नीरजा हेमेन्द्र की कहानी – बित्ते भर की छोकरी
’’अरे ओ बिटिया, तनिक बाहर आओ। ’’ अपनी दो बकरियों को चरा कर घर वापस लौटा है झकरी। इस समय दोपहर के बारह बज रहे हैं। बाहर धूप बहुत तीखी है। घर के दालान में बकरियों को बाँध कर अपनी आठ वर्षीय बेटी सोनम...
अनिता रश्मि की कहानी – यह जो जिंदगी है!
वह एक छोटा सा शहर था, जहां दोनों का जन्म हुआ था। दोनों ने जहां से अलग-अलग स्कूलों से मैट्रिक बोर्ड की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की थी और शहर के चहेते बन गए थे। शहर के ही उभरते को-एड महाविद्यालय से पढ़ाई...
हरदीप सबरवाल की कहानी – वर्जित
मालती दोपहर को छत से कपड़े उतारने गई तो एक ओर कोने में उसकी नजर रुक गई, कोई गुलाबी सा टुकड़ा जैसे, नजदीक गई तो एक दम दंग रह गई, इस्तेमाल किया हुआ कंडोम सामने पड़ा था, ममटी के ठीक नीचे, किसने फेंका होगा...
डॉ. सुधा त्रिवेदी की कहानी – करजोरी
मुझे नहीं पता कि इस आधुनिक ज़माने में- जब इतने फैशनबल नाम प्रचलन में हैं , तब किसी ने अपनी सुंदरी-सुशील कन्या का नाम करजोरी क्यों रखा होगा ? कोई-कोई कहते हैं कि उसकी दादी का नाम इंजोरिया था। दादी थीं भी पूनो की...
सुनीता मंजू की कहानी – विशेष आकस्मिक अवकाश
कितनी खुशी हुई थी ये जानकर कि अब नियोजित शिक्षिकाओं को भी विशेषावकाश मिलेगा। रेखा ने इस खुशी में पूरे स्टाफ में मिठाई बंटवाई थी। आखिर सबसे ज्यादा परेशान तो वही रहती थी। माहवारी के पहले दो दिन तो बिस्तर पर पड़ी छटपटाती रहती...
दीपक शर्मा की कहानी – खटका
“मैं उस घड़ी को पास से देखना चाहती हूँ", मधु फिर कहती है ।
इस अजनबी शहर में हम दोनों अपने विवाह के प्रमोद काल के अन्तर्गत विचर रहे हैं, और जब से उसने हमारे होटल के कमरे से इस घड़ी के अंक रात में...