, अभिशप्त, तिरस्कार, विडम्बना आदि I
प्रस्तावना
विमर्शों के इस दौर में, किन्नर विमर्श समाज और साहित्य में तेजी से स्थापित हो रहा है I वर्तमान में किन्नरों से सम्बद्ध लेखन न केवल हाशिये के इस समुदाय की समस्याओं से परिचित करवा रहा है, बल्कि अपनी मौलिक कृतियों द्वारा किन्नर विमर्श को साहित्य में एक नवीन विमर्श के रूप में स्थापित कर इस वंचित इकाई को समाज से जोड़ने का प्रयास भी कर रहा है I आज संवेदनशील लेखकों के साथ-साथ कुछ समाजसेवी संस्थाओं व अन्य बुद्धिजीवी वर्गों के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप शनैः – शनैः किन्नर वर्ग स्वयं भी समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के लिए कटिबद्ध है I
समाज और किन्नरों के बीच साहित्यिक सेतु बनाने में उभरते हुए साहित्यकारों की महती भूमिका है I इन्हीं साहित्यकारों में एक नाम है – डॉ मुक्ति शर्मा I संवेदना के धरातल पर रचा गया प्रसिद्ध लेखिका मुक्ति शर्मा जी का उपन्यास ‘शापित किन्नर’ इस वंचित वर्ग की पीड़ा व उनके जीवन संघर्षों से परिचित करवाता एक सार्थक संयोजन है I
‘शापित किन्नर’ उपन्यास में तीन किन्नर पात्रों नरगिस, हिना व जावेद का जीवन संघर्ष वर्णित है I उपन्यास का कथातत्व किन्नर जीवन के मार्मिक पक्ष को व्यक्त करता है I एक किन्नर अपने जीवन का पहला अपमान, घृणा व तिरस्कार अपने परिवार से ही पाता है I कुछ मामलों में जहाँ परिवार साथ देता भी है, वहाँ विद्यालय और समाज का वैचारिक पूर्वाग्रह उस किन्नर बच्चे को समाज में स्वीकार नहीं कर पाता और वह न चाहते हुए भी किन्नर डेरे का हिस्सा बन जाता है I ‘शापित किन्नर’ उपन्यास की ऐसी ही एक पात्र है नरगिस I उपन्यास के अन्य किन्नर पात्रों की तुलना में नरगिस भाग्यशाली है कि उसे परिवार का साथ मिला I नरगिस के माता – पिता को उसकी अस्पष्ट लैंगिकता से कोई शिकायत नहीं I वे नरगिस को अपनी प्यारी बेटी कहते हैं I विद्यालय की शिक्षिका भी नरगिस से संवेदना रखती हैं, उसे विद्यालय जाने के लिए प्रेरित करती हैं परन्तु विद्यालय के अन्य बच्चे नरगिस की लैंगिकता के चलते उसे पसंद नहीं करते और उसे भला-बुरा कहते हैं I
नरगिस कि माँ को जब उनकी बेटी के प्रति विद्यालय के इस प्रकार के बर्ताव कि जानकारी होती है, तो वे नरगिस का दाखिला मानसिक विकलांग बच्चों के विद्यालय में करवाने का सोचती हैं परन्तु वहाँ से उन्हें यह कहकर लौटा दिया जाता है कि यह विद्यालय मानसिक विकलांग बच्चों के लिए है किन्नरों के लिए नहीं I नरगिस मासूम बच्ची है वह समझ ही नहीं पाती कि लोगों का व्यवहार उसके प्रति इतना क्रूर क्यों है ! पास के ही एक सरकारी विद्यालय में नरगिस का दाखिला करा दिया जाता है जहाँ बच्चे उसके साथ अभद्र व्यवहार करते हैं, उसे पीटते हैं जिसकी शिकायत नरगिस अपने भाई फैज़ल से करती है I फैज़ल पर यह कहकर तंज कसा जाता है कि उसकी बहन न लड़का है और न लड़की I इस बढ़ते विवाद के चलते नरगिस के लैंगिक विकलांग होने की बात किन्नरों तक पहुँच जाती है और वे नरगिस के लाख मना करने पर भी उसे घसीटते हुए अपने साथ ले जाते हैं I
नरगिस पढ़ने में बहुत होशियार है I वह आगे पढ़ना चाहती है किन्नर डेरे की गुरु से वह आगे पढ़ने की इच्छा व्यक्त करती है तो मानवता का परिचय देते हुए गुरु द्वारा डेरे में ही उसके पढ़ने की व्यवस्था कर दी जाती है I नरगिस होशियार होने के साथ-साथ कर्मठ भी थी I पढ़ाई में कोई बाधा ना हो इसके लिए वह किन्नर डेरे के सभी पारंपरिक रीति-रिवाज सीख लेती है और समय-समय पर बधाई गाने चली जाती है I इंटरमीडिएट पास होने के बाद नरगिस को कॉलेज में दाखिला मिलता है I नरगिस के इसी संघर्ष पर हिना की सफलता की इबादत लिखी गयी है I कॉलेज में नरगिस की मुलाकात अकरम नामक एक लड़के से होती है I नरगिस और अकरम एक दूसरे से प्रेम करते हैं I नरगिस के मन में हमेशा एक डर रहता है कि उसके किन्नर होने की सच्चाई जानने के बाद अकरम उससे प्रेम नहीं करेगा परन्तु नरगिस की वास्तविकता जानने के बाद भी उसके प्रति अकरम का प्रेम कम नहीं होता और बहुत-सी परेशानियों व माँ के विरोध के बावजूद वह नरगिस से विवाह कर लेता है I लेखिका ने अकरम को एक सच्चे प्रेमी के रूप में दर्शाया है I
प्रस्तुत उपन्यास में, अन्य किन्नरों की तुलना में नरगिस भाग्यशाली है कि बचपन में उसे माता-पिता का प्रेम मिलता है I उसके किन्नर डेरे जाने की वजह उसका परिवार नहीं है बल्कि परिवार तो समाज के सामने उसकी ढाल बनकर खड़ा है I नरगिस को शिक्षा का पूरा अवसर मिलता है I किन्नर डेरे में भी किन्नर गुरु उसका सहयोग करती है साथ ही नरगिस का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से होता है जो एक पूर्ण पुरुष है और कदम-कदम पर नरगिस का साथ देता है, उसका ख्याल रखता है I अकरम कि माँ नरगिस को पसंद नहीं करती फिर भी अकरम नरगिस का साथ नहीं छोड़ता और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है I
उपन्यास में एक अन्य कहानी चलती है हिना और जावेद की I यह कहानी नरगिस से अलग प्रतीत होती है I उपन्यास में हिना का जीवन, उसके जन्म के समय मिले शाप के कारण प्रभावित होता दिखाई पड़ता है I हिना के जन्म के समय उसके दादाजी द्वारा नेग मांगने आये किन्नरों को मुँह मांगी रकम न दिए जाने पर किन्नर उन्हें शाप दे देते हैं जिसकी परिणति दादाजी की मृत्यु हो जाती है I कुछ समय बाद घर में एक किन्नर बच्चे का जन्म होता है I नाम रखा जाता है- हिना I किन्नर के रूप में हिना का जन्म आजीवन उसके लिए दुर्भाग्य का कारण बनता है I परिवार में उसके जन्म लेने के बाद उसकी दादी और माँ का भी निधन हो जाता है I
एक किन्नर रूप में जन्म लेना, जिन्हें कि समाज में कोई सम्मान नहीं दिया जाता, उस पर इतने लोगों की मृत्यु का कारण कहलाना? सामान्य व्यक्ति के लिए हिना की स्थिति का अंदाज़ा लगाना भी कठिन है I अवहेलना और उपेक्षा की शिकार हिना का दुर्भाग्य अब भी उसका पीछा नहीं छोड़ता I हिना के पिता दूसरा विवाह कर लेते हैं I माँ के रूप में किसी का मिलना जहाँ हिना के लिए ख़ुशी की बात थी वहीं दूसरी ओर हिना पर सौतेली माँ के अत्याचारों की कोई सीमा नहीं थी I वह हिना से घर के सारे कार्य करवाती और क्रूरता की सारी हदें तब पार हो जाती हैं जब अपने मन-मुताबिक काम न होने पर वह हिना का हाथ जला देती है I एक बिन माँ की बच्ची के प्रति सौतेली माँ का इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण है I
हिना अकरम की ममेरी बहन थी I हिना के किन्नर होने की वास्तविकता से परिचित अकरम उसे अपने साथ ले आता है जहाँ अकरम और नरगिस उसे गोद लेने का निर्णय करते हैं और उसका पालन-पोषण करने लगते हैं I उन्हें माता-पिता के रूप में पाकर हिना भी बेहद खुश है परन्तु इसे हिना का दुर्भाग्य कहें या कुछ और पर यह सानिध्य भी उससे जल्द ही छिन जाता है I कुछ दिनों बाद ही नरगिस को एक भयानक बीमारी से गुजरना पड़ता है और अकरम उसे लेकर अस्पताल जाता है I अकरम की माँ नरगिस को पसंद नहीं करती थी, उस पर हिना का आना उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा I वे नरगिस की इस हालत का ज़िम्मेदार हिना का शापित होना बताते हैं और उसे किन्नरों के हवाले कर देते हैं I नरगिस हिना के लिए बहुत रोती- तड़पती रहती पर करती भी क्या ! हिना अब किन्नर डेरे का हिस्सा थी I अब वही उसका घर था I
हिना को डेरे में रहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता और अपने जीवन की इन्हीं परेशानियों से तंग आकर एक दिन वह ज़हर पी लेती है I नरगिस उससे मिलने जाती है, तब वह कहती है- ‘माँ मैं शापित हूँ, मुझे जीने का अधिकार नहीं है, मैं समाज के लिए बोझ हूँ इसलिए मेरा मर जाना ही उचित है I’ हिना बताती है कि उसने ज़हर का सेवन कर लिया है और इस हादसे में हिना मरणासन्न अवस्था में पहुँच जाती है I हिना की यह हालत नरगिस को अंदर तक झकझोर देती है है और वह निश्चय करती है कि वह समाज को बताएगी कि किन्नर शापित नहीं होते, वे भी मनुष्य हैं और सम्मान से जीने के उतने ही अधिकारी हैं जितने कि अन्य मनुष्य I नरगिस के इस हौसले का कारण अकरम और नरगिस के परिवार का समाज के सामने हमेशा उसकी ढाल बनकर खड़ा रहना था I
नरगिस का परिवार भाई कि शादी का निमंत्रण लेकर आता है I विवाह में नरगिस को लोगों को जली-कटी बातों और हीन विचारों का सामना करना पड़ता है जहाँ अकरम और नरगिस कि माँ सबको चुप करा देते हैं और अकरम नरगिस को हौसला देता है कि यह सामान्य लोग हैं अभी तो तुम्हें बहुत-सी समस्याओं से जूझना है इसलिए इन की बातों पर ध्यान मत दो I
उपन्यास का तीसरा पात्र है जावेद I जावेद एक किन्नर है I उसे भी विद्यालय में हिना और नरगिस की तरह उपेक्षा का शिकार होना पड़ा I यहाँ तक की बच्चे और उनके माता-पिता यह तक कह देते हैं कि जावेद यदि इस स्कूल में पढ़ेगा तो वे वहां नहीं पढ़ेंगे I उपन्यास के तीनों ही किन्नर पात्रों को मात्र अपनी लैंगिकता के चलते किसी न किसी प्रकार से समाज की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है I
लेखिका ने एक ओर माँ के रूप में नरगिस की छटपटाहट तो दूसरी ओर किन्नर डेरे में एक बेटी की तड़प को बखूबी चित्रित है I नरगिस और अकरम तो यूँ भी अब कानूनी तौर पर हिना के अभिभावक थे I नरगिस किन्नर डेरे से अपनी बेटी को वापस लाने की कोशिश करती है पर असफल रहती है I वह नहीं चाहती कि अपने जीवन में जिस प्रकार अपमान और उपेक्षा का दंश उसने झेला है, हिना को भी वह झेलना पड़े I इसी प्रकार मौका पा कर एक दिन हिना किन्नर डेरे से भाग कर नरगिस के पास आ जाती है I नरगिस उसे वहां से दूर ले जाकर उसकी पढाई शुरू करवाती है और उसे किन्नरों से प्रति समाज के हीन विचारों से लड़ने की हिम्मत देती है I
आगे चलकर हिना के जीवन में एक कश्मीरी युवक आकिब आता है I हिना और आकिब एक दूसरे से प्रेम करते हैं पर उनकी कहानी नरगिस अकरम-सी परिणति नहीं पाती l विवाह से पूर्व ही आकिब कश्मीर के आतंकवाद का शिकार हो जाता है, जिससे हिना टूट जाती है और इसका कारण अपने शापित जीवन को मानने लगती है I वह सोचती है कि बचपन से लेकर आज तक उसके पास जो कुछ भी था उसके शापित होने के कारण वह सब कुछ उससे छिन गया I माँ और दादी की मृत्यु का कारण वही थी, उसी के कारण नरगिस को जानलेवा बीमारी से जूझना पड़ा और अब आकिब के दूर जाने का कारण भी वही है I इस स्थिति में नरगिस उसे संभालती है और विदेश भेजकर डॉक्टर बनने के लिए तैयार करती है I अंत में हिना एक नामी डॉक्टर बन भारत लौटती है और किन्नर वर्ग के लिए एक संस्था का संचालन भी करती है I हिना और नरगिस के जीवन के माध्यम से यह सन्देश भी मिलता है कि परिवार का साथ मिले तो किन्नर शापित नहीं बल्कि सशक्त हैं I
उपन्यास लेखिका डॉ मुक्ति शर्मा जी स्वयं भी जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले की निवासी हैं I अतः कहीं-न-कहीं उन्होंने जावेद, आकिब और कश्मीरी आतंकियों के प्रसंग को जोड़ते हुए अपने कश्मीर विस्थापन के दंश और उस असहनीय पीड़ा को भी व्यक्त किया है I जावेद और आकिब के सन्दर्भ में यह भी सन्देश दिया गया है कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता I आतंकियों के भीतर का शैतान उन पर इस कदर हावी हो जाता है कि इन मासूमों की जान लेते हुए भी उनके हाथ नहीं कांपते ! वर्तमान में हाशिये पर पड़ा किन्नर वर्ग और तत्कालीन हिंसात्मक दौर का खामियाज़ा भुगतता धरती का स्वर्ग कश्मीर, दोनों ही समस्याएँ सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर वाद-विवाद करने योग्य हैं I डॉ मुक्ति शर्मा जी द्वारा अपने लेखन के माध्यम से इन दोनों ही समस्याओं को उठाना एक सराहनीय प्रयास हैI
निष्कर्ष –
‘शापित किन्नर’ उपन्यास में किन्नरों की संघर्ष- गाथा व उनके नारकीय जीवन से सम्बन्धित कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो पाठको की आत्मा को झकझोरने के लिए पर्याप्त हैं । एक अबोध शिशु जो अभी दुनियादारी से भी अंजान है, क्या उसे अंधकूप में धकेलने के लिए हमारा समाज उत्तरदायी नहीं है? मनुष्य जो पशु-पक्षियों, कीट- पतंगों तक से दया भाव रखता है, वह भला एक लिंग- दोषी को हिकारत भरी दृष्टि से क्यों देखता है? उसे तिरस्कार और अपमान का पात्र क्यों समझता है? क्या लिंग- दोषी होना उसने स्वयं स्वीकार किया है? मनुष्य होकर भी वह शापित क्यों है? इसी प्रकार के अनेक प्रश्नों द्वारा उपन्यास की नियोजना की गई है ।
किन्नर जो अपने जीवन से स्वयं दुखी हैं उस पर हमारा समाज उन्हें प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता I आखिर वे भी इंसान हैं उन्हें भी पीड़ा होती है I समाज में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी या मानोबी बंद्योपाध्याय जैसे गिने-चुने उदाहरण हैं जिन्हें परिवार का साथ मिला और वे आज कहाँ हैं यह हम सभी जानते हैं I शापित किन्नर उपन्यास में नरगिस और हिना के माध्यम से लेखिका ने यही समझाने का प्रयास किया है कि किन्नर केवल लैंगिक रूप से हमसे अलग है परन्तु अन्य शारीरिक और मानसिक रूप से वे पूर्णतः सक्षम हैं I वे उन सभी कार्यों को करने में सक्षम हैं जिन्हें कोई स्त्री या पुरुष कर सकते हैं I केवल उन्हें अवसर मिलने चाहिए परन्तु उनके पैदा होते ही हमारा समाज उन्हें किन्नर डेरे रुपी अँधेरी खाई में धकेलकर उनसे वे सारे अवसर छीन लेता है जिनका बिना किसी लैंगिक भेद-भाव के एक मनुष्य अधिकारी होता है I आखिर एक किन्नर से उसके सभी सुखों को छीनने का अधिकार समाज को देता कौन है?
हम किन्नरों को देखकर वैसी सहज प्रतिक्रिया नहीं करते जैसा किसी स्त्री या पुरुष को देखकर करते हैं, जैसे वे किसी और ही ग्रह के प्राणी हों I ज़रा सोचिये ! हमारे इस प्रकार के व्यवहार से किन्नरों पर क्या गुज़रती होगी I परिवार और समाज ने तिरस्कृत और अपमानित कर स्वयं से दूर किन्नर डेरे में रहने को विवश किया और उस डेरे ने अब उन्हें इंसान भी नहीं रहने दिया I वे शिक्षित नहीं हैं, समाज में उन्हें रोज़ी-रोटी के लिए कोई काम नहीं देता, तो ऐसे में वे खाएंगे क्या और जियेंगे कैसे ? वे भी इंसान हैं उनकी भी प्राथमिक ज़रूरतें हैं फिर पेट कि खातिर वे गली-गली तालियां पीटते, भिक्षा मांगते या देह व्यापर की गर्त में गिरे नहीं दिखेंगे तो क्या करेंगे I समाज के लिए कितने दुःख और शर्म की बात है कि एक मनुष्य को हमने इतना विवश कर दिया है कि आज वह अपनी आत्मा को मारकर, पेट कि खातिर इस प्रकार के घृणित कार्य करने के लिए बाध्य है I हर कोई सम्मान की रोटी चाहता है फिर किन्नर उसके अधिकारी क्यों नहीं हैं? हमें विचार करना होगा और पूर्ण संवेदना के साथ किन्नरों को अपनाना होगा I तभी इस हाशियेकृत समाज की उन्नति संभव है I
आराधना चमोला
शोधार्थी (हिंदी विभाग)
कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, उत्तराखंड
ईमेल– [email protected]
मो०– 7017802975
शुक्रिया मैम ☺️
आपने उपन्यास ही इतना बढ़िया लिखा है मैम, उस पर समीक्षा तो अच्छी होनी ही थी, मुझे सबसे ज्यादा शापित किन्नर उपन्यास में नरगिस के चरित्र ने प्रभावित किया । आपने किन्नर वर्ग की पीड़ा लिखने के साथ- साथ कश्मीर विस्थापन का दंश भी दिखाया है ।
आपने अपने उपन्यास पर समीक्षा लिखने का अवसर मुझे दिया, साथ ही उसे पुरवाई पत्रिका में स्थान दिया, उसके लिए बहुत धन्यवाद मैम ♥️
मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है आप खुब आगे बढ़ो।